जानिए भगवान शिव की पूजा में क्यों नहीं होता है शंख का प्रयोग – Conch Shell
Conch Shell गुरु माँ निधि जी श्रीमाली ने बताया है की हिंदू धर्म में हर देवी-देवता के पूजन के कुछ विशेष नियम होते हैं. जिस तरह से भगवान विष्णु को शंख बहुत ही प्रिय है और शंख से जल अर्पित करने पर भगवान विष्णु अति प्रसन्न हो जाते हैं, वहीं भगवान शिव की पूजा में शंख का प्रयोग नहीं किया जाता. धार्मिक दृष्टि से शंख बहुत पवित्र माना जाता है. किसी भी तरह की कोई भी पूजा हो, हर पूजा में आरती करने के बाद शंख के जल को सभी के ऊपर छिड़का जाता है. पर शिव की पूजा में शंख का इस्तेमाल नहीं क्या जाता है. आखिर ऐसी क्या वजह है, जिसके चलते महादेव को ना तो शंख जल दिया जाता है और न शिव की पूजा में शंख बजाया जाता है. Conch Shell
राधा रानी के श्राप द्वारा शंखचूर दानव की उत्पति
जिस शंख को कई देवी-देवताओं ने अपने हाथ में धारण कर रखा है और जिस शंख के बगैर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा अधूरी मानी जाती है, उसी शंख का प्रयोग भगवान शिव की पूजा में नहीं किया जाता है. ब्रह्मवैवर्त पुराण की कथा के अनुसार एक बार राधा रानी किसी कारणवश गोलोक से कहीं बाहर चली गईं थीं. उसके बाद जब भगवान श्रीकृष्ण विरजा नाम की सखी के साथ विहार कर रहे थे, तभी उनकी वापसी होती है और जब राधारानी भगवान श्रीकृष्ण को विरजा के साथ पाती हैं तो वे कृष्ण एवं विरजा को भला बुरा कहने लगीं. स्वयं को अपमानित महसूस करने के बाद विरजा विरजा नदी बनकर बहने लगीं. Conch Shell
राधा रानी के कठोर वचन को सुनकर उनके सुदामा ने अपने मित्र भगवान कृष्ण का पक्ष लेते हुए राधारानी से आवेशपूर्ण शब्दों में बात करने लगे. सुदामा के इस व्यवहार से क्रोधित होकर राधा रानी ने उन्हें दानव रूप में जन्म लेने का शाप दे दिया. इसके बाद सुदामा ने भी राधा रानी को मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया. इस घटना के बाद सुदामा शंखचूर नाम का दानव बना. Conch Shell
भगवान शिव के पूजा में शंख के वर्जित के पीछे रहस्य
गुरु माँ निधि जी श्रीमाली के अनुसार शंखचूड़ नाम का एक महापराक्रमी दैत्य हुआ। शंखचूड़ दैत्यराज दंभ का पुत्र था। दैत्यराज दंभ को जब काफी समय तक संतान नहीं हुई तब उसने भगवान विष्णु की तपस्या की। प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए। वर मांगने के लिए कहा तो दंभ ने तीनों लोकों के लिए अजय और महापराक्रमी पुत्र का वर मांगा। श्रीहरि तथास्तु बोलकर अंतरध्यान हो गए। इसके बाद दंभ के यहां एक पुत्र जन्मा। इसका नाम शंखचूड़ पड़ा। शंखचूड़ ने पुष्कर में ब्रह्माजी के निमित्त घोर तपस्या की और उन्हें प्रसन्न कर लिया। ब्रह्मा ने वर मांगने के लिए कहा तब शंखचूड़ ने वर मांगा कि वो देवताओं के लिए अजय हो जाएं। ब्रह्माजी ने तथास्तु बोला और उसे श्रीकृष्ण कवच दिया। साथ ही ब्रह्मा ने शंखचूड़ को धर्मध्वज की कन्या तुलसी से विवाह करने की आज्ञा दी। फिर वे अंतरध्यान हो गए। Conch Shell
ब्रह्मा की आज्ञा से तुलसी और शंखचूड का विवाह हो गया। ब्रह्मा और विष्णु के वरदान के मद में चूर दैत्यराज शंखचूड ने तीनों लोकों पर स्वामित्व स्थापित कर लिया। देवताओं ने त्रस्त होकर विष्णु से मदद मांगी लेकिन उन्होंने खुद दंभ को ऐसे पुत्र का वरदान दिया था। तो देवताओं ने शिव से प्रार्थना की। तब शिव ने देवताओं के दुख दूर करने का निश्चय किया और वे चल दिए। लेकिन श्रीकृष्ण कवच और तुलसी के पतिव्रत धर्म की वजह से शिवजी भी उसका वध करने में सफल नहीं हो पा रहे थे। तब विष्णु ने ब्राह्मण रूप बनाकर दैत्यराज से उसका श्रीकृष्ण कवच दान में ले लिया। इसके बाद शंखचूड़ का रूप धारण कर तुलसी के शील का हरण कर लिया। अब शिव ने शंखचूड़ को अपने त्रिशुल से भस्म कर दिया और उसकी हड्डियों से शंख का जन्म हुआ। चूंकि शंखचूड़ विष्णु भक्त था। इसलिए लक्ष्मी-विष्णु को शंख का जल अति प्रिय है और सभी देवताओं को शंख से जल चढ़ाने का विधान है। लेकिन शिव ने उसका वध किया था तो शंख का जल शिव को निषेध बताया गया है। Conch Shell
शिव पूजा में इन चीजों की है मनाही
- भगवान शिव की पूजा में कुमकुम, रोली और हल्दी का प्रयोग नहीं किया जाता है.
- भगवान शिव एक ऐसे देवता हैं जो मात्र बेलपत्र और शमीपत्र आदि को चढ़ाने से प्रसन्न हो जाते हैं, लेकिन भूलकर भी उनकी पूजा में तुलसी का पत्र न चढ़ाएं.
- भगवान शिव का नारियल से अभिषेक नहीं करना चाहिए.
- भगवान शिव की पूजा में केतकी, कनेर, कमल या केवड़ा के फूल का प्रयोग नहीं करना चाहिए.
- भगवान् शिव की पूजा में शंख से जल चढ़ाना वर्जित है Conch Shell
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