अनंत चतुर्दशी का महत्व , मुहूर्त , पूजन विधि एवं उपाय – Anant Chaturdashi
Anant Chaturdashi गुरु माँ निधि जी श्रीमाली ने बताया है की अनंत चतुर्दशी का व्रत भादो मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है; कई जगह पर इस व्रत को अनंत चौदस के नाम से भी जाना जाता है। इस वर्ष 28 सितंबर को अनंत चतुर्दशी का पर्व मनाया जाएगा। गुरु माँ निधि जी श्रीमाली के अनुसार अनंत सूत्र को बांधने और व्रत रखने से व्यक्ति की कई प्रकार की बाधाओं से मुक्ति हो जाती है। यह व्रत विशेष रूप से भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इस व्रत को करने से भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। अनत चतुर्दशी के दिन ही भगवान् गणेश जी की 10 पूजा करने के पश्चात विसर्जन किया जाता है Anant Chaturdashi
अनन्त चतुर्द्दशी मुहूर्त
गुरु माँ निधि जी श्रीमाली के अनुसार भाद्रपद माह की चतुर्दशी तिथि 27 सितंबर को देर रात 10 बजकर 18 मिनट से शुरू होकर अगले दिन यानी 28 सितंबर को संध्याकाल 06 बजकर 49 मिनट पर समाप्त होगी। अतः 28 सितंबर को अनंत चतुर्दशी मनाई जाएगी। वहीं अनंत पूजा का शुभ मुहूर्त प्रातः काल 06 बजकर 12 मिनट से लेकर संध्याकाल 06 बजकर 49 मिनट तक है। Anant Chaturdashi
अनंत चतुर्दशी का महत्व
देशभर में यह पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है और हिंदू पुराणों में तो इसका काफी ज्यादा महत्व है। इसी दिन गणेश विसर्जन भी किया जाता है। अनंत चतुर्दशी के दिन ही गणेश उत्सव का अंत होता है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा की जाती है। अनंत चौदस का व्रत रखना काफी फलदाई माना जाता है। इस पर्व के अनुसार इस दिन अनंत सूत्र बांधा जाता है, यह अनंत सूत्र कपड़े सुतिया रेशम का बना हुआ होता है।
विधि पूर्वक पूजा करने के बाद यह सूत्र लोग अपने बाजू पर बांध लेते हैं। महिलाएं अपने बाएं हाथ पर जब कि पुरुष अपने दाएं हाथ पर अनंत सूत्र बांधते हैं। अनंत सूत्र बांधते वक्त वह अपने परिवार की दीर्घायु और अनंत जीवन की कामना करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस सूत्र को बांधने से सभी प्रकार की समस्याएं खत्म हो जाती हैं और जीवन में खुशियों का आगमन होता है। अनंत चतुर्दशी का पूर्ण लाभ लेने के लिए लोग व्रत के सभी नियमों को बहुत ही ध्यान से और संयम से मानते हुए पूरा करते हैं। कहते हैं कि इस दिन व्रत रखने से घर की नकारात्मक उर्जा, सकारात्मक ऊर्जा में बदल जाती है और घर की खुशहाली का कारण बनती है। Anant Chaturdashi
पूजा विधि
अनंत चतुर्दशी तिथि पर ब्रह्म बेला में उठें और भगवान नारायण को प्रणाम कर दिन की शुरुआत करें। इसके पश्चात, घर की साफ-सफाई कर गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। तदोउपरांत, आचमन कर पीले रंग का वस्त्र धारण करें। अब सबसे पहले भगवान भास्कर को जल का अर्घ्य दें। तत्पश्चात, पूजा गृह में चौकी पर वस्त्र बिछाकर भगवान नारायण की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। इसके समुख कलश स्थापित करें। कलश में अष्टदल कमल रखें। भगवान विष्णु के समक्ष अनंत रक्षा सूत्र रखें। घर में जितने लोग हैं, उतने रक्षा सूत्र रखें। अब भगवान नारायण के अनंत स्वरूप की विधि विधान से पूजा करें। आप चाहे तो पंडित जी से अनंत चतुर्दशी की पूजा करा सकते हैं। आरती अर्चना के समय भगवान विष्णु से सुख-समृद्धि की कामना करें। वहीं, पूजा समापन के बाद पुरुष दाहिने हाथ और महिलाएं अपने बाएं हाथ में बांधें। एक चीज का ध्यान रखें कि हाथ में हमेशा 14 गांठ वाला ही रक्षा सूत्र बांधें। Anant Chaturdashi
अनंत चतुर्दशी से जुड़ी हुई कथा
गुरु माँ निधि जी श्रीमाली के अनुसार यह कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है और यह कथा युधिष्ठिर से संबंधित है; कथा के अनुसार पांडवों के राज्य हीन होने के बाद श्री कृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी का व्रत रखने का सुझाव दिया। इसके बाद पांडवों ने हर हाल में राज्य वापस पाने के लिए व्रत करने के लिए सोचा परंतु उनके मन में कई प्रश्न थे। जिनका उत्तर उन्होंने श्री कृष्ण से पूछा जैसे कि यह अनंत कौन है और इस का व्रत क्यों करना है। उत्तर देते हुए श्री कृष्ण ने कहा कि श्री हरि के स्वरूप को ही अनंत कहा जाता है और यदि उनका व्रत रखा जाए तो ऐसा करने से जिंदगी में आने वाले सारे संकट खत्म हो जाते हैं। इस पर्व से एक और कथा प्रचलित है; उस कथा के अनुसार सुमंत नाम का एक वशिष्ठ गोत्र ब्राह्मण इसी नगरी में रहता था। उनका विवाह महा ऋषि भृगु की पुत्री दीक्षा से हुआ। इन दोनों की संतान का नाम सुशीला था। दीक्षा की जल्दी ही मृत्यु हो गई इसलिए सुमंत ने कर्कशा नामक कन्या से विवाह कर लिया। उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह कौंडिण्य मुनि से करवाया परंतु कर्कशा के क्रोध के चलते सुशीला एकदम साधन हीन हो गई और वह अपने पति के साथ जब एक नदी पर पहुंची तो उसने कुछ महिलाओं को व्रत करते हुए देखा। उसने भी अपनी समस्याओं के निवारण के लिए चतुर्दशी व्रत रखना शुरू किया और इस तरह व्रत रखने के बाद उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो गई। Anant Chaturdashi
अनंत सूत्र के 14 गांठ का रहस्य
- अनंत चतुर्दशी के दिन पूजा के बाद बाजू में बांधे जाने वाले अनंत सूत्र में चौदह गांठ होती है. शास्त्रों के अनुसार, ये 14 गांठ वाले सूत्र को 14 लोकों ( भूर्लोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपोलोक, ब्रह्मलोक, अतल, वितल, सतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल लोक) का प्रतीक माना जाता है. अनंत सूत्र के प्रत्येक गांठ प्रत्येक लोक का प्रतिनिधित्व करते हैं.
- साथ ही इसे भगवान विष्णु के 14 रूपों (अनंत, ऋषिकेश, पद्मनाभ, माधव, वैकुण्ठ, श्रीधर, त्रिविक्रम, मधुसूदन, वामन, केशव, नारायण, दामोदर और गोविन्द) का भी प्रतीक माना गया है.
- कहा जाता है कि,14 लोकों की रचना के बाद इनके संरक्षण व पालन के लिए भगवान 14 रूपों में प्रकट हुए थे और अनंत प्रतीत होने लगे थे. इसलिए अनंत को 14 लोक और भगवान विष्णु के 14 रूपों का प्रतीक माना गया है. इतना ही नहीं रेशम या कपास से बना यह सूत्र आपकी रक्षा भी करता है. इसलिए इसे रक्षा कवच कहा जाता है.
- पूजा के बाद इसे बाजू में बांधने से व्यक्ति को भय से मुक्ति मिलती है और पाप कर्म नष्ट हो जाते हैं. मान्यता है कि, जो व्यक्ति पूरे 14 वर्ष तक अनंत चतुर्दशी का व्रत करता है, पूजा-पाठ करता है और चौदह गांठ वाले इस अनंत सूत्र को बांधता है उसे भगवान विष्णु की कृपा से बैकुंठ की प्राप्ति होती है. Anant Chaturdashi
अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति जी का विसर्जन
अनंत चतुर्दशी के दिन Ganesh Chaturthi का अंत होता है तथा गणेश जी का विसर्जन किया जाता है। इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा है। कथा के अनुसार जिस दिन वेदव्यास जी ने महाभारत लिखने के लिए गणेश जी को महाभारत की कथा सुनानी शुरू की थी उस दिन भाद्र शुक्ल चतुर्दशी थी। कथा सुनाते समय वेदव्यास जी ने आंखें बंद कर ली थी और गणेश जी को लगातार 10 दिनों तक वह कथा सुनाते रहे थे। गणेश जी का काम कथा लिखना था और वह लगातार 10 दिनों तक तथा लिखते रहे। दसवे दिन जब वेदव्यास जी ने आंखें खोली तो उन्होंने देखा कि एक जगह बैठकर लगातार लिखते लिखते गणेश जी के शरीर का तापमान काफी ज्यादा बढ़ गया था। ऐसे में वेदव्यास जी ने गणेश जी को ठंडक प्रदान करने के लिए ठंडे जल में डुबकी लगाई; डुबकी लगाने के लिए वह उन्हें अलकनंदा और सरस्वती नदी के संगम पर ले गए। जिस दिन उन्होंने गणेश जी को डुबकी लगवाई उस दिन अनंत चतुर्दशी का दिन था। यही वजह है कि अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश चतुर्थी का अंत होता है और इस दिन गणेश जी का विसर्जन किया जाता है। 10 दिनों तक लगातार साधना करने के बाद उनका विसर्जन किया जाए तो इससे मनवांछित फल प्राप्त होते हैं। Anant Chaturdashi
अनंत चतुर्दशी व्रत नियम
कई भक्त भगवान विष्णु के प्रति भक्ति और कृतज्ञता के प्रतीक के रूप में अनंत चतुर्दशी पर व्रत रखते हैं। उपवास सूर्योदय से शुरू होता है और शाम की प्रार्थना के बाद समाप्त होता है। अनंत चतुर्दशी व्रत के दौरान, अनाज, दालों और कुछ सब्जियों का सेवन करने से बचना चाहिए। इसके बजाय फल, दूध और व्रत में खाई जाने वाली अन्य चीजों का सेवन किया जाना चाहिए। माना जाता है कि इस व्रत से आत्मिक शुद्धि और भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है। प्रार्थना और भक्ति पर ध्यान केंद्रित करते हुए पूरे दिन एक शांतिपूर्ण और सकारात्मक मानसिकता बनाए रखना महत्वपूर्ण है। इस दिन पूजा के बाद अनंत सूत्र बांधना न भूलें। Anant Chaturdashi
इन बातों का रखें खास ध्यान
अनंत चतुर्दशी मनाते समय, कुछ बातों को जरूर ध्यान में रखें। इस शुभ दिन पर शराब, मांसाहारी भोजन और प्याज / लहसुन का सेवन करने से बचना चाहिए। आंतरिक और बाहरी दोनों तरह से एक स्वच्छ और शुद्ध वातावरण बनाए रखने की सलाह दी जाती है। नकारात्मक विचारों या कार्यों में शामिल होने से बचें और इसके बजाय प्रार्थना, ध्यान और दान के कार्यों पर ध्यान केंद्रित करें। Anant Chaturdashi
गुरु माँ निधि जी श्रीमाली के अनुसार बताये गए अनंत चतुर्दशी के उपाय
- यदि आप मुसीबतों से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो अनंत चतुर्दशी के दिन 14 लौंग लगा हुआ लड्डू सत्यनारायण भगवान को चढ़ाएं। पूजा के बाद इसे किसी चौराहे पर रख दें। ऐसा करने से मुसीबतें आपसे दूर रहेंगी।
- अनंत चतुर्दशी के दिन कलाई पर चौदह गांठ युक्त रेशमी धागा जरूर बांधें। इस धागे को अनंतसूत्र कहा जाता है। मान्यता है कि विधिवत पूजा करके कलाई पर धागा बांधने से आत्मविश्वास में वृद्धि और सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
- अनंत चतुर्दशी के दिन सत्यनारायण भगवान की पूजा करें। साथ ही कलश पर 14 जायफल रखें। पूजा समाप्त होने के बाद इन जायफल को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। ऐसा करने से पुराना से पुराना विवाद भी खत्म हो जाता है।
- यदि आप या आपके परिवार का कोई सदस्य किसी पुरानी बीमारी से ग्रसित है, तो अनंत चतुर्दशी के दिन अनार उसके सिर से वार कर भगवान सत्यनारायण के कलश पर चढ़ाएं और फिर इसे किसी गाय को खिला दें। ऐसा करने से पुराना से पुराना रोग जल्दी ही ठीक होगा। Anant Chaturdashi
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