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जानिए पिंडदान क्या है पिंडदान का महत्व एवं नियम – Pind Daan

Pind Daan

जानिए पिंडदान क्या है पिंडदान का महत्व एवं नियम – Pind Daan

Pind Daan गुरु माँ निधि जी श्रीमाली ने बताया है की भाद्रपद मास की पूर्णिमा से ही श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान कार्य शुरू हो जाते हैं. श्राद्ध, तर्पण और पिंड दान में अंतर है और इनकी विधियां भी अलग-अलग हैं. ज्‍योतिष और धर्म में श्राद्ध को लेकर कहा गया है पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं. जबकि तर्पण में पितरों, देवताओं, ऋषियों को तिल मिश्रित जल अर्पित करके तृप्‍त किया जाता है. वहीं पिंडदान को मोक्ष प्राप्ति के लिए सहज और सरल मार्ग माना गया है. इसलिए पिण्डदान अथवा तर्पण के लिए बिहार स्थित गया जी को सर्वश्रेष्‍ठ जगह बताया गया है. हालांकि अब देश के कई पवित्र स्‍थलों पर पिंडदान, तर्पण कार्य किया जाने लगा है. Pind Daan

पिंडदान का महत्व

पिंडदान पितरों को संतुष्ट करने और कई पापों से मुक्ति पाने के लिए किया जाने वाला एक अत्यंत महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। यह अनुष्ठान मृतक की आत्मा को पुनर्जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त करता है। आत्मा को सांसारिक भौतिक मोह-माया से अलग करने के लिए भी पिंडदान जरूरी माना जाता है ताकि वह विकास के पथ पर आगे बढ़ सके। ऐसा माना जाता है कि यदि पिंडदान न किया जाए तो पितरों की आत्मा दुखी और अतृप्त रहती है। पुराणों के अनुसार, पिंडदान दिवंगत आत्मा को ज्ञान प्रदान करता है और उसे मोक्ष की ओर ले जाता है। परिवार की सुख-समृद्धि के लिए यह संस्कार बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। Pind Daan

पितृ पक्ष में कैसे करें पिंडदान

गुरु माँ निधि जी श्रीमाली  के अनुसार पिंडदान हमेशा बड़ा पुत्र ही कर सकता है। वही अपने सारे पूर्वजों का तर्पण और पिंडदान करता है। पितृ पक्ष के दौरान किसी धार्मिक स्थल पर जा कर तर्पण करना उचित माना जाता है। पिंडदान करने के लिए सबसे उत्तम स्थान गाया को माना गया है। यदि आप अपने पितरों का पिंडदान करना चाहते हैं तो गया जा   कर सकते हैं। पितृ पक्ष में किसी पंडितों द्वारा ही श्राद्ध कर्म या तर्पण करवाना चाहिए। पिंडदान करने के लिए सबसे पहले चावल में गाय का दूध, घी शहद और काले तिल मिला लें। उसके बाद उसका एक गोला बनाकर पिंड बना लें। उसके जनेऊ को दाएं कंधे पर रखकर दक्षिण की ओर मुख करके मंत्रों के साथ पूर्वजों को पिंड अर्पित करें। इस समय में पितरों के नाम पर दान पुण्य किये जाते हैं। इसके साथ ही बह्मणों को भोजन भी करवाया जाता है। यदि आप गाया में पिंडदान नहीं कर सकते तो अपने आसपास के धार्मिक स्थान पर जाकर पिंडदान कर सकते हैं Pind Daan

पिंडदान का पहला हक पुत्र को

धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि नरक से मुक्ति पुत्र द्वारा ही मिलती है। इसलिए पुत्र को ही श्राद्ध, पिंडदान का पहला अधिकारी माना गया है। पुत्र न होने पर परिवार के अन्य लोग या रिश्तेदार भी श्राद्ध कर सकते हैं।

1. पिता का श्राद्ध बेटे के द्वारा होना चाहिए।

2. बेटा न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है।

3. पत्नी न हो तो सगा भाई और उसके भी अभाव में अपने कुल के लोग कर सकते हैं।

4. एक से ज्यादा बेटे होने पर सबसे बड़ा पुत्र ही श्राद्ध करता है।

5. बेटी का पति और नाती भी श्राद्ध के अधिकारी हैं।

6. बेटा न होने पर पोता या प्रपौत्र भी श्राद्ध कर सकते हैं।

7. बेटा, पोता या प्रपौत्र भी न हो तो विधवा स्त्री श्राद्ध कर सकती है।

8. पत्नी का श्राद्ध तभी किया जा सकता है, जब कोई पुत्र न हो।

9. बेटा, पोता या बेटा का पुत्र न होने तो भतीजा भी श्राद्ध कर सकता है।

10. गोद लिया गया पुत्र भी श्राद्ध का अधिकारी होता है।

11. कोई न होने पर राजा को उसके धन से श्राद्ध करने का विधान है। Pind Daan

महिलाएं कर सकती हैं पिंडदान

गुरु माँ निधि जी श्रीमाली  के अनुसार महिलाएं भी पिंडदान कर सकती हैं। लेकिन इसके कुछ नियम है।  

  • अगर किसी व्यक्ति के पुत्र नहीं हैं, तो ऐसे में परिवार की महिलाएं यानी पुत्री, पत्नी और बहू अपने पिता के श्राद्ध और पिंड का दान कर सकती हैं। 
  • गुरु माँ निधि जी श्रीमाली  के अनुसार अगर कोई पुत्री सच्चे मन से अपने पिता का श्राद्ध करती है तो पुत्र के न होने पर भी पिता उसे स्वीकार कर आशीर्वाद देता है। 
  • यदि किसी के परिवार में श्राद्ध के समय पुरुष अनुपष्ठी हैं तो इस स्थिति में भी महिलाएं पिंड दान कर सकती हैं। 
  • कुछ धार्मिक ग्रंथ जैसे धर्मसिंधु ग्रंथ, मनुस्मृति, वायु पुराण, मार्कंडेय पुराण और गरुड़ पुराण में महिलाओं को तर्पण और पिंडदान करने का अधिकार बताया गया है। 
  • वाल्मीकि रामायण में भी सीता जी ने राजा दशरथ का पिंड दान किया था। Pind Daan

पिंडदान के नियम 

 पिंडदान कराते समय कुछ नियमों का पालन अवश्य किया जाना चाहिए.  

  •  पितृ पक्ष के दौरान कुत्ते, कौवे, गाय को भोजन अवश्य कराना चाहिए.  
  •  कुत्ता और कौवा पितृ के सबसे करीब होते हैं इन्हें भोजन कराने से वे तृप्त होते हैं.  – पिंडदान कराते समय स्टील के बर्तन का उपयोग न करें तो अच्छ रहेगा. इस दौरान आपको पीतल के बर्तन या फिर तांबे के बर्तन का उपयोग करना चाहिए. 
  •   पिंडान में शहद, तुलसी, दूध और तिल का सर्वाधिक महत्व है.  
  •  पिंडदान को स्वयं करने की कोशिश न करें इसे किसी अनुभवी ब्राहमण द्वारा ही कराएं.
  • पितरों की आत्मा की शांति के लिए इस श्राद्ध पक्ष में किसी पवित्र नदी के किनारे पिंडदान अवश्य करें. पिंडदान करने से वे प्रसन्न होंगे और मृत्युलोक तक का उनका सफर आसान और कष्ट मुक्त होगा.   Pind Daan

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