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जानिए कुशाग्रहणी अमावस्या का पौराणिक महत्व – Kushagrahani Amavasya

Kushagrahani Amavasya

जानिए कुशाग्रहणी अमावस्या का पौराणिक महत्व- Kushagrahani Amavasya

Kushagrahani Amavasya गुरु माँ निधि जी श्रीमाली ने बताया है की भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या 14 सितम्बर 2023 को मनाई जाएगी । इसी भादो अमावस्या को कुशाग्रहणी अमावस्या , कुश उत्पाटन, कुशोत्पाटिनी जैसे नामों से भी जानते हैं। कुशाग्रहणीअमावस्या का मतलब है कि कुश का उखाड़ना। आज के दिन कुश को विधिवत तरीके से उखाड़ा जाता है। इस कुश का इस्तेमाल पूरे साल देवी-देवता और पितरों की पूजा के लिए किया जाता है। इसके अलावा शादी-विवाह, मांगलिक कार्यों आदि में किया जाता है। भाद्रपद अमावस्या के दिन स्नान-दान करने का विशेष महत्व है Kushagrahani Amavasya

कुशाग्रहणी अमावस्या 2023 मुहूर्त 

गुरु माँ निधि जी श्रीमाली  के अनुसार भाद्रपद अमावस्या 14 सितंबर 2023 को सुबह 04 बजकर 48 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 15 सितंबर 2023 को सुबह 07 बजकर 09 मिनट पर इसका समापन होगा.

स्नान-दान समय – सुबह 04.43 – सुबह 05.19

अभिजित मुहूर्त – सुबह 11.52 – दोपहर 12.41 Kushagrahani Amavasya

कुश का महत्व

गुरु माँ निधि जी श्रीमाली  के अनुसार प्रत्येक पूजा-पाठ में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा होती और गणेश की पूजा में दूब या दूर्वा का प्रयोग होता है। शिव पार्वती जी को भी दूर्वा प्रिय है परंतु अन्य देवी-देवताओं की पूजा में किसी अन्य घास के प्रयोग का वर्णन नहीं मिलता है। कुश ही एक ऐसा इकलौता घास है जिसका प्रयोग न केवल प्रत्येक देवी-देवताओं के पूजन अनुष्ठान में होता है, बल्कि पितरों और प्रेतों के लिए किए जाने वाले कृत्यों में भी इसका इस्तेमाल अत्यंत प्रभावकारी माना गया है।  कुश द्वारा जल का छिड़काव करना तथा मंडप आदि की रचना में कुश का प्रयोग यह दर्शाता है कि जीवन में प्रत्येक कार्य में कुश कितना उपयोगी है। आपने देखा भी होगा कि कोई भी धार्मिक अनुष्ठान हो अथवा कोई पूजा-पाठ हो या कोई संस्कार हो, आपके पंडित जी अर्थात आपके पुरोहित जी आपको कुश की पवित्री धारण करवाते हैं। यह पवित्री कुश की बनी हुई मुद्रिका अर्थात अंगूठी होती है। हवन पूजन के अलावा भी पितृ आह्वाहन, श्राद्ध कर्म या अन्य पितृशांति कर्मों में पवित्री धारण कराई जाती है। इसको धारण करने या कराने का उद्देश्य ही होता है कि उस समय साधक का तन मन पवित्र हो जाए और साधक बाहरी बाधाओं से सुरक्षित हो जाए।  Kushagrahani Amavasya

कुशाग्रहणी अमावस्या का पौराणिक महत्व

इस दिन पितरों के लिये व्रत करने से पितरों की आत्मा को शान्ति प्राप्त होती है. शास्त्रों   में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है. इसलिए इस दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, दान-पुण्य का महत्व है.  इस  दिन तर्पण करने की मान्यता है कि इस दिन शिव के गणों भूत-प्रेत आदि सभी को स्वतंत्रता प्राप्त होती है. कुशाग्रहणी अमावस्या के दिन तीर्थ, स्नान, जप, तप और व्रत के पुण्य से ऋण और पापों से छुटकारा मिलता है. इस दिन शनिदेव के सम्पूर्ण परिवार का पूजन करने का विधान है जिन लोगों की जन्मकुंडली में पितृ दोष से संतान आदि न होने की आशंका है, उन्हें इस अमावस्या को पूजा-पाठ, दान अवश्य करना चाहिए.  Kushagrahani Amavasya

क्यों कहते हैं कुशग्रहणी अमावस्या

इस दिन वर्ष भर पूजा, अनुष्ठान या श्राद्ध कराने के लिए नदी, मैदानों आदि जगहों से कुशा नामक घास उखाड़ कर घर लाते हैं। धार्मिक कार्यों में इस्तेमाल की जाने वाली यह घास यदि इस दिन एकत्रित की जाए तो वह वर्ष भर तक पुण्य फलदायी होती है। बिना कुशा घास के कोई भी धार्मिक पूजा निष्फल मानी जाती है। इसलिए कुशा घास का उपयोग हिंदू पूजा पद्धति में प्रमुखता से किया जाता है। इस दिन तोड़ी गई कोई भी कुशा वर्ष भर तक पवित्र मानी जाती हैं। अत्यंत पवित्र होने के कारण इसका एक नाम पवित्री भी है। Kushagrahani Amavasya

कुशाग्रहणी अमावस्या के दिन करे महत्वपूर्ण कार्य 

1. इस दिन धार्मिक कार्यों के लिए कुशा एकत्रित कर कुश को घर में रखने से सुख-समृद्धि आती है। 

2. इस दिन देवी दुर्गा सहित सप्तमातृका एवं 64 अन्य देवियों की पूजा की जाती है।

3. इस दिन माता पार्वती ने इंद्राणी को इस व्रत का महत्व बताया था।

4. विवाहिताओं द्वारा संतान प्राप्ति एवं संतान की कुशलता के लिए व्रत किया जाता है

5. इस दिन नदी के तट पर पितरों की शांति के लिए पिंडदान करने का भी महत्व है। 

6. इस दिन कालसर्प दोष निवारण के लिए पूजा-अर्चना भी की जा सकती है।

7. इस दिन संध्याकाल में पीपल के पेड़ के नीचे सरसो के तेल का दीपक जलाने से आर्थिक समस्या का अंत हो जाता है।

8. अमावस्या शनिदेव का दिन भी माना जाता है। इसलिए इस दिन उनकी पूजा करने का भी महत्व है। Kushagrahani Amavasya

कुश से जुड़े नियम
जिस कुश घास में पत्ती हो, आगे का भाग कटा न हो और वो हरा हो, वह कुश देवताओं और पितरों की पूजा के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है. गुरु माँ निधि जी श्रीमाली के अनुसार, कुश को इस अमावस्या पर सूर्योदय के वक्त लाना चाहिए. यदि आप सूर्योदय के समय इसे न ला पाएं तो उस दिन के अभिजित या विजय मुहूर्त में घर पर लाएं. नियम है कि सूर्यास्त के बाद कुश को नहीं तोड़ना चाहिए. यदि कुश गंदे स्थान पर उगा है तो उसे न लाएं. कुश तोड़ने से पहले उनसे क्षमायाचना जरूर करें। इसके साथ ही प्रार्थना करते हुए कहे कि हे कुश  आप मेरे निमंत्रण को स्वीकार करें और मेरे साथ मेरे घर चलें। फिर ‘ऊं ह्रूं फट् स्वाहा’ मंत्र का जाप करते हुए कुश को उखाड़ना लें और उसे अपने साथ घर ले आएं और एक साल तक घर पर रखें और मांगलिक नामों के साथ पितरों का श्राद्ध  में इस्तेमाल कर सकते हैं।  Kushagrahani Amavasya

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