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क्यों कहते है भगवान् शिव को पंचानन जानिए भगवान् शिव के पंचानन रूप की कथा – Lord Shiva’s Panchanan form

Lord Shiva's Panchanan form

क्यों कहते है भगवान् शिव को पंचानन जानिए भगवान् शिव के पंचानन रूप की कथा – Lord Shiva’s Panchanan form

Lord Shiva’s Panchanan form गुरु माँ निधि जी श्रीमाली जी ने बताया है की भगवान शिव की कृपा और महिमा से ही पृथ्वी पर जीवन है। शिवजी ने ही पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति की। दरअसल जब श्रृष्टि की उत्पत्ति हुई थी तब मानव जीवन के लिए कुछ भी नहीं था। फिर भगवान शिव ने श्रृष्टि की रचना और जीवन के लिए पांच मुख धारण किए। इसलिए भी उन्हें पंचमुखी या पंचानन कहा जाता है। शिव के पांच मुख से जल, वायु, अग्नि, आकाश और पृथ्वी जैसे पांच तत्वों की उत्पत्ति हुई।  Lord Shiva’s Panchanan form

क्यों कहते हैं शिवजी को पंचानन

पंच यानी पांच और आनन यानी मुख। इसका अर्थ है पांच मुख वाले भगवान शिव। भगवान शिव के पांच मुख में अघोर, सद्योजात, तत्पुरुष, वामदेव और ईशान हैं। इसलिए उन्हें पंचानन या पंचमुखी कहा जाता है। शिवजी के इन सभी मुख में तीन नेत्र भी हैं, जिस कारण उनके कई नामों में एक नाम त्रिनेत्रधारी भी है। Lord Shiva’s Panchanan form

 भगवान शिव के पंचानन रूप की कथा

गुरु माँ निधि जी श्रीमाली के अनुसार, एक बार भगवान श्री हरि विष्णु ने मनोहर किशोर रूप धारण किया। उन्हें इस अत्यंत मनोहर रूप को देखने के लिए चतुरानन ब्रह्मा, बहुमुख वाले अनंत आदि सभी देवतागण आए। उन्होंने भगवान के रूपमाधुर्य का अधिक आनंद लिया और प्रशंसा की। ये देख शिवजी सोचने लगे कि यदि मेरे भी अनेक मुख और नेत्र होंगे तो मैं भी भगवान के इस किशोर रूप का सबसे अधिक दर्शन करता। शिवजी के मन में यह इच्छा जागृत हुई और उन्होंने पंचमुख व पंचानन रूप ले लिया Lord Shiva’s Panchanan form

भगवान शिव के पांच मुख  का वर्णन 

भगवान शिव के पांच मुख- सद्योजात, वामदेव, तत्पुरुष, अघोर और ईशान हुए और प्रत्येक मुख में तीन-तीन नेत्र बन गए। तभी से वे ‘पंचानन’ या ‘पंचवक्त्र’ कहलाने लगे। 

 भगवान शिव के पांच मुख चारों दिशाओं में और पांचवा मध्य में है।

-भगवान शिव के पश्चिम दिशा का मुख सद्योजात है। यह बालक के समान स्वच्छ, शुद्ध व निर्विकार है।

-उत्तर दिशा का मुख वामदेव है। वामदेव अर्थात् विकारों का नाश करने वाला।

-दक्षिण मुख अघोर है। अघोर का अर्थ है कि निन्दित कर्म करने वाला। निन्दित कर्म करने वाला भी भगवान शिव की कृपा से निन्दित कर्म को शुद्ध बना लेता है।

-भगवान शिव के पूर्व मुख का नाम तत्पुरुष है। तत्पुरुष का अर्थ है अपने आत्मा में स्थित रहना।

-ऊर्ध्व मुख का नाम ईशान है। ईशान का अर्थ है स्वामी। Lord Shiva’s Panchanan form

-भगवान शंकर के पांच मुखों में ऊर्ध्व मुख ईशान दुग्ध जैसे रंग का, पूर्व मुख तत्पुरुष पीत वर्ण का, दक्षिण मुख अघोर नील वर्ण का, पश्चिम मुख सद्योजात श्वेत वर्ण का और उत्तर मुख वामदेव कृष्ण वर्ण का है।

शिवपुराण में भगवान शिव कहते हैं- सृष्टि, पालन, संहार, तिरोभाव और अनुग्रह- मेरे ये पांच कृत्य (कार्य) मेरे पांचों मुखों द्वारा धारित हैं।

भगवान शिव की पांच विशिष्ट मूर्तियां (मुख) विभिन्न कल्पों में लिए गए उनके अवतार हैं। जगत के कल्याण की कामना से भगवान सदाशिव के विभिन्न कल्पों में अनेक अवतार हुए, जिनमें उनके सद्योजात, वामदेव, तत्पुरुष, अघोर और ईशान अवतार प्रमुख हैं।

ये ही भगवान शिव की पांच विशिष्ट मूर्तियां (मुख) हैं। अपने पांच मुख रूपी विशिष्ट मूर्तियों का रहस्य बताते हुए भगवान शिव माता अन्नपूर्णा से कहते हैं-‘ब्रह्मा मेरे अनुपम भक्त हैं। उनकी भक्ति के कारण मैं प्रत्येक कल्प में दर्शन देकर उनकी समस्या का समाधान किया करता हूं।’ Lord Shiva’s Panchanan form

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