वास्तु शास्त्र के लाभ और दोष
Vastu Shastra
पंडित एन एम श्रीमाली जी बताते है की संस्कृत में कहा गया है कि… गृहस्थस्य क्रियास्सर्वा न सिद्धयन्ति गृहं विना। [1] वास्तु शास्त्र घर, प्रासाद, भवन अथवा मन्दिर निर्मान करने का प्राचीन भारतीय विज्ञान है जिसे आधुनिक समय के विज्ञान आर्किटेक्चर का प्राचीन स्वरुप माना जा सकता है।
डिजाइन दिशात्मक संरेखण के आधार पर कर रहे हैं। यह हिंदू वास्तुकला में लागू किया जाता है, हिंदू मंदिरों के लिये और वाहनों सहित, बर्तन, फर्नीचर, मूर्तिकला, चित्रों, आदि। Vastu Shastra
दक्षिण भारत में वास्तु का नींव परंपरागत महान साधु मायन को जिम्मेदार माना जाता है और उत्तर भारत में विश्वकर्मा को जिम्मेदार माना जाता है।
हमारे ग्रंथ पुराणों आदि में वास्तु एवं ज्योतिष से संबंधित गूढ़ रहस्यों तथा उसके सदुपयोग सम्बंधी ज्ञान का अथाह समुद्र व्याप्त है जिसके सिद्धान्तों पर चलकर मनुष्य अपने जीवन को सुखी, समृद्ध, शक्तिशाली और निरोगी बना सकता है। प्रभु की भक्ति में लीन रहते हुए उसके बताये मार्ग पर चलकर वास्तुसम्मत निर्माण में रहकर और वास्तुविषयक ज़रूरी बातों को जीवन में अपनाकर मनुष्य अपने जीवन को सुखी व सम्पन्न बना सकता है। सुखी परिवार अभियान में वास्तु एक स्वतंत्र इकाई के रूप में गठित की गयी है और उस पर गहन अनुसंधान जारी है। असल में वास्तु से वस्तु विशेष की क्या स्थित होनी चाहिए। उसका विवरण प्राप्त होता है। श्रेष्ठ वातावरण और श्रेष्ठ परिणाम के लिए श्रेष्ठ वास्तु के अनुसार जीवनशैली और ग्रह का निर्माण अतिआवश्यक है। इस विद्या में विविधताओं के बावजूद वास्तु सम्यक उस भवन को बना सकते हैं। जिसमें कि कोई व्यक्ति पहले से निवास करता चला आ रहा है। वास्तु ज्ञान वस्तुतः भूमि व दिशाओं का ज्ञान है। Vastu Shastra
वास्तु के प्रादुर्भाव की कथा
भृगु, अत्रि, वसिष्ठ, विश्वकर्मा, मय, नारद, नग्नजित, भगवान शंकर, इन्द्र, ब्रह्मा, कुमार, नन्दीश्वर, शौनक, गर्ग, वासुदेव, अनिरुद्ध, शुक्र तथा बृहस्पति- ये अठारह वास्तुशास्त्र के [1] उपदेष्टा माने गये हैं जिसे मत्स्य रूपधारी भगवान ने संक्षेप में मनु के प्रति उपदेश किया था। प्राचीन काल में भयंकर अन्धक-वध के समय विकराल रूपधारी भगवान शंकर के ललाट से पृथ्वी पर स्वेदबिन्दु गिरे थे। उससे एक भीषण एवं विकराल मुखवाला उत्कट प्राणी उत्पन्न हुआ। वह ऐसा प्रतीत होता था मानो सातों द्वीपों सहित वसुंधरा तथा आकाश को निगल जायगा। तत्पश्चात् वह पृथ्वी पर गिरे हुए अन्धकों के रक्त का पान करने लगा। इस प्रकार वह उस युद्ध में पृथ्वी पर गिरे हुए सारे रक्त का पान कर गया। किंतु इतने पर भी जब वह तृप्त न हुआ, तब भगवान सदाशिव के सम्मुख अत्यन्त घोर तपस्या में संलग्न हो गया। भूख से व्याकुल होने पर जब वह पुन: त्रिलोकी को भक्षण करने के लिये उद्यत हुआ, तब उसकी तपस्या से संतुष्ट होकर भगवान शंकर उससे बोले-[2] Vastu Shastra
‘ निष्पाप! तुम्हारा कल्याण हो, अब तुम्हारी जो अभिलाषा हो, वह वर माँग लो’[3]
‘देव देवेश! मैं तीनों लोकों को ग्रस लेने के लिये समर्थ होना चाहता हूँ।’
इस पर त्रिशूलधारी शिव जी ने कहा-‘ऐसा ही होगा’। फिर तो वह प्राणी अपने विशाल शरीर से स्वर्ग, सम्पूर्ण भूमण्डल और आकाश को अवरुद्ध करता हुआ पृथ्वी पर आ गिरा, तब भयभीत हुए देवताओं तथा ब्रह्मा, शिव, दानव, दैत्य और राक्षसों द्वारा वह स्तम्भित कर दिया गया। उस समय जिसने उसे जहाँ पर आक्रान्त कर रखा था, वह वहीं निवास करने लगा। इस प्रकार सभी देवताओं के निवास करने के कारण वह वास्तु नाम से विख्यात हुआ। तब उस दबे हुए प्राणी ने भी सभी देवताओं से निवेदन किया-
‘देवगण! आप लोग मुझ पर प्रसन्न हों। आप लोगों द्वारा मैं दबाकर निश्चल बना दिया गया हूँ। भला इस प्रकार अवरुद्ध कर दिये जाने पर नीचे मुख किये हुए मैं किस तरह कब तक स्थित रह सकूँगा।’
उसके ऐसा निवेदन करने पर ब्रह्मा आदि देवताओं ने कहा-
‘वास्तु के प्रसंग में तथा वैश्वदेव के अन्त में जो बलि दी जायगी, वह निश्चय ही तुम्हारा आहार होगी। वास्तु-शान्ति के लिये जो यज्ञ होगा, वह भी तुम्हें आहार के रूप में प्राप्त होगा। यज्ञोत्सव में दी गयी बलि भी तुम्हें आहार रूप में प्राप्त होगी। वास्तु-पूजा न करने वाले भी तुम्हारे आहार होंगे। अज्ञान से किया गया यज्ञ भी तुम्हें आहार रूप में प्राप्त होगा।’ ऐसा कहे जाने पर वह वास्तु नामक प्राणी प्रसन्न हो गया। इसी कारण तब से शान्ति के लिये वास्तु-यज्ञ का प्रवर्तन हुआ [4] Vastu Shastra
वास्तुशास्त्र एवं दिशाएं
उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम ये चार मूल दिशाएं हैं। वास्तु विज्ञान में इन चार दिशाओं के अलावा 4 विदिशाएं हैं। आकाश और पाताल को भी इसमें दिशा स्वरूप शामिल किया गया है। इस प्रकार चार दिशा, चार विदिशा और आकाश पाताल को जोड़कर इस विज्ञान में दिशाओं की संख्या कुल दस माना गया है। मूल दिशाओं के मध्य की दिशा ईशान, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य को विदिशा कहा गया है।
वास्तुशास्त्र में पूर्व दिशा
वास्तुशास्त्र में यह दिशा बहुत ही महत्वपूर्ण मानी गई है क्योंकि यह सूर्य के उदय होने की दिशा है। इस दिशा के स्वामी देवता इन्द्र हैं। भवन बनाते समय इस दिशा को सबसे अधिक खुला रखना चाहिए। यह सुख और समृद्धि कारक होता है। इस दिशा में वास्तुदोष होने पर घर भवन में रहने वाले लोग बीमार रहते हैं। परेशानी और चिन्ता बनी रहती हैं। उन्नति के मार्ग में भी बाधा आति है।
वास्तुशास्त्र में आग्नेय दिशा
पूर्व और दक्षिण के मध्य की दिशा को आग्नेश दिशा कहते हैं। अग्निदेव इस दिशा के स्वामी हैं। इस दिशा में वास्तुदोष होने पर घर का वातावरण अशांत और तनावपूर्ण रहता है। धन की हानि होती है। मानसिक परेशानी और चिन्ता बनी रहती है। यह दिशा शुभ होने पर भवन में रहने वाले उर्जावान और स्वास्थ रहते हैं। इस दिशा में रसोईघर का निर्माण वास्तु की दृष्टि से श्रेष्ठ होता है। अग्नि से सम्बन्धित सभी कार्य के लिए यह दिशा शुभ होता है। Vastu Shastra
वास्तुशास्त्र में दक्षिण दिशा
इस दिशा के स्वामी यम देव हैं। यह दिशा वास्तुशास्त्र में सुख और समृद्धि का प्रतीक होता है। इस दिशा को खाली नहीं रखना चाहिए। दक्षिण दिशा में वास्तु दोष होने पर मान सम्मान में कमी एवं रोजी रोजगार में परेशानी का सामना करना होता है। गृहस्वामी के निवास के लिए यह दिशा सर्वाधिक उपयुक्त होता है।
वास्तुशास्त्र में नैऋत्य दिशा
दक्षिण और पश्चिक के मध्य की दिशा को नैऋत्य दिशा कहते हैं। इस दिशा का वास्तुदोष दुर्घटना, रोग एवं मानसिक अशांति देता है। यह आचरण एवं व्यवहार को भी दूषित करता है। भवन निर्माण करते समय इस दिशा को भारी रखना चाहिए। इस दिशा का स्वामी राक्षस है। यह दिशा वास्तु दोष से मुक्त होने पर भवन में रहने वाला व्यक्ति सेहतमंद रहता है एवं उसके मान सम्मान में भी वृद्धि होती है।
वास्तुशास्त्र में इशान दिशा
इशान दिशा के स्वमी शिव होते है, इस दिशा में कभी भी शोचालय कभी नहीं बनना चाहिये!नलकुप, कुआ आदि इस दिशा में बनाने से जल प्रचुर मात्रा में प्राप्त होत है Vastu Shastra
मानवीय जरूरतों के लिए सूर्य, वायु, आकाश, जल और पृथ्वी – इन पाँच सुलभ स्रोतों को प्राकृतिक नियमों के अनुसार प्रबन्ध करने की कला को हम वास्तुशास्त्र कह सकते हैं। अर्थात् पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश इन पाँच तत्त्वों के समुच्चय को प्राकृतिक नियमों के अनुसार उपयोग में लाने की कला को वास्तुकला और संबंधित शास्त्र को वास्तुशास्त्र का नाम दिया गया है। वर्तमान युग में वास्तुशास्त्र हमें उपरोक्त 5 स्रोतों के साथ कुछ अन्य मानव-निर्मित वातावरण पर दुष्प्रभाव डालने वाले कारणों पर भी ध्यान दिलाता है। उदाहरण के तौर पर विज्ञान के विकास के साथ विद्युत लाइनों, माइक्रोवेव टावर्स, टीवी, मोबाइल आदि द्वारा निकलने वाली विद्युत चुम्बकीय तरंगें आदि। ये मानव शरीर पर अवसाद, मानसिक तनाव, हड्डियों के रोग, बहरापन, कैंसर, चिड़चिड़ापन आदि उत्पन्न करने का एक प्रमुख कारण पायी गयी हैं। कैंसर जैसे महारोग के प्रमुख कारणों में विद्युत भी एक है। आधुनिक विज्ञान ने इन दुष्परिणामों को मापने के लिए मापक यंत्रों का भी आविष्कार दिया है, जिससे वातावरण में व्याप्त इनके घातक दुष्प्रभावों का मापन कर उन्हें संतुलित भी किया जा सके। पंचतत्त्वों से निर्मित मानव-शरीर के निवास, कार्यकलापों व शरीर से संबंधित सभी कार्यों के परिवेश अर्थात् वास्तु पर पाँचों तत्त्वों का समुचित साम्य एवं सम्मिलन आवश्यक है अन्यथा उस जगह पर रहने वाले व्यक्तियों के जीवन में विषमता पैदा हो सकती है।
हमारे पुराने मनीषियों ने वास्तुविद्या का गहन अध्ययन कर इसके नियम निर्धारित किये हैं। आधुनिक विज्ञान ने भी इस पर काफी खोज की है। विकसित यंत्रों के प्रयोग से इसको और अधिक प्रत्यक्ष व पारदर्शी बनाया है। शरीर पर हानिकारक प्रभाव डालने वाली उच्च दाब की विद्युत, चुम्बकीय, अल्फा, बीटा, गामा व रेडियो तरंगों के प्रभाव का मापन कर वास्तु का विश्लेषण किया जा सकता है। वर्तमान में हम किसी भी मकान, भूखंड, दुकान, मंदिर कारखाना या अन्य परिसर में वास्तु की निम्न तीन तरह से जाँचकर मानव-शरीर पर इसके प्रभावों की गणना कर सकते हैं। Vastu Shastra
परम्परागत वास्तुः विभिन्न दिशाओं में आकृति, ऊँचाई, ढाल तथा अग्नि, जल, भूमि, वायु, आकाश के परस्पर समायोजन के आधार पर।
वास्तु पर पड़े रहे प्रभावों का मापनः आधुनिक यंत्रों की सहायता से परिसर व भवन में व्याप्त प्राकृतिक व मानव निर्मित कृत्रिम वातावरण से उत्पन्न विद्युतीय एवं अन्य तरंगों के प्रभावों का अध्ययन (एन्टिना तथा अन्य वैज्ञानिक यंत्रों, गास मीटर, विद्युत दाब (E.M.F.) का मापन द्वार निर्मित वास्तु∕भूमि पर पड़ रहे विभिन्न प्राकृतिक व कृत्रिम प्रभावों का मापन न निष्कर्ष)।
वास्तु क्षेत्र एवं वहाँ के रहवासियों के आभामंडल(Aura) का फोटो चित्रण तथा रहवासियों के हाथ के एक्यूप्रेशर बिन्दुओं का अध्ययन आधुनिक विज्ञान ने परम्परागत वास्तु के नियमों को न केवल सही पाया बल्कि मानव निर्मित उच्च दाब की विद्युत लाइनों व अन्य कारणों, मकानों-परिसर व मानव शरीर पर इसके दुष्प्रभावों की जानकारी देकर इसे और व्यापक बनाया है। हाल ही में वास्तु के आभामंडल के चित्रण एवं एक्यूप्रेशर के यंत्रों द्वारा मानव शरीर पर वास्तु के प्रभावों के अध्ययन ने तो इसको और भी ज्यादा स्पष्ट कर प्रभावी विज्ञान का दर्जा दिया है। वास्तुशास्त्र के सिद्धान्तों का पालन करने से उनमें रहने वालों की भौतिक आवश्यकता के साथ-साथ मानसिक एवं आत्मिक शांति की प्राप्ति भी होती है। भवन कितना भी सुविधाजनक और सुन्दर हो यदि उसमें रहने वाले अस्वस्थ, अशांत अथवा अनचाही परिस्थितियों में घिर जाते हों और ऐच्छिक लक्ष्य की प्राप्ति न होकर अन्य नुकसान होता हो तो ऐसा भवन∕वास्तु को त्यागना अथवा संभव हो तो उसमें वास्तु अनुकूल बदलाव करना ही श्रेयस्कर होता है। वास्तु से प्रारब्ध तो नहीं बदलता परंतु जीवन में सहजता आती है। वास्तु सिद्धान्तों को मानने से जीवन के कठिन काल के अनुभवों में कठिनाइयों कम होती हैं और सुखद काल और भी सुखद हो जाता है।
वास्तु सिद्धान्तों के पालन से भवन की मजबूती, निर्माण अथवा लागत में कोई अन्तर नहीं आता केवल दैनिक कार्यों के स्थल को वास्तु अनुकूल दिशाओं में बनाना जरूरी होता है इस परिप्रेक्ष्य से वास्तु को “अदृश्य या अप्रगट भवन निर्माण तकनीक” (Invisible architecture) भी कहा जाता है। Vastu Shastra
03 जुलाई से 10 जुलाई तक गुप्त नवरात्रि पर्व है। इस दौरान देवी की पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्व माना जाता है। वास्तु में ऐसी कई वस्तुएं बताई गई हैं, जिनका खास संबंध किसी विशेष देवी-देवता या दिन से माना जाता है। वास्तु के अनुसार, देवी से संबंधित ये 5 चीजें नवरात्रि के दौरान घर में लाई जाएं तो देवी प्रसन्न होती हैं और घर-परिवार पर देवी की विशेष कृपा बनी रहती है।
पाना चाहते हैं देवी की विशेष कृपा तो नवरात्रि के दौरान घर में रखें ये 5 चीजें
1 कमल का फूल या तस्वीर
कमल का फूल देवी लक्ष्मी को विशेष रुप से प्रिय है।नवरात्रि के दौरान यदि घर में कमल का फूल या उससे संबंधी कोई तस्वीर लगाई जाए तो देवी लक्ष्मी की कृपा घर-परिवार पर हमेशा बनी रहती है।
2 चाँदी या सोने का सिक्का
नवरात्रि के दौरान घर में चाँदी या सोने का सिक्का लाना अच्छा माना जाता है। सिक्के पर यदि देवी लक्ष्मी या भगवान गणेशजी का श्रीचित्र अंकित हो तो और शुभ होगा।
3 देवी लक्ष्मी की ऐसी तस्वीर
घर में हमेशा धन-धान्य बनाए रखना चाहते हैं तो नवरात्रि के दौरान देवी लक्ष्मी की ऐसी तस्वीर घर में लाएँ जिसमें कमल के फूल पर माता लक्ष्मी बैठी दिखाई दे रही हो, साथ ही उनके हाथों से धन की वर्षा हो रही हो।
4 मोर पंख
देवी के सरस्वती स्वरूप में देवी का वाहन मोर माना जाता है, इसलिए नवरात्रि के दौरान घर में मोर पंख ला कर उसे मंदिर में स्थापित करने से कई फायदे होते हैं। Vastu Shastra
5 सोलह श्रृंगार का सामान
नवरात्रि के दौरान सोलह- श्रृंगार का सामान घर लाना चाहिए और उसे घर के मंदिर में स्थापित कर देना चाहिए। ऐसा करने से देवी माँ की कृपा हमेशा घर पर बनी रहती है। Vastu Shastra
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