जानिए त्रिपुण्ड की तीन रेखाओ का महत्व ,त्रिपुण्ड लगाने के लाभ एवं नियम – Tripund
Tripund गुरु माँ निधि जी श्रीमाली जी ने बताया है की हिंदू धर्म में तिलक लगाने की परंपरा प्राचीन है. धार्मिक ग्रंथों में विभिन्न प्रकार के तिलक लगाने का वर्णन मिलता है. मंदिरों या किसी भी मांगलिक कार्य में चंदन, रोली व सिंदूर का तिलक लगाया जाता है. वहीं, शिव भक्त साधू-संत अक्सर त्रिपुंड लगाते हैं, जिसका बड़ा ही महत्व होता है. त्रिपुंड का संबंध देवों के देव महादेव से है. शिवजी की पूजा में चंदन या भस्म का त्रिपुंड लगाना शुभ होता है. Tripund
त्रिपुंड की तीन रेखाओं का महत्व
गुरु माँ निधि जी श्रीमाली के अनुसार त्रिपुंड में तीन रेखाएं होती हैं. इन तीन रेखाओं का विशेष महत्व होता है क्योंकि इनमें 27 देवताओं का वास होता है. एक रेखा में 9 देवता वास करते हैं, इसलिए त्रिपुंड लगाने से 27 देवताओं का आशीर्वाद एक साथ प्राप्त होता है और भगवान शिव की कृपा बनी रहती है. Tripund
कौन से देव करते हैं वास
गुरु माँ निधि जी श्रीमाली के अनुसार, त्रिपुंड की तीन रेखाओं में से पहली रेखा में महादेव, अकार, रजोगुण, धर्म, गाहृपतय, पृथ्वी, हवन, क्रियाशक्ति, ऋग्वेद, प्रात: कालीन, दूसरी रेखा में महेश्वर, आकाश, अंतरात्मा, इच्छाशक्ति, दक्षिणाग्नि, ऊंकार, सत्वगुण, मध्याह्र हवन और तीसरी रेखा में शिव, आहवनीय अग्नि, ज्ञानशक्ति, सामवेद, तमोगुण, स्वर्गलोक, परमात्मा, तृतीय हवन वास करते हैं. Tripund
त्रिपुंड क्या है
ललाट आदि सभी स्थानों में जो भस्म से तीन तिरछी रेखाएं बनायी जाती हैं, उनको त्रिपुंड कहा जाता है। भौहों के मध्य भाग से लेकर जहां तक भौहों का अंत है, उतना बड़ा त्रिपुंड ललाट पर धारण करना चाहिए। मध्यमा और अनामिका अंगुली से दो रेखाएं करके बीच में अंगुठे से की गई रेखा त्रिपुंड कहलाती है। या बीच की तीन अंगुलियों से भस्म लेकर भक्ति भाव से ललाट में त्रिपुंड धारण करें। Tripund
शरीर के 32 हिस्से जहां लगाया जाता है त्रिपुंड मस्तक, ललाट, दोनों कान, दोनों नेत्र, दोनों कोहनी, दोनों कलाई, ह्रदय, दोनों पाश्र्व भाग, नाभि, दोनों घुटने, दोनों पिंडली और दोनों पैर भी शामिल हैं. दरअसल इन अंगों में अग्नि, जल, पृथ्वी, वायु, दस दिक्प्रदेश, दस दिक्पाल और आठ वसु वास करते हैं. शरीर के हर हिस्से में देवताओं का वास है. शास्त्रों के मुताबिक मस्तक में शिव, केश में चंद्रमा, दोनों कानों में रुद्र और ब्रह्मा, मुख में गणेश, दोनों भुजाओं में विष्णु और लक्ष्मी, ह्रदय में शंभू, नाभि में प्रजापति, दोनों उरुओं में नाग और नागकन्याएं, दोनों घुटनों में ऋषि कन्याएं, दोनों पैरों में समुद्र और विशाल पुष्ठभाग में सभी तीर्थ देवता रूप में रहते हैं. ‘त्रिपुंड हमेशा चंदन या भस्म से लगाया जाना चाहिए’ ज्योतिषी कहते हैं कि त्रिपुंड हमेशा चंदन या भस्म से लगाया जाना चाहिए. भस्म से त्रिपुंड लगाने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना भी बेहद जरूरी है. दरअसल भष्म जली हुई वस्तुओं की राख होती है. सभी राख भस्म के रूप में प्रयोग करने योग्य नहीं होती है. उन्हीं राख का भस्म प्रयोग करें जो पवित्र कार्य के हवन, यज्ञ से प्राप्त हुई हो. Tripund
भगवान शिव को त्रिपुंड लगाने से लाभ
- भगवान शिव को विधिवत तरीके से त्रिपुंड लगाने से वह जल्द प्रसन्न होते हैं।
- त्रिपुंड लगाने से 27 देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं.
- त्रिपुंड लगाने से बुरी शक्तियां से छुटकारा मिल सकता है।
- इसके साथ ही सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ाता है।
- महादेव को त्रिपुंड लगाने से चंद्र दोष से भी मुक्ति मिल जाती है।
- महादेव के आशीर्वाद से हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।
- महादेव के ललाट पर लगने वाला त्रिपुंड मात्र कोई तिलक नहीं है। इस त्रिपुंड में कई चमत्कारी शक्तियां छिपी हैं। माना जाता है कि जो भी व्यक्ति भगवान शिव को त्रिपुंड तिलक लगाने के बाद उसे प्रसाद रूप में अपने मस्तक पर धारण करता है उसके वैवाहिक जीवन (वैवाहिक जीवन के लिए वास्तु उपाय) में चल रही परेशानियां नष्ट हो जाती हैं।
- त्रिपुंड तिलक को प्रसाद रूप में लगाने से विवाह में हो रही देरी का भी अंत होता है। यदि किसी ग्रह दोष के कारण विवाह में अड़चन आ रही है तो त्रिपुंड तिलक के प्रभाव से वह ग्रह दोष स्वतः ही समाप्त हो जाता है। त्रिपुंड तिलक को प्रसाद में लगाने से भूत पाधा, प्रेत बाधा या किसीभी प्रकार की नकारात्मक शक्ति आपको छू भी नहीं पाती।
- त्रिपुंड तिलक लगाने से शिव कृपा हमेशा बनी रहती है और उसे जीवन में कभी कोई असफलता निराश नहीं करती। व्यक्ति कामयाब बनता है और उसके जीवन में अखंड शुभता का वास होता है। त्रिपुंड तिलक से व्यक्ति के अवगुणों में भी कमी आती है और उसका व्यक्तित्व सकारात्मक तौर पर और भी अच्छे से निखर पाता है। Tripund
त्रिपुंड तिलक लगाने के कुछ नियम
- त्रिपुंड तिलक को बहुत सावधानी से और शुद्धता के साथ लगाना चाहिए।
- त्रिपुंड तिलक सबसे पहले भगवान शिव को लगाएं फिर उसके बाद ही खुद के माथे पर उसे धारण करें।
- त्रिपुंड तिलक महादेव या स्वयं को लगाते समय इस बात का ध्यान रखें की आपने स्नान किया हो और स्वच्छ वस्त्र पहने हों।
- त्रिपुंड तिलक लगाते समय आपका मुख उत्तर दिशा की ओर हो।
- त्रिपुंड तिलक शैव परंपरा से जुड़ा है। ऐसे में इसे लगाते समय अनामिका उंगली, मध्यमा उंगली और अंगूठे का प्रयोग करें।
- दो उंगली और एक अंगूठे के माध्यम से माथे पर बाईं आंख की तरफ से दाईं आंख की तरफ आड़ी रेखा खींचें।
- विशेष बात त्रिपुंड का आकार इन दोनों आंखों के बीच में ही सीमित रहना चाहिए। Tripund
वैज्ञानिक की नजर में त्रिपुण्ड
विज्ञान ने त्रिपुण्ड को लगाने या धारण करने के लाभ बताएं हैं। विज्ञान कहता है कि त्रिपुण्ड चंदन या भस्म से लगाया जाता है। चंदन और भस्म माथे को शीतलता प्रदान करता है। अधिक मानसिक श्रम करने से विचारक केंद्र में पीड़ा होने लगती है। ऐसे में त्रिपुण्ड ज्ञान-तंतुओं को शीतलता प्रदान करता है। Tripund
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