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| श्राद्ध पक्ष |
24 September 2018 – 08 October 2018
श्राद्ध ( Shradh Paksh ) साधारण शब्दों में श्राद्ध का अर्थ अपने कुल देवताओं, पितरों, अथवा अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करना है। हिंदू पंचाग के अनुसार वर्ष में पंद्रह दिन की एक विशेष अवधि है। जिसमें श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। इन्हीं दिनों को श्राद्ध पक्ष, पितृपक्ष और महालय के नाम से जाना जाता है Shradh Paksh।
पंडित एन एम श्रीमाली के अनुसार श्रद्धा की प्रेरणा द्वारा जिस किसी व्यक्ति ने जो कोई भी कार्य किया। वे सभी कार्य इस परिभाषा के अनुरूप श्राद्ध ही कहलाता है। श्राद्ध एक परिभाषिक शब्द है। जो मृत व्यक्तियों के प्रति किया गया। एक औध्र्व दैहिक संस्कार है। जो वैदिक क्रियाओं द्वारा मृत पितरों के निमित्त अपने इच्छित भोज्य वस्तुओं को श्रद्धापूर्वक प्रदान किया जाता है। वही श्राद्ध कहा जाता है। केवल ब्राह्मण भोजन कराना ही श्राद्ध नहीं है। जो आजकल समय अभाव वश संकुचित अर्थों मे हो रहा है।
श्राद्ध Shradh Paksh के चार मुख्य अंग है। हवन, पिण्डदान, तर्पण और उत्तम व्यक्ति को भोजन करना ही है। हवन से देवों की तृप्ति होती है। पिण्डदान से पितरों को संतुष्टि होती है और सरोवर व स्नान कर जलाञ्जल्ली देते वक्त अपने अभीष्ठ मृत व्यक्ति का स्मरण करें और फिर बाद में उत्तम व्यक्तियों को भोजन कराए। यही श्राद्ध का सुगम और सरल रूप है। इस समय पितरों का स्मरण कर ध्यान लगते हुए जो कुछ क्रिया करते हैं। उनको तृप्ति प्राप्त होती ही है और आपको को भी सहायक होती है। आप द्वारा किया गया श्रद्धा पूर्वक यही श्राद्ध आपके पितरों को तृप्त करता हुआ आपको परिवार सहित शुभकामना भी देता है।
जाने कौन होते हैं पितर? Shradh Paksh
परिवार के दिवंगत सदस्य चाहे वह विवाहित हों या अविवाहित, बुजूर्ग हों या बच्चे, महिला हों या पुरुष जो भी अपना शरीर छोड़ चुके होते हैं। उन्हें पितर कहा जाता है। मान्यता है कि यदि पितरों की आत्मा को शांति मिलती है तो घर में भी सुख शांति बनी रहती है। पितर बिगड़ते कामों को बनाने में आपकी मदद करते हैं। लेकिन यदि आप उनकी अनदेखी करते हैं तो फिर पितर भी आपके खिलाफ हो जाते हैं और लाख कोशिशों के बाद भी आपके बनते हुए काम बिगड़ने लग जाते हैं।
जाने कब होता है पितृपक्ष ?
पंडित एम एन श्रीमाली के अनुसार हिन्दूओं के धार्मिक ग्रंथों में पितृपक्ष के महत्व पर बहुत सामग्री मौजूद हैं। इन ग्रंथों के अनुसार पितृपक्ष भाद्रपद की पूर्णिमा से ही शुरु होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलते हैं। दरअसल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष कहा जाता है। भाद्रपद पूर्णिमा को उन्हीं का श्राद्ध किया जाता है। जिनका निधन वर्ष की किसी भी पूर्णिमा को हुआ हो। कुछ ग्रंथों में भाद्रपद पूर्णिमा को देहत्यागने वालों का तर्पण आश्विन अमावस्या को करने की सलाह दी जाती है। शास्त्रों में वर्ष के किसी भी पक्ष (कृष्ण-शुक्ल) में, जिस तिथि को स्वजन का देहांत हुआ हो। उनका श्राद्ध कर्म पितृपक्ष की उसी तिथि को करना चाहिए।
2018 में कब है पितृपक्ष श्राद्ध Shradh Paksh
अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार वर्ष 2018 में Shradh Paksh पितृपक्ष का आरंभ 24 सितंबर को भाद्रपद पूर्णिमा से होगा। 8 अक्तूबर को सर्वपितृ अमावस्या पितृपक्ष की अंतिम तिथि रहेगी।
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