श्री शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रं
Shiv Panchakshar श्रीमाली जी के अनुसार इस स्तोत्र में भगवान् महादेव जी की प्रार्थना की गई है। ॐ नम: शिवाय पर निर्धारित यह श्लोक संग्रह अत्यंत मनमोहक रूप से शिवस्तुति कर रहा है। इस स्तोत्र के रचयिता परमपूज्य श्री आदि शंकराचार्य जी हैं जो महान शिव भक्त थे।शिव को प्रसन्न करने की चाह तथा उनकी शरणागत पाने के लिए भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र बहुत महत्व रखता है। चतुर्दशी तिथि को इस पंचाक्षरी मंत्र का जाप अवश्य ही किया जाना चाहिए ऎसा करने से मनुष्य सभी तीर्थों के स्नान का फल प्राप्त करता है।भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कई स्तुतियों की रचना प्राप्त होती हैं। इन सभी के मध्य में “श्री शिव पंचाक्षर स्त्रोत” एक महत्वपूर्ण मंत्र साधना है। इसका प्रतिदिन जाप करने से भगवान शंकर शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं तथा महादेव का आशिर्वाद एवं सानिध्य प्राप्त होता है।
श्री शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रं के पाँचों श्लोकों में क्रमशः न, म, शि, व और य है।
न, म, शि, व और य अर्थात् नम: शिवाय ।
इसलिए यह पञ्चाक्षर स्तोत्रं शिवस्वरूप माना जाता है।
।। श्री शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रम् ।।
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै ‘न’ काराय नम: शिवाय ॥1॥
मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय ।
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै ‘म’ काराय नम: शिवाय ॥2॥
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै ‘शि’ काराय नम: शिवाय ॥3॥
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय ।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै ‘व’ काराय नम: शिवाय ॥4॥
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै ‘य’ काराय नम: शिवाय ॥5॥
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥6॥
।। इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं शिवपञ्चाक्षरस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
या ते रुद्र शिवा
तनुर्घोराऽपापकाशिनी।
तया नस्तन्वा शन्तमया
गिरिशन्ताभि चाकशीहि।।
क्या हैं शिव और शक्ति?
शिव कारण हैं;
शक्ति कारक।
शिव संकल्प करते हैं;
शक्ति संकल्प सिद्धी।
शक्ति जागृत अवस्था हैं;
शिव सुशुप्तावस्था।
शक्ति मस्तिष्क हैं;
शिव हृदय।
शिव ब्रह्मा हैं;
शक्ति सरस्वती।
शिव विष्णु हैं;
शक्त्ति लक्ष्मी।
शिव महादेव हैं;
शक्ति पार्वती।
शिव रुद्र हैं;
शक्ति महाकाली।
शिव सागर के जल
सामन हैं।
शक्ति सागर की लहर हैं।
शिव तत्व और शून्य !! Shiv Panchakshar
शून्य से ही सृजन होता है
प्राणी अपने कर्मों के अनुसार
संसार विचरण करते हुए अंत
में शिव तत्व में विलीन हो
जाता है।
शक्तिविशिष्टाद्वैत के
अनुसार शिव तत्व
और शून्य !!
सत्य ही शिव है,शिव ही
सुन्दर है बाकी सब गौण।
एक शिव ही सृष्टि में सत्य
है,वही क्रिया शक्ति,चित
शक्ति एवं इच्छा शक्ति के
रुप में अर्धनारीश्वर है,शिव
के बायें भाग में शक्ति हैं।
वही शिव के एक रुप है
इच्छा,कामना व क्रिया
शक्तियों के द्वारा शिव
ही ब्रह्मा, विष्णु तथा
शंभु रूप धारण करते हैं।
इन तीन शक्तियों के लीन
होने पर वे तुरीया अवस्था
में निर्गुण परब्रह्म ही हैं।
अर्थात् शिव व प्रत्यगात्मा
में तादात्मय सम्बन्ध है।
शक्तियों में भेद होने पर
भी शक्तिमान शिव में
अभेद है।
जीव की जाग्रत,स्वप्न व सुषुप्ति
अवस्थाओं से शून्य दशा में तथा
शिव की निर्गुण दशा में कोई
भेद नहीं है। .
किसी भी धार्मिक संप्रदाय
का दार्शनिक पक्ष होता है।
पर उस दार्शनिक पक्ष को
समझना इतना सरल नहीं
होता।
कवि इसी दार्शनिक पक्ष
को सरल भाषा में कहते हैं।
लेकिन यह फिर भी ज़रूरी
नहीं कि वह ठीक-ठीक समझ
में आ जाए।
ऐसे पदों को समझने के लिए
दार्शनिक पक्ष का समझना भी
उतना ही आवश्यक है। Shiv Panchakshar
शक्तिविशिष्टाद्वैत के अनुसार
सभी कुछ शिव से निर्मित है
और सभी कुछ उसीमेंविसर्जित
होता है।
यह संसार,इसमें पल्लवित
जीवन तथा इसमें रही भावनाएं
सभी कुछ के निर्माण का कारण
यह पराशिव ही है,जो शून्य है।
शून्य से सभी कुछ निर्मित
हुआ है-
यह वीरशैव तत्त्व है।
प्रभु कहते हैं कि शून्य का
बीज है और शून्य की फसल है।
अर्थात् शिव का बीज है
और शिव की ही सृष्टि है।
सभी जीवों में शिव का
अंश है ही।
जो कुछ इस सृष्टि में प्रकट है,
दृश्यमान है वह उसी के रूप हैं।
अंत में सभी कुछ इसी पराशिव
में समाहित होता है।
जो इस शून्य की आराधना
करता है,उसकी मुक्ति
सुनिश्चित है।
वह फिर उस पराशिव
में समाहित हो जाएगा।
अगर शिव शून्य है तो
उसके अंश भी शून्य हैं।
समाहित हो जाना इतना
सरल नहीं है। Shiv Panchakshar
जब तक प्रभु की कृपा नहीं
होगी शिव और शून्यत्व का
शिव तत्व:जो सत् चित् आनन्द
नित परिपूर्ण रहते हुए(शून्य
स्थिति)सृष्टि स्थिति लय कार्य
करते हैं …
वही शिव.>>शून्य अर्थात
अवर्णनीय,अपरिमित,अविरल
(दुर्लभ),अखंड,शाश्वत चित्त
(चित्त -ज्ञान),शक्ति विशिष्ट
शिव का अव्यक्त रूप,
अनिर्वचनीय(वाचा जिसे
ना पकड़ पाए),अगोचर,
सिद्धांत शिखा मणि मे
इस तत्व के लिए वर्णन
आता है ..
”अपरप्रत्यम
(जो दूसरों को न दिखाया
जा सके)
शान्तम (शांत रूप)
प्रपंचैर अप्रपंचितम
(रूप रस आदि प्रपंचैर गुणों
की तरह जिसका वर्णन ना
किया जा सके…
वह इनसे नहीं जुड़ा है…)
निर्विकल्पम
(कल्पना से परे जिसकी
कल्पना भी नहीं कर सकते)
अनानार्थम
(अनेकानेक अर्थों से भी हम
जिसका अर्थ ना कर सकें)
एततत्वश्च लक्षणं
(यह उस तत्व का लक्षण है)” .
यह शिव तत्व(शून्य तत्व)
बौद्ध दर्शन के शून्य तत्व
जैसा नहीं है..
यह कर्तुं अकर्तुम अन्यथा
कर्तुं समर्थ है …
यह पूर्ण का जन्म दाता है …
अनंत पूर्ण को समाहित करने
वाला है)यह इच्छा कर सकता
है …
कामना कर सकता है ..
और क्रिया करके त्रिगुणात्मक
सृष्टि उत्पन्न कर सकता है।
दो शक्तियों से विवाह
१.इच्छा/संकल्प शक्ति
अर्थात दाक्षायनी/सती
२.क्रिया/धारणा शक्ति
अर्थात उमा/पार्वती
महाशिवरात्री को शून्य रूप
शिव जी ने संकल्प किया …
अर्थात दक्ष सुता(अहंकार के
कारण उत्पन्न इच्छा शक्ति )से
विवाह किया(शिव जी ऐसे
शून्य हैं जिसमे पूर्ण भी
समाहित है …
तथा यह शून्य स्वयं को बदल
भी सकता है ..इच्छा करके)…
दक्ष यज्ञ मे दाक्षायनी का हवन
कुंड मे भस्मीभूत होना अर्थात
शून्य रूप शिव जी की इच्छा
को तप/साधना से और बल
मिलना
(तपः द्वंद् सह्नम)…
दक्ष अहंकार(जो महाकारण
शरीर मे है/व्याप्त है)के प्रतीक
हैं…
उनकी कन्या इच्छा शक्ति
(संकल्प शक्ति)का भस्म
होना अर्थात उसे साधना
के माध्यम से क्रिया के
लिए प्रेरित होना …
क्रिया स्थूल शरीर का
द्योतक है।
इच्छा दक्ष यज्ञ मे भष्म होकर
कामना रूप मे प्रकट हुई।
इच्छा >>कामना >>क्रिया
-इच्छा >>>कामना
(बलवती इच्छा,जो गुणात्मक
रूप से बाल पूर्वक क्रिया करने
की इच्छा ,,,
जो इन्द्रियों को अपनी ओर
खीचता है….
इन्द्रियों को बल पूर्वक कर्म
करने की प्रेरणा देती है)
>>>क्रिया
शिव जी द्वारा काम दहन
अर्थात क्रिया शक्ति के लिए
उत्प्रेरक प्रयत्न..
काम शिव जी का सहयोगी
है लीला के लिए..क्रिया के
लिए तत्पश्चात क्रिया/धारणा
शक्ति अर्थात पार्वती से विवाह
अर्थात क्रिया शक्ति के साथ
संलग्नता…व पञ्च भूत की
उत्पत्ति…स्थूल शरीर
भगवान शिव तथा माता
पार्वती के कारण ही मथुनी
सृष्टि प्रारंभ हुआ।
उसके पूर्व मानस सृष्टि(ब्रह्म)
विद्यमान थी।
अहंकार
महाकारण शरीर इच्छा करना
(अहंकार के फलस्वरूप)…
कारण
शरीर कामना..सूक्ष्म शरीर क्रिया
रूप मे बदलना..स्थूल शरीर
न मृत्युर्न शङ्का न मे जातिभेदः
पिता नैव मे नैव माता न जन्मः।
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यं
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम्
शिवोऽहम्॥
न (मेरी)मृत्यु है,
न इसकी कोई शंका है,
न मेरे लिए कोई जातिभेद है,
न (मेरे)कोई पिता है,
न ही माता है,
न (मेरा)जन्म है।
न (मेरा)भाई है,न मित्र है,
न ही कोई गुरु या शिष्य है,
मैं कल्याणकारी,
चिदानंद रूप शिव हूँ।
क्या हैं शिव और शक्ति?शिव कारण हैं;
शक्ति कारक।
शिव संकल्प करते हैं;शक्ति संकल्प सिद्धी।
शक्ति जागृत अवस्था हैं;
शिव सुशुप्तावस्था।शक्ति मस्तिष्क हैं;
शिव हृदय।शिव ब्रह्मा हैं;
शक्ति सरस्वती।
शिव विष्णु हैं;
शक्त्ति लक्ष्मी।
शिव महादेव हैं;
शक्ति पार्वती।
शिव रुद्र हैं;
शक्ति महाकाली।
शिव सागर के जल
सामन हैं।
शक्ति सागर की लहर हैं।
शिव सागर के जल के
सामान हैं तथा शक्ति
लहरों के सामान हैं।
लहर क्या है ?
जल का वेग।
जल के बिना लहर का
क्या अस्तित्व है ?
और वेग बिना सागर
अथवा उसके जल का ?
यही है शिव एवं उनकी
शक्ति का संबंध।
परम शिव भक्त काग भुशुण्डि
ने जब अपने गुरू की अवहेलना
की तो वे शिव के क्रोध-भाजन
हुए।
अपने शिष्य के लिए क्षमादान
की अपेक्षा रखने वाले सहृदय
गुरू ने रूद्राष्टक की रचना की
तथा महादेव को प्रसन्न किया।
सम्पुर्ण कथा रामचरितमानस
के उत्तरकाण्ड में वर्णित है।
नमामी शमीशान निर्वाण रूपं,
विभुं व्यापकं,ब्रह्म वेदस्वरूपम्।
निजं,निर्गुणं,निर्विकल्पं,निरीहं,
चिदाकाशं आकाशवासं भजेहं।।
निराकारं ॐकार मुलं तुरीयं,
गिरा ज्ञान गोती-तमीशं गिरीशम्।
करालं महाकाल कालं कृपालं,
गुणागार संसार-पारं नतोअहम।।
तुषाराद्रि-संकाश-गौरं गंभीरं,
मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू
गंगा,लसद भाल बालेन्दू कण्ठेभुजंगा॥
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं,
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्।
मृगाधीश-चर्माबरं मुण्डमालं,
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि॥
प्रचण्डं,प्रकृष्टं,प्रगल्भं,परेशं,
अखंडं अजं भानुकोटि-प्रकाशम्।
त्रय:शूल निर्मूलनं शूलपाणिं,
भजे अहं भवानीपतिं भाव गम्यम्॥
कलातीत-कल्याणकल्पांतकारी,
सदा सज्जनानन्द दातापुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी,
प्रसीद-प्रसीद प्रभो मन्माथारी॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं,
भजंतीह लोके परे वा नाराणम्।
न तावत्सुखं शांति संताप नाशं,
प्रसीद प्रभो सर्वभुताधिवासम् ॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजाम्,
नतोहं सदा सर्वदा शम्भु ! तुभ्यम।
जरा जन्म दु:खौद्य तातप्यमानं,
प्रभो ! पाहि आपन्नमामीश शम्भो॥
रूद्राष्टक इदं प्रोक्तं विप्रेण
हरतोषये,ये पठंति नरा
भक्त्या तेषां शम्भु प्रसीदति॥
हे मोक्ष रूप(आप
जो)सर्वव्यापक हैं,
ब्रह्म और वेद् स्वरूप
हैं,माया,गुण,भेद,इच्छा
से रहित हैं,चेतन,आकाश
रूप एवं आकाश को ही
वस्त्ररूप को धारण करने
वाले हैं, Shiv Panchakshar
आपको प्रणाम करता हूँ।
हे निराकार आप जो कि
ॐ कार के भी मूल हैं,तथा
तीनों गुणों(सद-रज-तमस)
से पृथक हैं,वाणी-ज्ञान-इंद्रियों
से परे हैं,महाकाल के भी काल
हैं,मैं ऐसे कृपालु,गुणों के भंडार,
एवं सृष्टि से परे आप परम देव
को नमस्कार करता हूँ।
हे शिव,आप हिमालय पर्वत के
समक्ष गौर वर्ण वाले तथा गंभीर
चित वाले हैं तथा आपके शरीर
की कांति करोडों कामदेवों की
ज्योति के सामान है।
आपके शिश पर गंगाजी,ललाट
पर दूज का चन्द्रमा तथा गले में
सर्प माल शोभायमान है।
कानों में झिलमिलाते कुण्ड्ल
से सोभायमान तथा विशाल
नेत्रों एवं सुन्दर भौंहें वाले,
हे नीलकंठ,हे सदा प्रसन्नचित
रहने वाले परम दयालु,मृगचर्म
एवं मुण्डमाल धारण करने
वाले,सबके प्रिय और स्वामी,
हे शंकर! मैं आपको भजता हूँ।
आप प्रचण्डरूद्रस्वरूप,
उत्तम,तेजवान,परमेश्वर,
अखंड,जन्मरहित,करोडों
सूर्यों के सामान प्रकाशमान,
तीनों प्रकार के दुःखो को हरने
वाले,हाथों मे शूल धारण करने
वाले,एवं भक्ति द्वारा प्राप्त होने
वाले हैं।
हे माँ भवानी के स्वामि,
मैं आपको भजता हूँ।
आप(सोलह)कलाओं से पृथक,
कल्यानकारी,कल्पचक्र के
नियन्ता,सज्जनों को आनन्द
प्रदान करने वाले,सत,चित,
आनन्द स्वरूप त्रिपुरारी हैं।
हे प्रभु ! आप मुझपर प्रसन्न
होएं। प्रसन्न होएं।
जबतक उमापति के चरणरूप
कमलों को प्राणी नहीं भजते,
या उनका ध्यान नहीं करते
तबतक उन्हे इस लोक या
परमलोक में सुख-शांति
नहीं मिलती। Shiv Panchakshar
हे सभी प्राणियों में वास करने
वाले,प्रभु,आप प्रसन्न हों।
हे शम्भुं! मैं पुजा-जप-तप-योग
आदि कुछ भी नहीं जानता;मैं
सदैव आपको प्रणाम करता हूँ।
जन्म,अवस्था रोग आदि दुःखों
से पीडित मुझ दीन की आप
रक्षा करें!
हे प्रभु मैं आपको प्रणाम
करता हूँ।
ब्राह्मण द्वारा कहा गया हे
रूद्राष्टक भगवान शिव
की प्रसन्नता के लिए है।
जो व्यक्ति श्रद्धा भक्ति से
इसका पाठ करते हैं,उनपर
शिव सदैव प्रसन्न रहते हैं।
#साभार_संकलित
ॐ नमस्ते रुद्र मन्यव
उतो त इषवे नमः।
बाहुभ्यामुत ते नमः।।
या ते रुद्र शिवा
तनुर्घोराऽपापकाशिनी।
तया नस्तन्वा शन्तमया
गिरिशन्ताभि चाकशीहि।।
समस्त चराचर प्राणियोँ एवं
सकल विश्व का कल्याण
करो प्रभु महादेव
जयति पुण्य सनातन संस्कृति
जयति पुण्य भूमि भारत
कष्ट हरो,काल हरो
दुःख हरो,दारिद्रय हरो
हर हर महादेव
सदा सर्वदा सुमंगल
ॐ नमः शिवाय
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