Description
Narmadeshwar Shivling
Narmadeshwar Shivling is found only on this land in the river Narmada. This is the self-sacrificing Shivling. In it, the Nirguna, the formless Brahma Lord Shiva is himself reputed. Narmadeshwar Linga is considered as self-conscious like sex trash, it does not require prana-prestige. Narmadeshwar Shivling is called Vaingling because Banasur had been honored by Mahadevji with austerity that he would always be seen in Amarkantak mountain on the lineup. Narmada river flows through this mountain with which the stones flow through the mountain, hence they are considered as Shiva Shiva and they are called ‘Banning’ and ‘Narmadeshwar’.
The Glory of Narmadeshwar Shivling:
With the effect of worshiping the Sahasratsa, they are more than seventeen more than the worship of the clay gender. The effect of worshiping thousands of clay sexes is done by worshiping over a hundred times the fruit of Balalinga. Hence, for household welfare, for the welfare of the family, worship of Narmadeshwar Shivling should be worshiped every day for the attainment of Lakshmi and knowledge and for the destruction of diseases.
Keeping the Narmadeshwar Shivling in the house, keep these things in mind
With the heart of Goddess Devdhadeva Mahadev meditating and praying in the Narmada river, the Shivling that comes in hand can make it a home, and that can change your destiny. But after shifting the river from the river or buying it from the market, first install Shivaling at home – Chunky, very thin, extremely thick, flattened, crippled, tikona gender barred for people.
It is considered best to set up Shivling in the house equal to the length of the thumb. Shivaling should be beautifully circular (spherical) – according to the appearance of pomegranate or poultry eggs or kalagatta. It is white, blue and honey-colored. Worshipping Shivlinga on the altar (waterfall) and doing puja. The altar is made of copper, rhinestone, gold, silver, stone or rupee.
नर्मदेश्वर शिवलिंग
शिव लिंग को भगवान शिव का निराकार स्वरुप माना जाता है. शिव पूजा में इसकी सर्वाधिक मान्यता है. शिवलिंग में शिव और शक्ति दोनों ही समाहित होते हैं. शिवलिंग की उपासना करने से दोनों की ही उपासना सम्पूर्ण हो जाती है.
विभिन्न प्रकार के शिव लिंगों की पूजा करने का प्रावधान है. जैसे- स्वयंभू शिवलिंग, नर्मदेश्वर शिवलिंग, जनेउधारी शिवलिंग, सोने और चांदी के शिवलिंग और पारद शिवलिंग. इनमें से नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और फलदायी मानी जाती है.
नर्मदेश्वर शिवलिंग को सर्वाधिक शक्तिशाली और पवित्र क्यों माना जाता है ?
– नर्मदेश्वर शिवलिंग कहा मिलता है ? नर्मदा नदी से निकलने वाले शिवलिंग को नर्मदेश्वर कहा जाता है.
– नर्मदेश्वर शिवलिंग की पहचान ? नर्मदा नदी को शिव के वरदान के कारण इससे प्राप्त होने वाले शिवलिंग को इतना ज्यादा पवित्र माना जाता है.
– भगवान शिव के वरदान के कारण नर्मदा नदी का कण-कण शिव माना जाता है.
– नर्मदा नदी के शिवलिंग को सीधा ही स्थापित किया जा सकता है, इसके प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती है.
– कहा जाता है कि, जहां नर्मदेश्वर का वास होता है, वहां काल और यम का भय नहीं होता है.
– व्यक्ति समस्त सुखों का भोग करता हुआ शिवलोक तक जाता है.
नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा विधि?
– प्रातःकाल स्नान करके शिवलिंग को एक थाल या बड़े पात्र में रखें.
– बेलपत्र और जल की धारा अर्पित करें.
– इसके बाद शिव जी के मंत्रों का जाप करें.
– थाल या पात्र में एकत्रित जल को पौधों में डाल सकते हैं.
अगर आप अपने काम काज की व्यस्थ्ता के कारण नर्मदेश्वर शिवलिंग नही स्थापित कर पाते है तो आप नर्मदेश्वर शिवलिंग लॉकेट अपने गले में धारण कर सकते है जितना फल आपको पूजा करने से मिलता है| उतना ही फल नर्मदेश्वर शिवलिंग लॉकेट को गले में धारण करने से मिलता है|
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