जानिए कैसे पड़ा भगवान् शिव का नाम नीलकंठ ,एवं किस प्रकार भगवान् शिव के विष के प्रभाव को काम किया गया – Neelkanth Mahadev
Neelkanth Mahadev भगवान शिव को उनके भक्त कई नामों से बुलाते हैं. कोई उन्हें भोलेनाथ कहता है तो कोई महादेव और महेश कहकर पुकारता है. शिव को भोले इसलिए भी कहते हैं,वो अपने भक्तों के बीच भेद नहीं करते और उन्हें प्रसन्न करने के लिए भी अन्य देवी देवताओं की तरह महंगी या दुर्लभ चीजों का चढ़ावा नहीं चढ़ाना पड़ता. भगवान शिव के अनगिनत नामों में एक नाम है नीलकंठ. भोलेनाथ को उनके भक्त नीलकंठ के नाम से भी जानते हैं Neelkanth Mahadev
कैसे पड़ा भगवान् शिव का नाम नीलकंठ
गुरु माँ निधि जी श्रीमाली के मुताबिक देवताओं और राक्षसों के बीच एक बार अमृत के लिए समुद्र मंथन हुआ था. यह मंथन दूध के सागर (क्षीरसागर) में हुआ. इसमें से लक्ष्मी, शंख, कौस्तुभमणि, ऐरावत, पारिजात, उच्चैःश्रवा, कामधेनु, कालकूट, रम्भा नामक अप्सरा, वारुणी मदिरा, चन्द्रमा, धन्वन्तरि, अमृत और कल्पवृक्ष ये 14 रत्न निकले थे. अपनी चतुराई से देवता इनमें से अमृत ले जाने में सफल हो गए. लेकिन इनके साथ ही निकला विष. यह विष इतना खतरनाक था कि इसकी एक बूंद पूरे संसार को खत्म करने की शक्ति रखती थी. इस बात को जानकर देवता और राक्षस भयभीत हो गए और इसका हल ढूंढने शिव जी के पास पहुंचे. भगवान शिव ने इसका एक हल निकाला कि इस विष का पूरा घड़ा वो खुद पिएंगे. शिव जी ने वो घड़ा उठाया और उन्होंने भयंकर विष को हथेलियों में भरा और भगवान विष्णु का स्मरण कर उसे पी गए। भगवान विष्णु अपने भक्तों के संकट हर लेते हैं। उन्होंने उस विष को शिवजी के कंठ में ही रोक कर उसका प्रभाव समाप्त कर दिया। विष के कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया और वे संसार में नीलंकठ के नाम से प्रसिद्ध हुए। जिस समय भगवान शिव विषपान कर रहे थे, उस समय विष की कुछ बूंदें नीचे गिर गईं। जिन्हें बिच्छू, सांप आदि जीवों और कुछ वनस्पतियों ने ग्रहण कर लिया। इसी विष के कारण वे विषैले हो गए। विष का प्रभाव समाप्त होने पर सभी देवगण भगवान शिव की जय-जयकार करने लगे। Neelkanth Mahadev
विष के प्रभाव से राहत के लिए भगवान् शिव को की खिलाया गया
गुरु माँ निधि जी श्रीमाली ने बताया है की भगवान शिव ने सृष्टि को बचाने के लिए हलाहल विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला और उनका पूरा शरीर बेहद गर्म हो गया।विष का असर सिर्फ उनके शरीर तक न रहा, बल्कि उसकी वजह से आसपास का वातावरण भी गर्म होने लगा। इसे ठंडा करने का उपाय देवताओं ने बेलपत्र के रूप में निकाला। उन्हें पता था कि बेलपत्र विष के प्रभाव को कम करता है, इसलिए शिवजी को बेलपत्र खिलाना शुरू किया गया। भोलेनाथ को शीतल रखने के लिए उन पर जल भी अर्पित किया गया। बेलपत्र और जल के प्रभाव से भोलेनाथ के शरीर की गर्मी धीरे-धीरे शांत होने लगी। कहा जाता है कि तभी से शिवजी पर जल और बेलपत्र चढ़ाने की प्रथा शुरू हुई। Neelkanth Mahadev
गौमाता कामधेनु के दूध से विष का असर कुछ कम हुआ
समुद्र मन्थन से जब गौमाता कामधेनु अवतरित हुयी तो सभी देवताओं ने शिवजी से कामधेनु गाय का दूध ग्रहण करने का निवेदन किया। लेकिन अपने जीव मात्र की चिंता के स्वभाव के कारण भगवान शिवजी ने दूध से उनके द्वारा ग्रहण किये जाने की आज्ञा मांगी। स्वभाव से शीतल और निर्मल दूध ने शिवजी के इस विनम्र निवेदन को तत्काल ही स्वीकार कर लिया।
शिवजी ने दूध ग्रहण किया जिससे विष की तीव्रता काफी सीमा तक कम हो गयी परन्तु उनका कंठ हमेशा के लिए नीला ही रह गया। मान्यता है कि क्योंकि दूध ने कठिन समय में बिना अपनी चिंता किए संसार के प्राणिमात्र की सहायता के लिए शिवजी के पेट में जाकर विष की तीव्रता को सहन किया इसलिए शिवजी को दूध अत्यधिक प्रिय है। Neelkanth Mahadev
क्यों विराजमान है शिव के शीश पर चन्द्रमा Neelkanth Mahadev
विष का घातक प्रभाव शिवजी पर और शिवजी की जटा में विराजमान देवी गंगा पर पड़ने लगा। ऐसे में शिवजी की व्याकुलता को शांत करने के जल की शीतलता भी काफी नहीं थी। कहते हैं कि ऐसे व्याकुलता के समय पर अपने मस्तक को शीतल रखने के लिये शिवजी ने चन्द्रमा को अपने बाल पर सजा लिया था. Neelkanth Mahadev
क्यों रहता है शिवजी के गले में सर्प का हार
शिवजी के विषपान करते समय जो विष की कुछ बूंदें इधर उधर गिर गयी थीं उन्हें साँप बिच्छू आदि कुछ जीवों ने ग्रहण कर लिया और विष की उन बूंदों को धरती पर फैलने से रोक दिया। इसीलिये शिवजी को सांप भी बहुत प्रिय है क्योंकि सांपों ने विष के प्रभाव को कम करने के लिए विष की तीव्रता स्वंय में समाहित कर ली थी इसलिए अधिकतर सांप जहरीले होते हैं। Neelkanth Mahadev
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