|माँ सिद्धिदात्री |
दुर्गा का नोवां स्वरूप माँ सिद्धिदात्री Navratri Day 9 Maa Siddhidhatri
Navratri Day 9 Maa Siddhidhatri माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है।
पंडित एन एम श्रीमाली के अनुसार देवी सिद्धिदात्री का वाहन सिंह है। वह कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। विधि-विधान से नौंवे दिन इस देवी की उपासना करने से सिद्धियां प्राप्त होती हैं। यह अंतिम देवी हैं। इनकी साधना करने से लौकिक और परलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है।
भगवान शिव ने भी सिद्धिदात्री देवी की कृपा से तमाम सिद्धियां प्राप्त की थीं। इस देवी की कृपा से ही शिवजी का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण शिव अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए।
माँ के चरणों में शरणागत होकर हमें निरंतर नियमनिष्ठ रहकर उपासना करनी चाहिए। इस देवी का स्मरण, ध्यान, पूजन हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हैं और अमृत पद की ओर ले जाते हैं।
देवी पुराण में ऐसा उल्लेख मिलता है कि भगवान शंकर ने भी इन्हीं की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था। ये कमल पर आसीन हैं और केवल मानव ही नहीं बल्कि सिद्ध, गंधर्व, यक्ष, देवता और असुर सभी इनकी आराधना करते हैं। संसार में सभी वस्तुओं को सहज और सुलभता से प्राप्त करने के लिए नवरात्र के नवें दिन इनकी पूजा की जाती है। इनका स्वरुप मां सरस्वती का भी स्वरुप माना जाता है।
माँ सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना
माँ सिद्धिदात्री सिद्धि की देवी है। इनके पास अणिमा, महिमा, प्रकाम्य, प्राप्ति, गरिमा, लघिमा, ईशित्व और वशित्व आठ सिद्धियां है। इन सिद्धियों को पाने के लिए लोग माँ की विशेष पूजा अर्चना करते है। देवी पुराण के अनुसार शिवजी ने भी माँ सिद्धिदात्री की उपासना करके सिद्धियाँ अर्जित की थी। विशेषकर कलयुग में माँ सिद्धिदात्री की पूजा का विशेष महत्व है। इनकी पूजा से आपको अलौकिक शक्ति की अनुभूति होती है। विशेष अनुष्ठान से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है। यदि भक्ति भाव से पूजा अर्चना की जाये तो माँ शीघ्र ही प्रसन्न हो जाती है।
माँ दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा विधि
दुर्गा पूजा में इस तिथि को विशेष हवन किया जाता है। यह नौ दुर्गा का आखरी दिन भी होता है तो इस दिन माता सिद्धिदात्री के बाद अन्य देवताओं की भी पूजा की जाती है। सर्वप्रथम माता जी की चैकी पर सिद्धिदात्री माँ की तस्वीर या मूर्ति रख इनकी आरती और हवन किया जाता है। हवन करते वक्त सभी देवी दवताओं के नाम से हवि यानी आहुति देनी चाहिए। बाद में माता के नाम से आहुति देनी चाहिए। दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोक मंत्र रूप हैं अत: सप्तशती के सभी श्लोक के साथ आहुति दी जा सकती है। देवी के बीज मंत्र “ऊँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नमरू” से कम से कम 108 बार हवि दें। भगवान शंकर और ब्रह्मा जी की पूजा पश्चात अंत में इनके नाम से हवि देकर आरती करनी चाहिए। हवन में जो भी प्रसाद चढ़ाया है जाता है उसे समस्त लोगों में बांटना चाहिए|
मोक्ष और सिद्धि देने वाली मां सिद्धिदात्री
पंडित एन एम श्रीमाली के अनुसार नवरात्रा पूजन के Navratri Day 9 Maa Siddhidhatri नवें दिन माँ सिद्धिदात्री उपासना की जाती है। इस दिन माता सिद्धिदात्री की उपासना से उपासक की सभी सांसारिक इच्छाएं और आवश्यकताएं पूर्ण हो जाती हैं।
श्रेष्ठ और सिद्धि व मोक्ष देने वाली दुर्गा को सिद्धिदात्री कहा है। देव, यक्ष, किन्नर, दानव, ऋषि-मुनि, साधक, विप्र और संसारी जन सिद्धिदात्री की पूजा नवरात्र के नवें दिन करके अपनी जीवन में यश, बल और धन की प्राप्ति करते हैं। सिद्धिदात्री देवी उन सभी को महाविद्याओं की अष्ट सिद्धियां भी प्रदान करती हैं। जो सच्चे हृदय से उनके लिए आराधना करता है। नवें दिन सिद्धिदात्री की पूजा उपासना करने के लिए नवाहन का प्रसाद, नवरस युक्त भोजन और नौ प्रकार के फल फूल आदि का अर्पण करके जो भक्त नवरात्र का समापन करते है। उनको इस संसार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। सिद्धिदात्री देवी सरस्वती का भी स्वरूप है। जो स्वेत वस्त्रालंकार से युक्त महाज्ञान और मधुर स्वर से अपने भक्तों को सम्मोहित करती है।
नवें दिन सभी नवदुर्गाओं के सांसारिक स्वरूप को गंगा, नर्मदा, कावेरी या समुद्र जल में विसर्जित करने की परंपरा भी है। नवदुर्गा के स्वरूप में साक्षात पार्वती और भगवती विघ्नविनाशक गणपति को भी सम्मानित किया जाता है।
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