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Mantra मंत्र के फल 

 मंत्र के फल 


Mantra

पंडित एन एम श्रीमाली जी कहते है की मंत्र  ” फल क्यों नहीं देते

यह एक समस्या है कि मंत्र जप सफल क्यों नहीं होता , फल पूरा मिलता क्यों नहीं ।

सर्वपथम तो यह भी आवश्यक है कि योग्य गुरु विधि सहित बतावे और गुरुमुख प्राप्त मंत्र हो ।

दूसरा अज्ञानता, दोष उन गुरुओं का भी है जो मन्त्र तो बता देते हैं, विधि वो खुद भी नहीं जानते । आमजन श्रद्धापूर्वक उसका जाप करते रहते हैं , अंततः निष्फल और निराश हो जाते हैं । Mantra

आज इसी विषय पर कुछ विचार करते हैं , ये एक विराट विषय है किंतु कुछ आवश्यक ज्ञान प्रस्तुत करूँगा , इसी से आप समझ जाएंगे वास्तविकता । ईश्वर भजन नहीं ये काम्य मंत्र ( अर्थात जिनसे कोई कार्य सिद्ध हो के विषय में)..

सबसे पहले बीस से अधिक अक्षरों वाले मंत्र इन्हें ” मालामंत्र” कहते हैं।

दस से अधिक अक्षर वाले मंत्र इन्हें ” मन्त्र ” कहते हैं ।

दस से कम अक्षरों वाले मंत्र ” बीजमंत्र’ कहे जाते हैं ।

” मालामन्त्र ” वृद्धवस्था में फलदायक होते हैं.ll

” मन्त्र” युवावस्था में सिद्धिदायक हैं । Mantra

पाँच से दस अक्षर के मन्त्र बाल्य अवस्था में सिद्धिदायक होते हैं।

अब आगे बढ़ते हैं ।..

मन्त्रों की तीन जातियाँ होती हैं —-

स्त्री , पुरुष और नपुंसक…

जिन के अंत में ” स्वाहा ” पद का प्रयोग हो वे स्त्रीजातिय ,ll

जिनके अंत मे ” नमः” वे नपुंसक मन्त्र ।

शेष सभी मन्त्र पुरुषजातीय हैं। Mantra

वे वशीकरण और उच्चाटन कर्म पे सफल सिद्ध होते हैं । सभी कार्यों में साध्य हैं ।

क्षुद्र क्रिया , रोग निवारण और शांति कर्म में स्त्रीजातीय मंत्र प्रशस्त होते हैं।

विद्वेषण , अभिचार या कहले की तामसी कर्मों में नपुंसक मंत्र उपयुक्त होते हैं ।

अब सबसे विशेष तथ्य ….

मन्त्रों के दो भेद भी हैं । ” आग्नेय ” और ” सौम्य” ।

जिनके आदि अर्थात प्रारम्भ में ओम हो वे आग्नेय ओर जिनके अंत मे ओम अर्थात प्रणव हो बो सौम्य ।

इनका जप इनके काल में ही करना चाहिए । जब सूर्य नाड़ी चले तो आग्नेय मंत्र को जपना चाहिए और जब चंद्र नाड़ी चले तब सौम्य मन्त्र सफल फल देते हैं। Mantra

जिन मंत्रों में ॐ , क्ष , र, ह का अधिक प्रयोग हो वो आग्नेय मन्त्र जानें और शेष सौम्य मंत्र मानें ।

ये दो प्रकार के मंत्र क्रमशः क्रूर और सौम्य कर्मों में सफलता देते हैं ।

आग्नेय मन्त्र के अंत मे ” नमः ” लगा दो तो वह सौम्य हो जाएगा और सौम्य मन्त्र के अंत मे ” फट ” लगाने से वो आग्नेय हो जाएगा ।

जब बायाँ साँस या नाड़ी कहें चल रही हो तो जानो आग्नेय मन्त्र के सोने का समय है और जब दायाँ साँस चल रहा हो तो तो समझें सौम्य मन्त्र के सोने का समय है । Mantra

मतलब यह कि दाएँ साँस के चलने पर आग्नेय मन्त्र ओर बायें साँस के चले पर सौम्य मन शुभफल देते हैं।

जब दोनों साँस चल रहे हों तो दिनों मन्त्र जगे होते हैं अर्थात का जप किया जा सकता है ।

: मन्त्र साधको के लिये दशविध
मन्त्रो के दस संस्कार निम्न है :-
जनन,
दीपन,
बोधन,
ताड़न,
अभिषेचन,
विमलीकरण,
जीवन,
तर्पण,
गोपन, और
आप्यायन।

इनकी विधि इस प्रकार है

जनन :-  भोजपत्र गोरोचन कुंकुम चंदनादि से आत्माभिमुख त्रिकोण लिखे, फिर तीनो कोणों में छः छः समान रेखाएं खीचे। ऐसा करने पर 49 त्रिकोण कोष्ठ बनेंगे। उसमे ईशानकोण से मातृका वर्ण लिख कर देवता का आवाहन-पूजन करके मन्त्र का एक एक वर्ण उच्चारण करके अलग पत्र पर लिखे। ऐसा करने पर “जनन” नाम का प्रथम संस्कार होगा।  Mantra

दीपन:-हँसमन्त्र का सम्पुट करने से एक हजार जप द्वारा मन्त्र का दूसरा “दीपन” संस्कार होता है। जैसे – हंसः रामाय नमः सोऽहं।

बोधन :-हूँ बीज सम्पुटित मन्त्र का पाँच हजार जप करने से “बोधन” नामक तीसरा संस्कार होता है। जैसे- हूँ रामाय नमः हूँ ।

ताड़न :- फट् सम्पुटित मन्त्र का एक हजार जप करने से “ताड़न” नामक चतुर्थ संस्कार होता है। जैसे – फट् रामाय नमः फट् ।

अभिषेचन :- भोजपत्र पर मन्त्र लिखकर ” रों हंसः ओं ” इस मन्त्र से जल को अभिमंत्रित करे और उस अभिमंत्रित जल से अश्वत्थपत्रादि द्वारा मन्त्र का अभिषेक करे। ऐसा करने पर “अभिषेचन” नामक पाँचवा संस्कार होता है।  Mantra

विमलीकरण :-“ओं त्रों वषट् ” इन वर्णों से सम्पुटित मन्त्र का एक हजार जप करने से “विमलीकरण” नामक छठा संस्कार होता है। जैसे- ओं त्रों वषट् रामाय नमः वषट् त्रों ओं ।

जीवन :- स्वधा वषट् सम्पुटित मूलमन्त्र का एक हजार जप करने से “जीवन” नामक सातवाँ संस्कार होता है। जैसे – स्वधा वषट् रामाय नमः वषट् स्वधा।

तर्पण :- दुग्ध, जल, एवं घृत के द्वारा मूलमन्त्र से सौ बार तर्पण करना ही “तर्पण” संस्कार है।

गोपन :- ह्रीं बीज से सम्पुटित एक हजार मूलमन्त्र का जप करने से “गोपन” नामक नवम् संस्कार होता है। जैसे – ह्रीं रामाय नमः ह्रीं ।

आप्यायन :- ह्रौं बीज सम्पुटित मूलमन्त्र का एक हजार जप करने से “आप्यायन” नामक दसवाँ संस्कार होता है। जैसे – ह्रौं रामाय नमः ह्रौं ।
इस प्रकार संस्कृत किया हुआ मन्त्र शीघ्र सिद्धिप्रद होता है Mantra

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