क्या होता हैं इंद्रजाल या महाइंद्रजाल
Maha Indra Jaal
पंडित एन एम श्रीमाली जी बताते है की इन्द्रजाल का नाम सुनते ही सभी को लगता है कि यह कोई मायावी विद्या है इंद्रजाल छोटा भी हो सकता है और बड़ा भी हो सकता है, और यह सिर्फ समुद्र में ही पाया जाता है अन्य किसी और जगह नहीं | डेस्क- इंद्रजाल एक समुद्री पौधा है जिसमे ढेर सारी पतली-पतली टहनिया जुडी होती है, ऐसा मन जाता है की इस पौधे में पत्तिया नहीं होती| Maha Indra Jaal
माना जाता है कि यदि आप पर किसी ने टोना, टोटका या कोई तांत्रिक प्रयोग किया हो तो इस जड़ी से आप इस तरह के कूप्रभावों से बच सकते हैं। इंद्रजाल एक दिव्य वनस्पति हैं जो बहोत ही कम पायी जाती हैं , मित्रों यह वनस्पति जिसके पास होती हैं उसे तो वारेन्यारे हो जाते हैं , सुख शांति , और बरकत के मार्ग खुल जाते हैं इस वनस्पति को विशेष तंत्र प्रणाली से सिद्ध कर के घर की दिवार पर लगा दिया जाये तो भूतो प्रेतों के हमले से बचा जा सकता हैं , किसी की मुठ करनी , बाधा तंत्र मंत्र असर नहीं करता , ऊपरी परायी बला नहीं सताती एवं वास्तु दोषो का शमन करती हैं मगर वो वनस्पति सिद्ध की होनी चाहिए अन्यथा इसका इस्तेमाल एक आम लकड़ी के सामान हैं , और ज्यादा क्या लिखू इस वनपस्ति के बारे में ये वनस्पति अपने आप में दिव्यता समेटे हुए हैं। Maha Indra Jaal
इंद्रजाल की महिमा
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- यह जड़ी मकड़ी के जाल जैसी होती है। जैसे मोर के पंख में जाल गूंथा गया हो।
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- दरअसल यह एक समुद्री पौधा है जिसमें पत्ती नहीं होती।
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- इन्द्रजाल की महिमा डामरतंत्र, विश्वसार, रावणसंहिता, आदि ग्रंथों में बताई गई है।
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- कहते हैं कि इसे विधिपूर्वक प्रतिष्ठा करके साफ कपड़े में लपेटकर पूजा घर में रखने से अनेक प्रकार के लाभ होते हैं।
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- इसमें चमत्कारी गुण होते हैं।
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- यह समुंद्र में पाया जाने वाला पौधा होता है लेकिन से लेकर 1 फीट से 2 फीट तक तक इसका आकार होता है इसका रंग काला होता है
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- और इसकी अनेक टहनिया होती है और कहां से आरंभ होती है
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- कहां से जुड़ती कहां पर खत्म होती है यह पता नहीं चलता इसलिए इसको इंद्रजाल कहा जाता है
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- और मजबूती की दृष्टि से देखा जाए तो काफी मजबूती होता है इंद्रजाल का प्रयोग इस पौधे का प्रयोग कई तरीकों में किया जाता है
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- तंत्र में जैसे किए कराए की काट के लिए तंत्र मंत्र का प्रभाव के लिए हवा के दुष्प्रभाव के लिए इसके अलावा कई इसके प्रयोग होते हैं
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- जैसे संतान प्राप्ति के लिए शत्रु बाधा को दूर करने के लिए नजर दोष से बचने के लिए
माना जाता है कि गुरु दत्तात्रे भी इन्द्रजाल के जनक थे। चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में एक बड़ा भाग विद्या पर लिखा है। सोमेश्वर के मानसोल्लास में भी इन्द्रजाल का उल्लेख मिलता है। उड़ीसा के राजा प्रताप रुद्रदेव ने ‘कौतुक चिंतामणि’ नाम से एक ग्रंथ लिखा है जिसमें इसी तरह की विद्याओं के बारे में उल्लेख मिलता है। बाजार में कौतुक रत्नभांडागार, आसाम और बंगाल का जादू, मिस्र का जादू, यूनान का जादू नाम से कई किताबें मिल जाएगी, लेकिन सभी किताबें इन्द्रजाल से ही प्रेरित हैं। Maha Indra Jaal
इन्द्रजाल के नाम पर अंधविश्वास
इन्द्रजाल के अंतर्गत मंत्र, तंत्र, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण, नाना प्रकार के कौतुक, प्रकाश एवं रंगादि के प्रयोजनीय वस्तुओं के आश्चर्यजनक खेल, तामाशे आदि सभी का प्रयोग किया जाता है। इन्द्रजाल से संबंधित कई किताबें बाजार में प्रचलित है। उन्हीं में से एक बृहत् इन्द्रजाल अर्थात कौतुकरत्न भाण्डागार किताब बहुत ही प्रचलित है। खेमराज श्रीकृष्णदास प्रकाशन बंबई से प्रकाशित इस किताब में पंडित देवचरणजी अवस्थी द्वारा इन्द्रजाल से संबंधित सभी विषयों को संग्रहित किया गया है। हालांकि यहां यह बताना जरूरी है कि उक्त किताबों की विद्या में कितनी सच्चाई है यह हम नहीं जानते। इन्द्रजाल के नाम पर अंधविश्वास या काले जादू का ही ज्यादा प्रचलन है।
इंद्रजाल एक ऐसा नाम है जिसे सुनते ही शरीर में एक रोमांच पैदा हो जाता है। प्राचीनकाल में तंत्र , जादू, काला जादू, भ्रम और रहस्यमय विद्या के लिए इंद्रजाल शब्द प्रयुक्त होता था। Maha Indra Jaal
हमारे देश में इंद्रजाल शब्द के अनेक अर्थ और रूप में प्राचीन काल से ही प्रचलित रहे है |प्राचीन भारत में इंद्रजाल का एक अलग ही स्वरूप विद्यमान रहा है , जिसके अनुसारइंद्रजाल का अर्थ है – इन्द्रियों का जाल या आवरण ! अर्थात वह विद्या जिससे इन्द्रिय जालसे ढकी सी आच्छादित हो जाये ! इंद्र और सम्बर इस विद्या के आचार्य माने जाते है !प्राचीन समय में ऐसे खेल राजाओं के सामने किए जाते थे। बीसवीं शताब्दी केआरम्भिक दिनों तक कुछ लोग ऐसे खेल करना जानते थे, परंतु अब यह विद्या नष्ट सीहो चुकी है।
कुछ संस्कृत नाटकों और गाथाओं में इन खेलों का रोचक वर्णन मिलता है।जादूगर दर्शकों के मन और कल्पनाओं को अपने अभीष्ट दृश्य पर केंद्रीभूत कर देता है।अपनी चेष्टाओं और माया से उनको मुग्ध कर देता है। जब उनकी मनोदशा ओर कल्पनाकेंद्रित हो जाती है तब यह उपयुक्त ध्वनि करता है। दर्शक प्रतीक्षा करने लगता है किअमुक दृश्य आनेवाला है या अमुक घटना घटनेवाली है। इसी क्षण वह ध्वनिसंकेत औरचेष्टा के योग से सूचना देता है कि दृश्य आ गया या घटना घट रही है। कुछ क्षण लोगों कोवैसा ही दीख पड़ता है। तदनंतर इंद्रजाल समाप्त हो जाता है। Maha Indra Jaal
प्राचीन भारत में इंद्रजाल की अद्भुत आश्चर्यजनक लीला सारे संसार में प्रसिद्द थी !
अथर्ववेद ८.८.५ में इन्द्र के जाल का वर्णन किया गया है जिसकी सहायता से वह असुरोंको वश में करता है। इस सूक्त में इन्द्र के जाल को बृहत् तथा अन्तरिक्ष आदि कहा गया है।
जैमिनीय ब्राह्मण १.१३५ के अनुसार बृहत् जाल की साधना से पूर्व रथन्तर की साधनाकरनी पडती है। रथन्तर द्वारा अन्न प्राप्त होता है जो रथ रूपी अशना/क्षुधा को शान्तकरता है। रथन्तर तथा अन्तरिक्ष आदि को स्व-निरीक्षण, अपने अन्दर प्रवेश करना,एकान्तिक साधना का प्रतीक कहा जा सकता है। Maha Indra Jaal
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- योगवासिष्ठ में इन्द्रजाल के आख्यानके माध्यम से जाल अवस्था से पूर्व रथन्तर की साधना को दर्शाया गया है।
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- इसे इन्द्रजालका पूर्व रूप कहा जा सकता है।
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- इन्द्रजाल का उत्तर रूप क्या होगा, यह अथर्ववेद ८.८.५ केआधार पर अन्वेषणीय है।
शब्दकल्पद्रुम कोश में इन्द्रजाल शीर्षक के अन्तर्गतइन्द्रजालतन्त्र नामक पुस्तक को उद्धृत किया गया है जिसमें इन्द्रजाल के अधिपतिजालेश रुद्र का उल्लेख आया है।
वर्तमान में इंद्रजाल शब्द के मुख्य रूप से तीन अर्थ प्रचलन में है !
प्रथम :इंद्रजाल नामक पुस्तक के नाम से यह शब्द सर्वाधिक प्रसिद्ध है अर्थात जिसग्रन्थ में अनेक उपयोगी सिद्धि देने वाले मंत्र – यन्त्र – तंत्र , शांतिक – वशीकरण -स्तम्भन -विदेषण -उच्चाटन – मारण आदि षट्कर्म प्रयोग विधि तथा नाना प्रकार केकौतुक व रंग आदि प्रयोजनीय वस्तुओ आश्चर्य रूप खेल , तमाशे , वैद्यक सम्बन्धीओषधिया रसायन आदि का वर्णन हो उस शास्त्र को इंद्रजाल कहा जाता है ! अभी तकप्राय:जितने भी इंद्रजाल छपे है , उनमे एक न एक त्रुटी पायी जाती है !
द्वितीय :इन्द्रजाल एक समुद्री पौधा है , जिसमें पत्ती नहीं होती। यह एक अमूल्यवस्तु है, इसे प्राप्त करना दुर्लभ है।
इन्द्रजाल की महिमा डामरतंत्र, विश्वसार तंत्र आदिग्रंथों में पाई जाती है। इसे विधिपूर्वक प्रतिष्ठा करके साफ कपड़े में लपेटकर पूजा घर मेंरखने से अनेक प्रकार के लाभ होते हैं। इसमें चमत्कारी गुण होते हैं। मान्यता है किजिस घर में इन्द्रजाल होता है। वहां भूत-प्रेत, जादू – टोने का प्रभाव नहीं पड़ता ! इसकेपूजा स्थल पर होने से घर में किसी तरह की बुरी नजर का प्रभाव नहीं पड़ता है। इसकीलकड़ी को गले में पहनने से हर तरह की गुप्तशक्तियां स्वप्र में साक्षात्कार करती हैं।इन्द्रजाल के दर्शन मात्र से अनेक बाधाएं दूर होती हैं । Maha Indra Jaal
तृतीय :जादू का खेल भी इंद्रजाल कहलाता है। कहा जाता है, इसमें दर्शकों कोमंत्रमुग्ध करके उनमें भ्रांति उत्पन्न की जाती है।
फिर जो ऐंद्रजालिक चाहता है वहीदर्शकों को दिखाई देता है। अपनी मंत्रमाया से वह दर्शकों के वास्ते दूसरा ही संसार खड़ाकर देता है। मदारी भी बहुधा ऐसा ही काम दिखाता है, परंतु उसकी क्रियाएँ हाथ कीसफाई पर निर्भर रहती हैं और उसका क्रियाक्षेत्र परिमित तथा संकुचित होता है। इंद्रजालके दर्शक हजारों होते हैं और दृश्य का आकार प्रकार बहुत बड़ा होता है। ठग लोग जादू केतरीकों का उपयोग अपने छलपूर्ण उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए करते हैं.,,इंद्रजाल करने वालेसमूह सम्मोहन की कार्य प्रणाली पर भी कार्य करते है |
कुल मिलाकर इंद्रजाल चमत्कार का एक नाम है ,कौतूहल और आश्चर्य उत्पन्न करता है,असंभव दिखने वाला संभव दीखता है |यह प्राकृतिक शक्तियों का साक्षात्कार कराता हैचाहे वानस्पतिक हो ,मानवीय हो अथवा अलौकिक|…
सिद्ध इंद्रजाल को अपने पास रखने से नजरदोष, ऊपरी बाधा, नकारात्मक शक्तियों और जादू टोने का प्रभाव आदि का प्रभाव क्षीण होता है।
यह प्रबल आकर्षण शक्ति संपन्न है। Maha Indra Jaal
अभिमन्त्रित कर ताबीज़ में भर कर धारण करने से सर्वजन पर वशीकरण प्रभाव होता है।
रवि पुष्य नक्षत्र, नवरात्र, होली दीपावली इत्यादि शुभ समय में मंत्रों से इंद्रजाल वनस्पति को मंत्रों से अभिमंत्रित कर साधक अपने कर्मक्षेत्र में और अध्यात्मिक क्षेत्र में लाभ प्राप्त कर सकता है।
घर के मुख्य द्वार पर लगाने से घर में नकारात्मक शक्तियों भूत प्रेत आदि का प्रवेश नहीं होता । वास्तु दोषों का नाश होता है।
रोगी व्यक्ति के दक्षिण दिशा में लगाने से मृत्यु भय नहीं होता और उत्तर में लगाने से स्वास्थ्य लाभ होता है।
दुकान व्यापार स्थल के दक्षिण दिशा में लगाने से व्यापार में उन्नति होती है और दुश्मनों प्रतिद्वंदियों द्वारा किये कराये के असर से बचाव होता है।
तंत्र में जहां एक ओर ये सुरक्षा करता है वहीँ दूसरी ओर इसके घातक प्रयोग भी है जैसे शत्रु को मतिमूढ़ यानि पागल करना, गम्भीर त्वचा रोग लगा देना और रक्त दोष उतपन्न करना।
वही चिकित्सा के क्षेत्र में पारंपरिक चिकित्सा में ये जीवन दायिनी भी है। अन्य वनस्पति यौगिकों के साथ मिलाकर ये लीवर के गम्भीर रोगों और पुरुषों के प्रोस्टेट समस्या और कैंसर के लिये अतिउपयोगी औषधि भी है। Maha Indra Jaal
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