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Lord Krishna भगवान श्रीकृष्ण की-सौलह कलायें

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भगवान श्रीकृष्ण की-सौलह कलायें


Lord Krishna

श्रीमाली जी कहते है की भगवान विष्णु के अवतारों के बारे में तो आपने सुना होगा और साथ ही यह भी सुना होगा कि सभी अवतारों में भगवान श्री कृष्ण श्रेष्ठ अवतार थे क्योंकि वे संपूर्ण कला अवतार थे जबकि बाकि जन्मों में जब भगवान विष्णु ने अवतार रूप लिया तो कुछ कलाओं के साथ ही लिया जिससे वे संपूर्ण अवतार नहीं कहलाये। ऐसे में इन कलाओं के बारे में जानना जरूरी हो जाता है आखिर कौनसी कलाएं थी भगवान श्री कृष्ण में जो उन्हें पूर्णावतार बनाती हैं। आइये जानते हैं। Lord Krishna

कला वैसे सामान्य शाब्दिक अर्थ के रूप में देखा जाये तो कला एक विशेष प्रकार का गुण मानी जाती है। यानि सामान्य से हटकर सोचना, सामान्य से हटकर समझना, सामान्य से हटकर खास अंदाज में ही कार्यों को अंजाम देना कुल मिलाकर लीक से हटकर कुछ करने का ढंग व गुण जो किसी को आम से खास बनाते हों कला की श्रेणी में रखे जा सकते हैं। भगवान विष्णु ने जितने भी अवतार लिये सभी में कुछ न कुछ खासियत होती थी वे खासियत उनकी कला ही थी। Lord Krishna

भगवान श्री कृष्ण को चूंकि संपूर्ण कला अवतार माना जाता है इसलिये कलाओं की संख्या भी सोलह ही मानी जाती है।
Lord Krishna

श्री संपदा* –

श्री संपदा इसका तात्पर्य है कि जिसके पास भी श्री कला या संपदा होगी वह धनी होगा। धनी होने का अर्थ सिर्फ पैसा व पूंजी जोड़ने से नहीं है बल्कि मन, वचन व कर्म से धनी होना चाहिये। ऐसा व्यक्ति जिसके पास यदि कोई आस लेकर आता है तो वह उसे निराश नहीं लौटने देता। श्री संपदा युक्त व्यक्ति के पास मां लक्ष्मी का स्थायी निवास होता है। कह सकते हैं इस कला से संपन्न व्यक्ति समृद्धशाली जीवनयापन करता है। Lord Krishna

भू संपदा –

इसका अभिप्राय है कि इस कला से युक्त व्यक्ति बड़े भू-भाग का स्वामी हो, या किसी बड़े भू-भाग पर आधिपत्य अर्थात राज करने की क्षमता रखता हो। इस गुण वाले व्यक्ति को भू कला से संपन्न माना जा सकता है। Lord Krishna

कीर्ति संपदा –

कीर्ति यानि की ख्याति, प्रसिद्धि अर्थात जो देश दुनिया में प्रसिद्ध हो लोगों के बीच काफी लोकप्रिय, विश्वसनीय माने जाता हो व जन कल्याण कार्यों में पहल करने में हमेशा आगे रहता हो ऐसा व्यक्ति कीर्ति कला या संपदा युक्त माना जाता है। Lord Krishna

वाणी सम्मोहन –

कुछ लोगों की आवाज़ में एक अलग तरह का सम्मोहन होता है। लोग ना चाहकर भी उनके बोलने के अंदाज की तारीफ करते हैं। ऐसे लोग वाणी कला युक्त होते हैं इन पर मां सरस्वती की विशेष कृपा होती है। इन्हें सुनकर क्रोधी भी एकदम शांत हो जाता है। इन्हें सुनकर मन में भक्ति व प्रेम की भावना जाग जाती है। Lord Krishna

लीला –

इस कला से युक्त व्यक्ति चमत्कारी होता है उसके दर्शनों में एक अलग आनंद मिलता है। श्री हरि की कृपा से कुछ खास शक्ति इन्हें मिलती हैं जो कभी कभी अनहोनी को होनी और होनी को अनहोनी करने के साक्षात दर्शन करवाते हैं। ऐसे व्यक्ति जीवन को भगवान का दिया प्रसाद समझकर ही उसे ग्रहण करते हैं। Lord Krishna

कांति –

कांति वह कला है जिससे चेहरे पर एक अलग नूर पैदा होता है, जिससे देखने मात्र से आप सुध-बुध खोकर उसके हो जाते हैं। यानि उनके रूप सौंदर्य से आप प्रभावित होते हैं। चाहकर भी आपका मन उनकी आभा से हटने का नाम नहीं लेता और आप उन्हें निहारे जाते हैं। ऐसे व्यक्ति को कांति कला से युक्त माना जा सकता है। Lord Krishna

विद्या –

विद्या भी एक कला है जिसके पास विद्या होती है उसमें अनेक गुण अपने आप आ जाते हैं विद्या से संपन्न व्यक्ति वेदों का ज्ञाता, संगीत व कला का मर्मज्ञ, युद्ध कला में पारंगत, राजनीति व कूटनीति में माहिर होता है। Lord Krishna

विमला –

विमल यानि छल-कपट, भेदभाव से रहित निष्पक्ष जिसके मन में किसी भी प्रकार मैल ना हो कोई दोष न हो, जो आचार विचार और व्यवहार से निर्मल हो ऐसे व्यक्तित्व का धनी ही विमला कला युक्त हो सकता है। Lord Krishna

उत्कर्षिणि शक्ति –

उत्कर्षिणि का अर्थ है प्रेरित करने क्षमता जो लोगों को अकर्मण्यता से कर्मण्यता का संदेश दे सकें। जो लोगों को मंजिल पाने के लिये प्रोत्साहित कर सके। किसी विशेष लक्ष्य को भेदने के लिये उचित मार्गदर्शन कर उसे वह लक्ष्य हासिल करने के लिये प्रेरित कर सके जिस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने युद्धभूमि में हथियार डाल चुके अर्जुन को गीतोपदेश से प्रेरित किया। ऐसी क्षमता रखने वाला व्यक्ति उत्कर्षिणि शक्ति या कला से संपन्न व्यक्ति माना जा सकता है। Lord Krishna

नीर-क्षीर विवेक –

ऐसा ज्ञान रखने वाला व्यक्ति जो अपने ज्ञान से न्यायोचित फैसले लेता हो इस कला से संपन्न माना जा सकता है। ऐसा व्यक्ति विवेकशील तो होता ही है साथ ही वह अपने विवेक से लोगों को सही मार्ग सुझाने में भी सक्षम होता है। Lord Krishna

कर्मण्यता –

जिस प्रकार उत्कर्षिणी कला युक्त व्यक्ति दूसरों को अकर्मण्यता से कर्मण्यता के मार्ग पर चलने का उपदेश देता है व लोगों को लक्ष्य प्राप्ति के लिये कर्म करने के लिये प्रेरित करता है वहीं इस गुण वाला व्यक्ति सिर्फ उपदेश देने में ही नहीं बल्कि स्वयं भी कर्मठ होता है। इस तरह के व्यक्ति खाली दूसरों को कर्म करने का उपदेश नहीं देते बल्कि स्वयं भी कर्म के सिद्धांत पर ही चलते हैं। Lord Krishna

योगशक्ति –

योग भी एक कला है। योग का साधारण शब्दों में अर्थ है जोड़ना यहां पर इसका आध्यात्मिक अर्थ आत्मा को परमात्मा से जोड़ने के लिये भी है। ऐसे व्यक्ति बेहद आकर्षक होते हैं और अपनी इस कला से ही वे दूसरों के मन पर राज करते हैं। Lord Krishna

विनय –

इसका अभिप्राय है विनयशीलता यानि जिसे अहं का भाव छूता भी न हो। जिसके पास चाहे कितना ही ज्ञान हो, चाहे वह कितना भी धनवान हो, बलवान हो मगर अहंकार उसके पास न फटके। शालीनता से व्यवहार करने वाला व्यक्ति इस कला में पारंगत हो सकता है। Lord Krishna

सत्य धारणा –

कहते हैं सच बहुत कड़वा होता है इसलिये सत्य को धारण करना सबके बस में नहीं होता विरले ही होते हैं जो सत्य का मार्ग अपनाते हैं और किसी भी प्रकार की कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सत्य का दामन नहीं छोड़ते। इस कला से संपन्न व्यक्तियों को सत्यवादी कहा जाता है। लोक कल्याण व सांस्कृतिक उत्थान के लिये ये कटु से कटु सत्य भी सबके सामने रखते हैं। Lord Krishna

आधिपत्य –

आधिपत्य वैसे यह शब्द सुनने में तो ताकत का अहसास कराने वाला मालूम होता है, लेकिन यह भी एक गुण है। असल में यहां आधिपत्य का तात्पर्य जोर जबरदस्ती से किसी पर अपना अधिकार जमाने से नहीं है बल्कि एक ऐसा गुण है जिसमें व्यक्ति का व्यक्तित्व ही ऐसा प्रभावशाली होता है कि लोग स्वयं उसका आधिपत्य स्वीकार कर लेते हैं। क्योंकि उन्हें उसके आधिपत्य में सरंक्षण का अहसास व सुरक्षा का विश्वास होता है। Lord Krishna

अनुग्रह क्षमता –

जिसमें अनुग्रह की क्षमता होती है वह हमेशा दूसरों के कल्याण में लगा रहता है, परोपकार के कार्यों को करता रहता है। उनके पास जो भी सहायता के लिये पंहुचता वह अपने सामर्थ्यानुसार उक्त व्यक्ति की सहायता भी करते हैं। Lord Krishna

कुल मिलाकर जिसमें भी ये सभी कलाएं अथवा इस तरह के गुण होते हैं वह ईश्वर के समान ही होता है। क्योंकि किसी इंसान के वश में तो इन सभी गुणों का एक साथ मिलना दूभर ही नहीं असंभव सा लगता है, क्योंकि साक्षात ईश्वर भी अपने दशावतार रूप लेकर अवतरित होते रहे हैं लेकिन ये समस्त गुण केवल द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के अवतार रूप में ही मिलते हैं। जिसके कारण यह उन्हें पूर्णावतार और इन सोलह कलाओं का स्वामी कहा जाता है। Lord Krishna

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