भगवान कार्तिकेय की जन्म की कथा एवं जानिए क्यों नहीं होती भगवान् कार्तिकेय की पूजा- Lord Kartikeya
Lord Kartikeya गुरु माँ निधि जी श्रीमाली ने बताया है की भगवान् कार्तिकेय भगवान् शिव एवं माता पार्वती के पुत्र है उनका जन्म एक विलक्षण प्रयोग द्वारा हुआ था। वह छह कृतिकाओं (देवियों) के माध्यम से जन्मा था, इसलिए उसे कार्तिकेय कहते हैं। र्तिकेय अद्भुत क्षमतावान व बलशाली था। कार्तिकेय को अनेक नामों से संबोधित किया जाता है, जैसे- षणमुख, सुब्रह्मण्य, महासेन, सेनापति, शिखिवाहन, स्कन्द कुमार आदि। छः मुख होने के कारण उसे षणमुख कहा गया। Lord Kartikeya
भगवान् कार्तिकेय के जन्म की कथा
जब भगवान शिव की पत्नी ती ने आत्मदाह कर लिया था, तब शिवजी भी आपा खो बैठे थे. इससे सृष्टि शक्तिहीन हो गई थी. जिसका असुरों ने फायदा उठाया. एक दैत्य जिसका नाम तारकासुर था, वो ब्रह्माजी से वरदान पाकर सभी प्राणियों के लिए अवध्य हो गया था. जब उसके अत्याचार बहुत बढ़ गए और अधर्म फैलने लगा. तब ब्रह्माजी ने देवताओं से कहा कि तारकासुर का वध तभी संभव है, जब स्वयं महादेव पुत्र उत्पन्न करें, जिसके बाद देवताओं ने महादेव का विवाह कराने तथा संतानोत्पत्ति के यत्न शुरू कर दिए. कालांतर में महादेव का पार्वती जी से विवाह हुआ. हालांकि, फिर भी हजारों वर्ष बीत गए. तदोपरांत एक घटनावश, शिव जी से षष्ठी तिथि को कार्तिकेय प्रकट हुए. कार्तिकेय के 6 मुख थे. उन्होंने छह मुखों से स्तनपान किया. कार्तिकेय के जन्म के विषय में सुनकर देवतागण शिवजी की शरण में आए और कहा कि भगवन् तारकासुर नामक महाभयंकर दैत्य सृष्टि को नुकसान पहुंचा रहा है और उसने देवताओं को भी जीत लिया है. तब शिव स्वयं तारकासुर का वध करने आए. हालांकि तारकासुर नहीं मरा. Lord Kartikeya
तब पिता द्वारा स्मरण करने पर अमित तेजस्वी कार्तिकेय तत्काल युद्धभूमि में पहुंचे. उनके आते ही दैत्यों में भगदड़ मच गई. तारकासुर उनका बाल भी बांका न कर पाया. तारकासुर वहीं मारा गया. देवताओं के अनुरोध पर कार्तिकेय उत्तरी ध्रुव के प्रदेश उत्तर कुरु के अधिकारी और देवताओं के सेनापति बने. Lord Kartikeya
कार्तिकेय ने किस प्रकार किया ताड़कासुर का वध
गुरु माँ निधि जी श्रीमाली के अनुसार ताड़कासुर राक्षस को वरदान था कि उसकी मृत्यु भगवान के शिव के पुत्र के हाथों ही होगी। उसके आतंक से देवता भी भयभीत हो गए। गंगा-यमुना के बीच देवताओं और राक्षसों में भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध में कार्तिकेय ने ताड़कासुर का वध कर दिया। वध होने से ताड़कासुर के आतंक से ऋषि मुनियों को मुक्ति तो मिली, लेकिन कार्तिकेय परेशान थे। ताड़कासुर उनके पिता भगवान शिव के भक्त थे। शिवभक्त को मारने का प्रायश्चित करने के लिए कार्तिकेय ने भगवान विश्वकर्मा से तीन विशुद्ध शिवलिंगों का निर्माण कराया। यहां तीनोंं शिव लिंग कुछ ही दूरी पर हैं। प्रत्येक शिवलिंग की ऊंचाई चार से पांच फुट है। मंदिर के महंत बाबा मोहनगिरी बताते हैं कि कार्तिकेय ने वध करने का निर्णय लिया उन्हें उसी वक्त मानसिक पाप लगा। वध के लिए निमित शक्ति फेंकी वह राक्षस के सिर पर लगी, यह कायिप पाप कहलाया। जहां अचेत शरीर गिरा और उसका वास्तविक वध हुआ वह नैमित्तिक पाप लगा। तीनों पापों के प्रायश्चित के लिए कार्तिकेय ने संकल्प लेने वाले स्थान पर प्रतिज्ञेश्वर, जहां से शक्ति फेंकी वहां कपालेश्वर और जहां निर्जीव शरीर गिरा वहां कुमारेश्वर लिंग की स्थापना की। कुमारेश्वर की सबसे अधिक मान्यता है। यह एक गुप्त तीर्थस्थल है। इसका उल्लेख शिवपुराण, भागवत पुराण, स्कंदपुराण व विश्वकर्मा पुराण में मिलता है। Lord Kartikeya
कार्तिकेय की पूजा क्यों नहीं होती
गुरु माँ निधि जी श्रीमाली के अनुसार ऐसा माना जाता है की जब भगवान शिव ने कार्तिकेय का राजतिलक करने का निर्णय लिया. तब माता पार्वती भगवान गणेश का राजतिलक करने की हठ करने लगी. इस दौरान सभी देवी देवता दुविधा में फंस गए. तब ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव ने निर्णय लिया की दोनों भाई में से जो समस्त सृष्टि का चक्कर लगा कर पहले आएगा. वह राजतिलक का अधिकारी माना जाएगा. और उसका राजतिलक कर दिया जाएगा. यह फैसला लेने के बाद कार्तिकेय अपना वाहन मोर लेकर समस्त पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए निकल गए. जब गणेश भी अपना वाहन चूहा लेकर पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए जाने लगे.तब माता पार्वती ने उन्हें रोका और कहा की तुम माता पिता और सभी देवी देवताओ की परिक्रमा लगा लो. यही संपूर्ण सृष्टि की परिक्रमा मानी जाती हैं. और गणेश ने माता के कहे अनुसार किया. भगवान गणेश के ऐसा करने से उनको राजतिलक का अधिकारी माना गया. और उनका राजतिलक कर दिया गया. जब कार्तिकेय सृष्टि की परिक्रमा करके लौटे तब माता के ऐसे फैसले से क्रोधित हो गए. और अपना मांस तथा खाल उतारकर माता पार्वती के सामने रख दिया. इसके बाद कार्तिकेय ने समस्त नारी जाति को श्राप दिया की जो उनके इस स्वरूप के दर्शन करेगी. वह सात जन्मो तक विधवा रहेगी. कार्तिकेय के इस श्राप के कारण आज भी उनकी पूजा नही की जाती हैं. Lord Kartikeya
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इस साल अधिकमास होने के कारण श्रावण मास 2 महीने तक रहेगा अर्थात भगवान् शिव की भक्ति के लिए अधिक समय मिलेगा 19 साल बाद ऐसा संयोग बनने से श्रावण मास का महत्व ओर अधिक बढ़ गया हर साल की तरह इस साल भी हमारे संस्थान में महारुद्राभिषेक का आयोजन किया जा रहा है अगर आप भी भगवान् शिव की कृपा पाना चाहते है तो इस महारुद्राभिषेक में हिस्सा लेकर अपने नाम से रुद्राभिषेक करवाए यह रुद्राभिषेक गुरु माँ निधि जी श्रीमाली एवं हमारे अनुभवी पंडितो द्वारा विधि विधान से एवं उचित मंत्रो उच्चारण के साथ सम्पन्न होगा आज ही रुद्राभिषेक में हिस्सा लेकर भगवान् शिव का विशेष आशीर्वाद प्राप्त करे एवं किसी भी अन्य दिन किसी भी प्रकार की पूजा , जाप एवं भगवान् शिव के महामृत्युंजय का जाप करवाना चाहते है तो हमारे संस्थान में संपर्क करे
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