भगवान के 24 अवतार
Incarnations of God आज हम आपको भगवान के 24 अवतारों के बारे में बताएंगे की किस प्रकार उन्होंने धरती पर अवतार ले कर मानव जीवन का कल्याण किया था –
1-#सनत्कुमार_अवतार- भगवान ने कौमारसर्ग में सनक, सनन्दन, सनातन तथा सनत्कुमार नामक ब्रह्मऋषियों के रूप में अवतार लिया। यह उनका पहला अवतार था। पृथ्वी को रसातल से लाने के लिये भगवान ने वराह के रूप में अवतार लिया तथा हिरण्याक्ष का वध किया।
संका, सानंद, सनातन, सनत्कुमार; ब्रह्मा जी के घोर ताप से प्रसन्न हो उनके चार पुत्रों के रूप में अवतार धारण किया तथा प्रलय काल में लुप्त हुए ज्ञान को पुनः ऋषियों को प्रदान किया.
यह ब्रह्मचर्य का प्रतीक है ,
सब धर्मो मे प्रथम ब्रह्मचर्य आता है ,इसके बिना मन स्थिर नही होता । ब्रह्मचर्य से मन ,बुद्धि , चित्त एवं अहंकार पवित्र होते है ,अंतःकरण शुद्ध होता है!
अतः पहला कदम ब्रह्मचर्य …
2 #वाराह_अवतार अर्थात श्रेष्ठ दिवस कौन सा ? जिस दिन सत्कर्म हो वह दिन श्रेष्ठ . वाराह अवतार संतोष सतयुग में भगवान् विष्णु के तीसरे अवतार वराह का जन्म हुआ था. विष्णु जी का यह अवतार वराह एक सूअर की तरह दिखने वाला अवतार है. सदियों से ये बात सुनते आ रहे है कि जब जब दुनिया में शैतानी ताकत बढ़ती है तो भगवान उनका कल्याण करने के लिए पृथ्वी पर अवतार लेते है
का प्रतीक है … लोभ को मारकर , प्रभु जिस स्थिति मे रखे उसी मेँ सन्तोष करो ..
3 #नारद_अवतार का तात्पर्य है . ब्रह्मचर्य का पालन करे और प्राप्त स्थिति मे संतोष माने , उसे नारद
अर्थात् भक्ति मिले …..हमारे धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि देवर्षि नारद भगवान विष्णु के ही अवतार है ! जो कि धर्म के प्रचार और प्रसार एवं लोक कल्याण के लिए हमेशा प्रगतिशील रहते हैं !
4.#नरनारायणअवतार_ भक्ति मिले तो उसे भगवान का साक्षात्कार होता है किन्तु ज्ञान वैराग्य बिना भक्ति दृढ नही होती ..नर-नारायण हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु के दशावतार में से एक अवतार था। इस अवतार में विष्णु जी ने नर और नारायण रूप में अवतार लिये थे। इस रूप में बद्रीनाथ तीर्थ में तपस्या की थी। भगवान विष्णु ने समय समय पर इस धरा पर अवतार लेकर यहा धर्म और सत्य की महिमा को आगे बढाया है | ऐसा ही एक अवतार नर नारायण का हुआ जो धर्म और लोक कल्याण के लिए महान तपस्या में लग गये.
5.#कपिल_अवतार..ज्ञान वैराग्य का ।वैराग्य को जीवन मेँ उतारो …इनको अग्नि का अवतार और ब्रह्मा का मानसपुत्र भी पुराणों में कहा गया है। श्रीमद्भगवत के अनुसार कपिल विष्णु के पंचम अवतार माने गए हैं।
कर्दम ऋषि और देवहूति से इनका जन्म हुआ
कदर्म प्रजापति के पुत्र और भगवान श्री नारायण के पांचवे अवतार ‘कपिल-मुनि’, जिन्होंने प्रलय काल में लुप्त हुए सांख्य शास्त्र तथा आत्म-ज्ञान का उपदेश दिया
6 #दत्तात्रेय का .ब्रह्मचर्य , संतोष ,ज्ञान , भक्ति एवं वैराग्य आप मे होँगे तो गुणातीत होँगे तब आप #अत्रि होँगे तो भगवान आपके यहाँ पधारेगे भगवान दत्तात्रेय,महर्षि अत्रि और उनकी सहधर्मिणी अनुसूया के पुत्र थे।इनके पिता महर्षि अत्रि सप्तऋषियों में से एक है,और माता अनुसूया को सतीत्व के प्रतिमान के रूप में उदधृत किया जाता है। Incarnations of God
भगवान दत्तात्रेय ने 24 गुरु बनाए। वे कहते थे कि जिस किसी से भी जितना सीखने को मिले, हमें अवश्य ही उन्हें सीखने का प्रयत्न अवश्य करना चाहिए। उनके 24 गुरुओं में कबूतर, पृथ्वी, सूर्य, पिंगला, वायु, मृग, समुद्र, पतंगा, हाथी, आकाश, जल, मधुमक्खी, मछली, बालक, कुरर पक्षी, अग्नि, चंद्रमा, कुमारी कन्या, सर्प, तीर (बाण) बनाने वाला, मकडी़, भृंगी, अजगर और भौंरा (भ्रमर) हैं।
7 #यज्ञभगवानअवतार यज्ञ अवतार -भगवान विष्णु के सातवें अवतार का नाम यज्ञ है। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान यज्ञ का जन्म स्वायम्भुव मन्वन्तर में हुआ था। स्वायम्भुव मनु की पत्नी शतरूपा के गर्भ से आकूति का जन्म हुआ। वे रूचि प्रजापति की पत्नी हुई। ..
8 #ऋषभदेव जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर हैं। तीर्थंकर का अर्थ होता है जो तीर्थ की रचना करें। जो संसार सागर (जन्म मरण के चक्र) से मोक्ष तक के तीर्थ की रचना करें, वह तीर्थंकर कहलाते हैं। ऋषभदेव जी को आदिनाथ भी कहा जाता है.. महाराज नाभि कुमार ऋषभदेव को राज्य देकर वन के लिये विदा हो गये। देवराज इन्द्र को धरा का यह सौभाग्य ईर्ष्या की वस्तु जान पड़ा। अखिलेश की उपस्थिति से पृथ्वी ने स्वर्ग को अपनी सम्पदा से लज्जित कर दिया था।
9 #पृथुराजा वेन के पुत्र थे। भूमण्डल पर सर्वप्रथम सर्वांगीण रूप से राजशासन स्थापित करने के कारण उन्हें पृथ्वी का प्रथम राजा माना गया है। साधुशीलवान् अंग के दुष्ट पुत्र वेन को तंग आकर ऋषियों ने हुंकार-ध्वनि से मार डाला था। राजा पृथु ध्रुव जी के वन गमन के पश्चात आगे चलकर उनके वंश में अंग नामक राजा हुये। राजा अंग बड़े भगवद भक्त थे, उनके वन चले जाने के बाद उनके पुत्र वेन को राजा बनाया गया।…
10 #मत्स्यनारायण का .यह चार क्षत्रियो के लिए जब ज्वार ब्रम्हांड को भस्म करने लगा तब एक विशाल नाव आया, जिस पर सभी चढ़े। मत्स्य भगवान ने उसे सर्पराज वासुकि को डोर बनाकर बाँध लिया और सुमेरु पर्वत की ओर प्रस्थान किया।
11 #कूर्म_अवतार कूर्म अवतार को ‘कच्छप अवतार’ (कछुआ के रूप में अवतार) भी कहते हैं। कूर्म के अवतार में भगवान विष्णु ने क्षीरसागर के समुद्रमंथन के समय मंदार पर्वत को अपने कवच पर संभाला था। स प्रकार भगवान विष्णु, मंदर पर्वत और वासुकि नामक सर्प की सहायता से देवों एवं असुरों ने समुद्र मंथन करके चौदह रत्नों की प्राप्ति की। इस समय भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप भी धारण किया था।…
12 #धन्वतरि_अवतार धन्वतरि को हिन्दू धर्म में क्षत्रिय नाई कुकुल के वंंशज माने जाते है। वे महान चिकित्सक थे जिन्हें देव पद प्राप्त हुआ। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये भगवान विष्णु के अवतार समझे जाते हैं। इनका पृथ्वी लोक में अवतरण समुद्र मंथन के समय हुआ था। शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरी[4], चतुर्दशी को काली माता और अमावस्या को भगवती लक्ष्मी जी का सागर से प्रादुर्भाव हुआ था। इसीलिये दीपावली के दो दिन पूर्व धनतेरस को भगवान धन्वंतरी का जन्म धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन इन्होंने आयुर्वेद का भी प्रादुर्भाव किया था।[5] इन्हें भगवान विष्णु का रूप कहते हैं जिनकी चार भुजायें हैं। उपर की दोंनों भुजाओं में शंख और चक्र धारण किये हुये हैं। जबकि दो अन्य भुजाओं मे से एक में जलूका और औषध तथा दूसरे मे अमृत कलश लिये हुये हैं। इनका प्रिय धातु पीतल माना जाता है। इसीलिये धनतेरस को पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परंपरा भी है।[6] इन्हे आयुर्वेद की चिकित्सा करनें वाले वैद्य आरोग्य का देवता कहते हैं। इन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी। इनके वंश में दिवोदास हुए जिन्होंने ‘शल्य चिकित्सा’ का विश्व का पहला विद्यालय काशी में स्थापित किया जिसके प्रधानाचार्य सुश्रुत बनाये गए थे।[7] सुश्रुत दिवोदास के ही शिष्य और ॠषि विश्वामित्र के पुत्र थे। उन्होंने ही सुश्रुत संहिता लिखी थी। सुश्रुत विश्व के पहले सर्जन (शल्य चिकित्सक) थे। दीपावली के अवसर पर कार्तिक त्रयोदशी-धनतेरस को भगवान धन्वंतरि की पूजा करते हैं। कहते हैं कि शंकर ने विषपान किया, धन्वंतरि ने अमृत प्रदान किया और इस प्रकार काशी कालजयी नगरी बन गयी।..
13 #मोहिनी_अवतार ..यह तीन वैश्यो के लिए मोहिनी हिन्दू भगवान विष्णु का एकमात्र स्त्री रूप अवतार है। इसमें उन्हें ऐसे स्त्री रूप में दिखाया गया है जो सभी को मोहित कर ले। उसके प्रेम में वशीभूत होकर कोई भी सब भूल जाता है, चाहे वह भगवान शिव ही क्यों न हों। इस अवतार का उल्लेख महाभारत में भी आता है। समुद्र मंथन के समय जब देवताओं व असुरों को सागर से अमृत मिल चुका था, तब देवताओं को यह डर था कि असुर कहीं अमृत पीकर अमर न हो जायें। तब वे भगवान विष्णु के पास गये व प्रार्थना की कि ऐसा होने से रोकें। तब भगवान विष्णु ने मोहिणि अवतार लेकर अमृत देवताओं को पिलाया व असुरों को मोहित कर अमर होने से रोका। …
14 #नरसिंह_अवतार … ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्। नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम्।।
(हे क्रुद्ध एवं शूर-वीर महाविष्णु, तुम्हारी ज्वाला एवं ताप चतुर्दिक फैली हुई है। हे नरसिंहदेव, तुम्हारा चेहरा सर्वव्यापी है, तुम मृत्यु के भी यम हो और मैं तुम्हारे समक्ष आत्मसमर्पण करता हूं।)
कश्यप नामक ऋषि एवं उनकी पत्नी दिति को 2 पुत्र हुए जिनमें से एक का नाम ‘हरिण्याक्ष’ तथा दूसरे का ‘हिरण्यकशिपु’ था। हिरण्याक्ष को भगवान विष्णु ने पृथ्वी की रक्षा हेतु वराह रूप धरकर मार दिया था। अपने भाई की मृत्यु से दुखी और क्रोधित हिरण्यकशिपु ने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए अजेय होने का संकल्प किया।
सहस्रों वर्षों तक उसने कठोर तप किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे अजेय होने का वरदान दिया। वरदान प्राप्त करके उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया, लोकपालों को मारकर भगा दिया और स्वत: संपूर्ण लोकों का अधिपति हो गया। देवता निरुपाय हो गए थे। वे असुर हिरण्यकशिपु को किसी प्रकार से पराजित नहीं कर सकते थे।
ब्रह्माजी की हिरण्यकश्यप कठोर तपस्या करता है। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी वरदान देते हैं कि उसे न कोई घर में मार सके न बाहर, न अस्त्र से और न शस्त्र से, न दिन में मरे न रात में, न मनुष्य से मरे न पशु से, न आकाश में न पृथ्वी में।
इस वरदान के बाद हिरण्यकश्यप ने प्रभु भक्तों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया, लेकिन भक्त प्रहलाद के जन्म के बाद हिरण्यकश्यप उसकी भक्ति से भयभीत हो जाता है, उसे मृत्युलोक पहुंचाने के लिए प्रयास करता है। इसके बाद भगवान विष्णु भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए नरसिंह अवतार लेते हैं और हिरण्यकश्यप का वध कर देते हैं। प्रह्लाद जैसी दृष्टि से देखेगे तो स्तम्भ मेँ भी भगवान के दर्शन होगे!
15 #वामन_भगवान .. हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु के दस अवतारों में से पाँचवें अवतार हैं जो भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की द्वादशी को अवतरित हुए। पूर्ण निष्काम .जिसके ऊपर भक्ति का ,नीति का, का छत्र है जिसने धर्म का कवच
पहना है, एक बार वामन भगवान राजा बलि से पृथ्वी मांगने गए। Incarnations of God
वामन भगवान ने तीन पग में ही तीनों लोक नाप लिए। इसके बाद बलि ने वामन भगवान से वरदान मांगा कि आप मेरे द्वारपाल बन जाओ। वामन भगवान बहुत दिनों तक राजा बलि के द्वारपाल बने रहे। तब मां लक्ष्मी स्वयं राजा बलि के यहां वामन भगवान को लेने आई। मां लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधी। ऐसा माना जाता है कि रक्षाबंधन पर्व तभी से मनाया जाता है। मानव जीवन में त्याग जरूरी है। त्याग के बिना मानव जीवन अधूरा है। मनुष्यों को दूसरों की सहायता में सदा तैयार रहना चाहिए। यह तभी संभव होगा जब मनुष्य के हृदय में त्याग जागृत होगा। महापुरुषों का जीवन सदा त्याग से परिपूर्ण रहा है। इसलिए हम सभी को चाहिए कि उन्हें अपना आदर्श मानकर मान सम्मान, पूजन, वंदन करे। इस संसार में त्यागी व्यक्ति का यश चारों ओर फैलता है। व्यक्ति को चाहिए कि वह सामाजिक और धार्मिक कार्यों में सभी प्रकार से सहयोग करें। उसे भगवान भी नही मार सके हैँ,राजा बलि की तरह …
16 #परशुराम_आवेशावतार ॐ जामदग्न्याय विदमहे महावीराय धीमही । तन्नो परशुराम: प्रचोदयात”
भगवान विष्णु के आवेशावतार है भगवान परशुराम । स्वंय भगवान श्री राम ने उनकी स्तुति करते कहा कि मै तो सिर्फ ’’राम ‘’ हूं आप ‘’ परशुराम ‘’ है । वे ब्राह्मण के रूप में जन्में लेकिन कर्म से क्षत्रिय है । पितृ भक्ति , मातृ भक्ति और भातृ प्रेम का अद्भुत उदाहरण है, परशुराम जी का जीवन । पितृ आज्ञा से माता का शरविच्छेदन करने में भी नही हिचकिचाए थे । पिता की हत्या के बदले स्वरूप ही हैहय-क्षत्रियों का पृथ्वी से २१ बार संहार किया ।
शिवजी से उन्हें विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु , कृष्ण का त्रैलोक्यविजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मंत्र कल्पतरू भी प्राप्त हुए।
उन्होंने अश्वमेघ महायज्ञ कर सप्तद्वीपयुक्त पृथ्वी महर्षि कश्यप को दान कर दी थी ।
कलयुग मे कल्की अवतार होने पर उनका गुरुपद ग्रहण कर शस्त्रविद्या प्रदान करना शेष है ।
अमरत्व प्राप्त है परशुराम जी को सृष्टि प्रलय तक रहेगे वो धरा पर ।।
भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा संपन्न पुत्रेष्टि-यज्ञ से प्रसन्न देवराज इंद्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को विश्ववंद्य महाबाहु परशुरामजी का जन्म हुआ। वे भगवान विष्णु के आवेशावतार है। पितामह भृगु द्वारा संपन्न नामकरण-संस्कार के अनन्तर राम, किंतु जमदग्निका पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किए रहने के कारण परशुराम कहलाते है । शिवजी से उन्हें श्री कृष्ण का त्रैलोक्यविजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मंत्र कल्पतरू भी प्राप्त हुए।
वे शस्त्रविद्या के महान गुरु है । उन्होंने पितामह भीष्म , गुरूदेव द्रोणाचार्य और महारथी कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। कलयुग मे कल्कि अवतार होने पर उनका गुरुपद ग्रहण कर शस्त्रविद्या प्रदान करना अभी उनके लिए बाकी है।वे एक ब्राह्मण के रूप में जन्में लेकिन कर्म से एक क्षत्रिय है । उन्हें भार्गव के नाम से भी जाना जाता है। भगवान परशुराम ने अश्वमेघ महायज्ञ कर सप्तद्वीपयुक्त पृथ्वी महर्षि कश्यप को दान कर दी और इंद्र के समक्ष शस्त्र त्यागकर सागर द्वारा उच्छिष्ट भूभाग महेंद्र पर आश्रम बनाकर रहने लगे।
ॐ जम्दग्नाय विदमहे महावीराय धी महि तन्नो परशुरामः प्रचोदयात ! … Incarnations of God
17 #व्यासनारायणका_ज्ञानावतार ,.. ज्ञानावतार में भगवान ने सभी मनुष्य को ज्ञान दिया की जीवन में सभी का भला करना चाहिए अर्थात कर भला सो हो भला
18 #श्रीरामका_मर्यादावतार .. राम जी के काम में काही का विराम है,
जिन्दा रहे तो जगजीवन राम है,
मर भी गए तो रहने को स्वर्ग धाम है,
हमको तो काम बस राम जी के नाम से,
“जय जय श्री राम”
की तरह मर्यादा का पालन करने से कन्हैया मिलेगा ….
19 #बलराम_अवतार संक्षिप्त परिचय बलराम अन्य नाम दाऊ, संकर्षण, बलभद्र अवतार शेषनाग वंश-गोत्र वृष्णि वंश (चंद्रवंश) कुल यदुकुल पिता वसुदेव माता रोहिणी पालक पिता नन्दबाबा जन्म विवरण देवकी के सातवें गर्भ में भगवान बलराम पधारे थे। योगमाया ने उन्हें संकर्षित करके नन्द के यहाँ निवास कर रही रोहिणी के गर्भ में पहुँचा दिया था। समय-काल महाभारत काल परिजन देवकी, रोहिणी, श्रीकृष्ण, सुभद्रा (बहन) गुरु संदीपन विवाह रेवती (पत्नी) विद्या पारंगत गदा युद्ध में पारंगत प्रसिद्ध मंदिर दाऊजी मन्दिर, मथुरा अस्त्र-शस्त्र गदा संदर्भ ग्रंथ महाभारत, भागवत अन्य जानकारी यदुवंश के उपसंहार के बाद शेषावतार बलराम ने समुद्र तट पर आसन लगाकर अपनी लीला का संवरण किया। बलराम ‘नारायणीयोपाख्यान’ में वर्णित व्यूहसिद्धान्त के अनुसार विष्णु के चार रूपों में दूसरा रूप ‘संकर्षण'[1] है। संकर्षण बलराम का अन्य नाम है, जो कृष्ण के भाई थे। सामान्यतया बलराम शेषनाग के अवतार माने जाते हैं और कहीं-कहीं विष्णु के अवतारों में भी इनकी गणना है। जब कंस ने देवकी-वसुदेव के छ: पुत्रों को मार डाला, तब देवकी के गर्भ में भगवान बलराम पधारे। योगमाया ने उन्हें आकर्षित करके नन्द बाबा के यहाँ निवास कर रही श्री रोहिणी जी के गर्भ में पहुँचा दिया। इसलिये उनका एक नाम संकर्षण पड़ा। संकर्षण के बाद प्रद्युम्न तथा अनिरुद्ध का नाम आता हे जो क्रमश: मनस् एवं अहंकार के प्रतीक तथा कृष्ण के पुत्र एवं पौत्र हैं। ये सभी देवता के रूप में पूजे जाते हैं। इन सबके आधार पर चतुर्व्यूह सिद्धान्त की रचना हुई है। कृष्ण-बलराम, देवकी-वसुदेव से मिलते हुए, द्वारा- राजा रवि वर्मा जगन्नाथजी की त्रिमूर्ति में कृष्ण, सुभद्रा ता बलराम तीनों साथ विराजमान हैं। इससे भी बलराम की पूजा का प्रसार व्यापक क्षेत्र में प्रमाणित होता है। बलवानों में श्रेष्ठ होने के कारण उन्हें बलभद्र भी कहा जाता है। बलराम जी साक्षात शेषावतार थे। बलराम जी बचपन से ही अत्यन्त गंभीर और शान्त थे। श्री कृष्ण उनका विशेष सम्मान करते थे। बलराम जी भी श्रीकृष्ण की इच्छा का सदैव ध्यान रखते थे। ब्रजलीला में शंखचूड़ का वध करके श्रीकृष्ण ने उसका शिरोरत्न बलराम भैया को उपहार स्वरूप प्रदान किया। कंस की मल्लशाला में श्रीकृष्ण ने चाणूर को पछाड़ा तो मुष्टिक बलरामजी के मुष्टिक प्रहार से स्वर्ग सिधारा। जरासन्ध को बलराम जी ही अपने योग्य प्रतिद्वन्द्वी जान पड़े। यदि श्रीकृष्ण ने मना न किया होता तो बलराम जी प्रथम आक्रमण में ही उसे यमलोक भेज देते। बलराम जी का विवाह रेवती से हुआ था। महाभारत युद्ध में बलराम तटस्थ होकर तीर्थयात्रा के लिये चले गये। यदुवंश के उपसंहार के बाद उन्होंने समुद्र तट पर आसन लगाकर अपनी लीला का संवरण किया। श्रीमद्भागवत की कथाएँ शेषावतार बलरामजी के शौर्य की सुन्दर साक्षी हैं। … Incarnations of God
20 #कृष्णावतार ..प्रत्येक भारतीय भागवत पुराण में लिखित ‘श्रीकृष्णावतार की कथा’ से परिचित हैं। श्रीकृष्ण की बाल्याकाल की शरारतें जैसे – माखन व दही चुराना, चरवाहों व ग्वालिनियों से उनकी नोंक–झोंक, तरह – तरह के खेल, इन्द्र के विरुद्ध उनका हठ (जिसमें वे गोवर्धन पर्वत अपनी अँगुली पर उठा लेते हैं, ताकि गोकुलवासी अति वर्षा से बच सकें), सर्वाधिक विषैले कालिया नाग से युद्ध व उसके हज़ार फनों पर नृत्य, उनकी लुभा लेने वाली बाँसुरी का स्वर, कंस द्वारा भेजे गए गुप्तचरों का विनाश – ये सभी प्रसंग भावना प्रधान व अत्यन्त रोचक हैं।
राम और कृष्ण एक है
मनुष्य दिन के बारह बजे भूख के कारण भान भूलता है.. रात को निवृत्ति मे काम सुख याद आता है …
…अतः प्रातः राम एवं शाम को कृष्ण का स्मरण करो … Incarnations of God
21 #हरि_अवतार .. धर्म ग्रंथों के अनुसार प्राचीन समय में त्रिकूट नामक पर्वत की तराई में एक शक्तिशाली गजेंद्र अपनी हथिनियों के साथ रहता था। एक बार वह अपनी हथिनियों के साथ तालाब में स्नान करने गया। वहां एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया और पानी के अंदर खींचने लगा। गजेंद्र और मगरमच्छ का संघर्ष एक हजार साल तक चलता रहा। अंत में गजेंद्र शिथिल पड़ गया और उसने भगवान श्रीहरि का ध्यान किया। गजेंद्र की स्तुति सुनकर भगवान श्रीहरि प्रकट हुए और उन्होंने अपने चक्र से मगरमच्छ का वध कर दिया। भगवान श्रीहरि ने गजेंद्र का उद्धार कर उसे अपना पार्षद बना लिया।
22 #हयग्रीवातार …धर्म ग्रंथों के अनुसार एक बार मधु और कैटभ नाम के दो शक्तिशाली राक्षस ब्रह्माजी से वेदों का हरण कर रसातल में पहुंच गए। वेदों का हरण हो जाने से ब्रह्माजी बहुत दु:खी हुए और भगवान विष्णु के पास पहुंचे। तब भगवान ने हयग्रीव अवतार लिया। इस अवतार में भगवान विष्णु की गर्दन और मुख घोड़े के समान थी। तब भगवान हयग्रीव रसातल में पहुंचे और मधु-कैटभ का वध कर वेद पुन: भगवान ब्रह्मा को दे दिए।
23 #बुद्धावतार . बुद्धावतार भगवान् विष्णु के दश अवतारों में ९वाँ अवतार और चौबीस अवतारों में से तेईसवें अवतार माने गए हैं। आधुनिक मान्यतानुसार गौतम बुद्ध को ही बुद्धावतार माना जाता है परन्तु पुराणों के विस्तृत अध्ययन से ज्ञात होता है कि गौतम तथा बुद्ध दोनो भिन्न व्यक्ति थे। जैसे भागवत स्कन्ध १ अध्याय ६ के श्लोक २४ में –
ततः कलौ सम्प्रवृत्ते सम्मोहाय सुरद्विषाम्। बुद्धोनाम्नाजनसुतः कीकटेषु भविष्यति॥
अर्थात्, कलयुग में देवद्वेषियों को मोहित करने नारायण कीकट प्रदेश (बिहार या उड़ीसा) में अजन के पुत्र के रूप में प्रकट होंगे।[1] जबकि गौतम का जन्म वर्तमान नेपाल में राजा शुद्धोदन के घर हुआ था। हंसावतार भी कुछ विद्वान मानते है ..
24 अभी होना है #कल्कि_अवतार… कल्कि पुराण हिन्दुओं के विभिन्न धार्मिक एवं पौराणिक ग्रंथों में से एक हैं यह एक उपपुराण है। इस पुराण में भगवान विष्णु के दसवें तथा अन्तिम अवतार की भविष्यवाणी की गयी है और कहा गया है कि विष्णु का अगला अवतार (महा अवतार) “कल्कि अवतार होगा। इसके अनुसार ४,३२० वीं शती में कलियुग का अन्त के समय कल्कि अवतार लेंगें।
इस पुराण में प्रथम मार्कण्डेय जी और शुक्रदेव जी के संवाद का वर्णन है। कलयुग का प्रारम्भ हो चुका है जिसके कारण पृथ्वी देवताओं के साथ, विष्णु के सम्मुख जाकर उनसे अवतार की बात कहत है। भगवान विष्णु के अंश रूप में ही सम्भल गांव में कल्कि भगवान का जन्म होता है। उसके आगे कल्कि भगवान की दैवीय गतिविधियों का सुन्दर वर्णन मन को बहुत सुन्दर अनुभव कराता है।
भगवान् कल्कि विवाह के उद्देश्य से सिंहल द्वीप जाते हैं। वहां जलक्रीड़ा के दौरान राजकुमारी पद्यावती से परिचय होता है। देवी पद्यिनी का विवाह कल्कि भगवान के साथ ही होगा। अन्य कोई भी उसका पात्र नहीं होगा। प्रयास करने पर वह स्त्री रूप में परिणत हो जाएगा। अंत में कल्कि व पद्यिनी का विवाह सम्पन्न हुआ और विवाह के पश्चात् स्त्रीत्व को प्राप्त हुए राजगण पुन: पूर्व रूप में लौट आए। कल्कि भगवान पद्यिनी को साथ लेकर सम्भल गांव में लौट आए। विश्वकर्मा के द्वारा उसका अलौकिक तथा दिव्य नगरी के रूप में निर्माण हुआ।
हरिद्वार में कल्कि जी ने मुनियों से मिलकर सूर्यवंश का और भगवान राम का चरित्र वर्णन किया। बाद में शशिध्वज का कल्कि से युद्ध और उन्हें अपने घर ले जाने का वर्णन है, जहां वह अपनी प्राणप्रिय पुत्री रमा का विवाह कल्कि भगवान से करते हैं।
उसके बाद इसमें नारद जी, आगमन् विष्णुयश का नारद जी से मोक्ष विषयक प्रश्न, रुक्मिणी व्रत का प्रसंग और अंत में लोक में सतयुग की स्थापना के प्रसंग को वर्णित किया गया है। वह शुकदेव जी की कथा का गान करते हैं। अंत में दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी और शर्मिष्ठा की कथा है। इस पुराण में मुनियों द्वारा कथित श्री भगवती गंगा स्तव का वर्णन भी किया गया है। पांच लक्षणों से युक्त यह पुराण संसार को आनन्द प्रदान करने वाला है। इसमें साक्षात् विष्णु स्वरूप भगवान कल्कि के अत्यन्त अद्भुत क्रियाकलापों का सुन्दर व प्रभावपूर्ण चित्रण है। जो कल्कि पुराण का अध्ययन व पठन करते हैं, वे मोक्ष को प्राप्त करते हैं॥ जय कल्कि महाराज
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