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जानिए कौन है भगवान् शिव के अवतार एवं क्या है अवतार लेने के पीछे के भावIncarnation of Lord Shivaजानिए कौन है भगवान् शिव के अवतार एवं क्या है अवतार लेने के पीछे के भाव

जानिए कौन है भगवान् शिव के अवतार एवं क्या है अवतार लेने के पीछे के भाव – Incarnation of Lord Shiva

Incarnation of Lord Shiva गुरु माँ निधि जी श्रीमाली ने बताया है की भगवान शिव जी के कुल 19 अवतार हैं। इनके सबसे प्रसिद्ध अवतार काल भैरव और वीरभद्र हैं जिन्होंने धर्म की रक्षा हेतु दुष्ट लोगों का संहार किया। आज भी यह धर्म की रक्षा कर रहे हैं। कालों के काल, महाकाल जैसे नामों से प्रसिद्ध भगवान भोलेनाथ की गिनती त्रिदेव में होती है। इन्हें तंत्र मंत्र का अधिष्ठात्री देवता कहा जाता है। भगवान भोलेनाथ जी के द्वारा समय-समय पर कई अवतार लिए गए हैं जिनमें से कुछ अवतार दुष्ट असुरों का संहार करने के लिए तो कुछ अवतार देवताओं का अभिमान तोड़ने के लिए लिए गए हैं। Incarnation of Lord Shiva

भगवान् शिव के अवतार के पीछे का कारण 

  1. भगवान शिव अवतारों के रूप में धर्म संरक्षण के उद्देश्य से प्रकट होते हैं। जब धर्म की हानि होती है और अधर्म प्राचीनतम संस्कृति और आदर्शों को प्रभावित करने की कोशिश करता है।
  2.  भगवान शिव अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए अवतार लेते हैं, जैसे कि विष्णु भगवान के द्वारा भक्त प्रह्लाद की रक्षा की गई थी।
  3.   भगवान शिव के अवतार होने से पूर्व, ब्रह्मा, विष्णु और देवी-देवताएं समस्त दिक्पालकों और दिव्य शक्तियों के अध्यक्ष थे।
  4.  भगवान शिव के अवतार लेने से पृथ्वी पर धर्म की बल पूर्वक स्थापना होती है, जिससे लोगों को उन्नति की प्रेरणा मिलती है।
  5.  भगवान शिव अवतारों के रूप में धर्म की रक्षा के लिए दुर्योधन, दुरासा, रावण जैसे असुरी शक्तियों का वध करते हैं। Incarnation of Lord Shiva

भगवान शिव अपने अवतारों के द्वारा समस्त सत्य और धर्म को स्थापित करने, अधर्म को समाप्त करने, अनुशासन और शक्ति का प्रचार-प्रसार करने का काम करते हैं। Incarnation of Lord Shiva

भगवान शिव के 19 अवतार

गुरु माँ निधि जी श्रीमाली  के अनुसार शिव महापुराण में भगवान शिव के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है, लेकिन बहुत ही कम लोग इन अवतारों के बारे में जानते हैं। धर्म ग्रंथों  के अनुसार भगवान शिव के 19 अवतार हुए थे। ये हैं:

1. वीरभद्र अवतार : भगवान शिव का यह अवतार तब हुआ था, जब दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में माता सती ने अपनी देह का त्याग किया था। जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दिया। उस जटा के पूर्वभाग से महाभंयकर वीरभद्र प्रगट हुए। शिव के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया।

2. पिप्पलाद अवतार :  मानव जीवन में भगवान शिव के इस अवतार का बड़ा महत्व है। शनि पीड़ा का निवारण पिप्पलाद की कृपा से ही संभव हो सका।

3. नंदी अवतार : भगवान शंकर सभी जीवों का प्रतिनिधित्व करते हैं। भगवान शंकर का नंदीश्वर अवतार भी इसी बात का अनुसरण करते हुए सभी जीवों से प्रेम का संदेश देता है। नंदी (बैल) कर्म का प्रतीक है, जिसका अर्थ है कर्म ही जीवन का मूल मंत्र है। Incarnation of Lord Shiva

4. भैरव अवतार : शिव महापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है।

5. अश्वत्थामा : महाभारत के अनुसार पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के अंशावतार थे। ऐसी मान्यता है कि अश्वत्थामा अमर हैं तथा वह आज भी धरती पर ही निवास करते हैं। शिवमहापुराण (शतरुद्रसंहिता-7) के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं और वे गंगा के किनारे निवास करते हैं किंतु उनका निवास कहां हैं, यह नहीं बताया गया है।

6. शरभावतार: शरभावतार भगवान शंकर का छटा अवतार है। शरभावतार में भगवान शंकर का स्वरूप आधा मृग (हिरण) तथा शेष शरभ पक्षी (पुराणों में वर्णित आठ पैरों वाला जंतु जो शेर से भी शक्तिशाली था) का था। इस अवतार में भगवान शंकर ने नृसिंह भगवान की क्रोधाग्नि को शांत किया था। Incarnation of Lord Shiva

7. गृहपति अवतार: भगवान शंकर का सातवां अवतार है गृहपति। विश्वानर नाम के मुनि तथा उनकी पत्नी शुचिष्मती की इच्छा थी कि उन्हें शिव के समान पुत्र प्राप्ति हो। मुनि विश्वनार ने काशी में भगवान शिव के वीरेश लिंग की आराधना की और घोर तप किया। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने शुचिष्मति के गर्भ से पुत्ररूप में प्रकट हुए। कहते हैं, पितामह ब्रह्म! ने ही उस बालक का नाम गृहपति रखा था।

8. ऋषि दुर्वासा : भगवान शंकर के विभिन्न अवतारों में ऋषि दुर्वासा का अवतार भी प्रमुख है। धर्म ग्रंथों के अनुसार सती अनुसूइया के पति महर्षि अत्रि ने ब्रह्मा के निर्देशानुसार पत्नी सहित ऋक्षकुल पर्वत पर पुत्रकामना से घोर तप किया। उनके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी के अंश से चंद्रमा, विष्णु के अंश से श्रेष्ठ संन्यास पद्धति को प्रचलित करने वाले दत्तात्रेय और रुद्र के अंश से मुनिवर दुर्वासा ने जन्म लिया।

9. हनुमान जी : भगवान शिव का हनुमान अवतार सभी अवतारों में श्रेष्ठ माना गया है। इस अवतार में भगवान शंकर ने एक वानर का रूप धरा था।

10. वृषभ अवतार : भगवान शंकर ने विशेष परिस्थितियों में वृषभ अवतार लिया था। इस अवतार में भगवान शंकर ने विष्णु पुत्रों का संहार किया था।  

 11. यतिनाथ अवतार : भगवान शंकर ने यतिनाथ अवतार लेकर अतिथि के महत्व का प्रतिपादन किया था। उन्होंने इस अवतार में अतिथि बनकर भील दम्पत्ति की परीक्षा ली थी, जिसके कारण भील दम्पत्ति को अपने प्राण गवाने पड़े।

12. कृष्णदर्शन अवतार : भगवान शिव ने इस अवतार में यज्ञ आदि धार्मिक कार्यों के महत्व को बताया है। इस प्रकार यह अवतार पूर्णत: धर्म का प्रतीक है।

13. अवधूत अवतार : भगवान शंकर ने अवधूत अवतार लेकर इंद्र के अंहकार को चूर किया था। Incarnation of Lord Shiva

14. भिक्षुवर्य अवतार : भगवान शंकर देवों के देव हैं। संसार में जन्म लेने वाले हर प्राणी के जीवन के रक्षक भी हैं। भगवान शंकर काभिक्षुवर्य अवतार यही संदेश देता है।

15. सुरेश्वर अवतार : भगवान शंकर का सुरेश्वर (इंद्र) अवतार भक्त के प्रति उनकी प्रेमभावना को प्रदर्शित करता है। इस अवतार में भगवान शंकर ने एक छोटे से बालक उपमन्यु की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अपनी परम भक्ति और अमर पद का वरदान दिया।

16. किरात अवतार : इस अवतार में भगवान शंकर ने पाण्डुपुत्र अर्जुन की वीरता की परीक्षा ली थी। Incarnation of Lord Shiva

17. सुनटनर्तक अवतार : पार्वती के पिता हिमाचल से उनकी पुत्री का हाथ मागंने के लिए शिवजी ने सुनटनर्तक वेष धारण किया था। हाथ में डमरू लेकर शिवजी नट के रूप में हिमाचल के घर पहुंचे और नृत्य करने लगे। नटराज शिवजी ने इतना सुंदर और मनोहर नृत्य किया कि सभी प्रसन्न हो गए। जब हिमाचल ने नटराज को भिक्षा मांगने को कहा तो नटराज शिव ने भिक्षा में पार्वती को मांग लिया। इस पर हिमाचलराज अति क्रोधित हुए। कुछ देर बाद नटराज वेषधारी शिवजी पार्वती को अपना रूप दिखाकर स्वयं चले गए। उनके जाने पर मैना और हिमाचल को दिव्य ज्ञान हुआ और उन्होंने पार्वती को शिवजी को देने का निश्चय किया। Incarnation of Lord Shiva

18. ब्रह्मचारी अवतार : दक्ष के यज्ञ में प्राण त्यागने के बाद जब सती ने हिमालय के घर जन्म लिया तो शिवजी को पति रूप में पाने के लिए घोर तप किया। पार्वती की परीक्षा लेने के लिए शिवजी ब्रह्मचारी का वेष धारण कर उनके पास पहुंचे। पार्वती ने ब्रह्मचारी  को देख उनकी विधिवत पूजा की। जब ब्रह्मचारी ने पार्वती से उसके तप का उद्देश्य पूछा और जानने पर शिव की निंदा करने लगे तथा उन्हें श्मशानवासी व कापालिक भी कहा। यह सुन पार्वती को बहुत क्रोध हुआ। पार्वती की भक्ति व प्रेम को देखकर शिव ने उन्हें अपना वास्तविक स्वरूप दिखाया।

19. यक्ष अवतार : यक्ष अवतार शिवजी ने देवताओं के अनुचित और मिथ्या अभिमान को दूर करने के लिए धारण किया था। Incarnation of Lord Shiva

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इस साल अधिकमास होने के कारण श्रावण मास 2 महीने तक रहेगा अर्थात भगवान् शिव की भक्ति के लिए अधिक समय मिलेगा 19 साल बाद ऐसा संयोग बनने से श्रावण मास का महत्व ओर अधिक बढ़ गया हर साल की तरह इस साल भी हमारे संस्थान में महारुद्राभिषेक का आयोजन किया जा रहा है अगर आप भी भगवान् शिव की कृपा पाना चाहते है तो इस महारुद्राभिषेक में हिस्सा लेकर अपने नाम से रुद्राभिषेक करवाए यह रुद्राभिषेक गुरु माँ निधि जी श्रीमाली एवं हमारे अनुभवी पंडितो द्वारा विधि विधान से एवं उचित मंत्रो उच्चारण के साथ सम्पन्न होगा आज ही रुद्राभिषेक में हिस्सा लेकर भगवान् शिव का विशेष आशीर्वाद प्राप्त करे एवं किसी भी अन्य दिन किसी भी प्रकार की पूजा , जाप एवं भगवान् शिव के महामृत्युंजय का जाप करवाना चाहते है तो हमारे संस्थान में संपर्क करे
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