Ganesh Chaturthi – गणेश चतुर्थी की कहानी
Ganesh Chaturthi हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल चतुर्थी को हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार गणेश चतुर्थी मनाया जाता है. गणेश पुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार इसी दिन समस्त विघ्न बाधाओं को दूर करनेवाले, कृपा के सागर तथा भगवान शंकर और माता पार्वती के पुत्र श्री गणेश का आविर्भाव हुआ था. इन्हें देवसमाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। श्री गणेशजी बुद्धि के देवता हैं। गणेशजी का वाहन चूहा है। ऋद्धि तथा सिद्धि इनकी दो पत्नियाँ हैं। इनका सर्वप्रिय भोग मोदक (लड्डू) है। इस दिन रात्रि में चंद्रमा का दर्शन करने से मिथ्या कलंक लग जाता है। Ganesh Chaturthi
गणेश चतुर्थी व्रत कैसे करे
* इस दिन प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त हो जाएँ।
* इसके बाद सोने, तांबे, मिट्टी अथवा गोबर से गणेशजी की प्रतिमा बनाएँ।
* गणेशजी की इस प्रतिमा को कोरे कलश में जल भरकर मुँह पर कोरा कपड़ा बाँधकर उस पर स्थापित करें।
पश्चात ‘मम सर्वकर्मसिद्धये सिद्धिविनायक पूजनमहं करिष्ये’ मंत्र से संकल्प लें।
संकल्प मंत्र के बाद श्रीगणेश की षोड़शोपचार पूजन-आरती करें। गणेशजी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाएं। गणेश मंत्र ऊँ गं गणपतयै नम: बोलते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाएं। Ganesh Chaturthi
* फिर दक्षिणा अर्पित करके 21 लड्डुओं का भोग लगाएँ। इनमें से 5 लड्डू मूर्ति के पास ही रखें और 5 ब्राह्मण को दान कर दें। शेष लड्डू प्रसाद के रूप में बांट दें।
गणेश चतुर्थी व्रत में सावधानियाँ :-
* गणेशजी की पूजा सायंकाल के समय की जानी चाहिए। Ganesh Chaturthi
* पूजनोपरांत नीची नजर से चंद्रमा को अर्घ्य देकर ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा भी देनी चाहिए। नीची नजर से चंद्रमा को अर्घ्य देने का तात्पर्य है कि जहाँ तक संभव हो, इस दिन (भाद्रपद चतुर्थी को) चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए। इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने से कलंक का भागी बनना पड़ता है। यदि सावधानी बरतने के बावजूद चंद्र दर्शन हो ही जाएँ तो फिर स्यमन्तक की कथा सुनने से कलंक का प्रभाव नहीं रहता। Ganesh Chaturthi
गणेश चतुर्थी व्रत फल :-
वस्त्र से ढंका हुआ कलश, दक्षिणा तथा गणेश प्रतिमा आचार्य को समर्पित करके गणेशजी के विसर्जन का उत्तम विधान माना गया है। गणेशजी का यह पूजन करने से बुद्धि और ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति तो होती ही है, विघ्न-बाधाओं का भी समूल नाश हो जाता है।
श्रीगणेश चतुर्थी विघ्नराज, मंगल कारक, प्रथम पूज्य, एकदंत भगवान गणपति के प्राकट्य का उत्सव पर्व है। आज के युग में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि मानव जाति को गणेश जी के मार्गदर्शन व कृपा की आज हमें सर्वाधिक आवश्यकता है। आज हर व्यक्ति का अपने जीवन में यही सपना है की रिद्धि सिद्धि, शुभ-लाभ उसे निरंतर प्राप्त होता रहे, जिसके लिए वह इतना अथक परिश्रम करता है। ऐसे में गणपति हमें प्रेरित करते हैं और हमारा मार्गदर्शन करते हैं।
विषय का ज्ञान अर्जन कर विद्या और बुद्धि से एकाग्रचित्त होकर पूरे मनोयोग तथा विवेक के साथ जो भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु परिश्रम करे, निरंतर प्रयासरत रहे तो उसे सफलता अवश्य मिलती है। गणेश पुराण के अनुसार गणपति अपनी छोटी-सी उम्र में ही समस्त देव-गणों के अधिपति इसी कारण बन गए क्योंकि वे किसी भी कार्य को बल से करने की अपेक्षा बुद्धि से करते हैं। बुद्धि के त्वरित व उचित उपयोग के कारण ही उन्होंने पिता महादेव से वरदान लेकर सभी देवताओं से पहले पूजा का अधिकार प्राप्त किया।
गणेश चतुर्थी की कथा :-
एक बार भगवान शंकर स्नान करने के लिए कैलाश पर्वत से भोगावती नामक स्थान पर गए। उनके जाने के बाद पार्वती ने स्नान करते समय अपने तन के मैल से एक पुतला बनाया और उसे सतीव कर दिया। उसका नाम उन्होंने गणेश रखा। पार्वती जी ने गणेश जी से कहा- ‘हे पुत्र! तुम एक मुद्गर लेकर द्वार पर जाकर पहरा दो। मैं भीतर स्नान कर रही हूं। इसलिए यह ध्यान रखना कि जब तक मैं स्नान न कर लूं,तब तक तुम किसी को भीतर मत आने देना। उधर थोड़ी देर बाद भोगावती में स्नान करने के बाद जब भगवान शिव जी वापस आए और घर के अंदर प्रवेश करना चाहा तो गणेशजी ने उन्हें द्वार पर ही रोक दिया। इसे शिवजी ने अपना अपमान समझा और क्रोधित होकर उसका सिर, धड़ से अलग करके अंदर चले गए। टेढ़ी भृकुटि वाले शिवजी जब अंदर पहुंचे तो पार्वती जी ने उन्हें नाराज़ देखकर समझा कि भोजन में विलम्ब के कारण महादेव नाराज़ हैं। इसलिए उन्होंने तत्काल दो थालियों में भोजन परोसकर शिवजी को बुलाया और भोजन करने का निवेदन किया। तब दूसरी थाली देखकर शिवजी ने पार्वती से पूछा-‘यह दूसरी थाली किस के लिए लगाई है?’ इस पर पार्वती जी बोली-‘ अपने पुत्र गणेश के लिए, जो बाहर द्वार पर पहरा दे रहा है।’ यह सुनकर शिवजी को आश्चर्य हुआ और बोले- ‘तुम्हारा पुत्र पहरा दे रहा है? किंतु मैंने तो अपने को रोके जाने पर उसका सिर धड़ से अलग कर उसकी जीवन लीला समाप्त कर दी।’ यह सुनकर पार्वतीजी बहुत दुखी हुईं और विलाप करने लगीं। उन्होंने शिवजी से पुत्र को पुनर्जीवन देने को कहा। तब पार्वती जी को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर उस बालक के धड़ से जोड़ दिया। पुत्र गणेश को पुन: जीवित पाकर पार्वती जी बहुत प्रसन्न हुईं। उन्होंने पति और पुत्र को भोजन कराकर फिर स्वयं भोजन किया। यह घटना भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को घटित हुई थी। इसलिए यह तिथि पुण्य पर्व के रूप में मनाई जाती है।
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