Diwali Muhurat 2019
Diwali Muhurat 2019 पंडित एन. एम श्रीमाली जी के अनुसार दिवाली भारत का सबसे बड़े त्यौहारो में से एक त्यौहार है श्रीमाली जी का मानना हैं की यह त्यौहार मनाने का कारण मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम है क्योकि इस दिन भगवान राम अन्याय पर विजय पा कर सीता माता वह भाई लक्ष्मण के साथ अपना चौहद वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या लोटे थे अयोध्या लौटने पर अयोध्या वासी तथा सम्पूर्ण भारत वासियो ने अपने घरो के बाहर दीपक लगा कर रौशनी की थी जिससे उस दिन का नाम दिवाली पड़ा तथा उस दिन अमावस्या भी थी तो दिवाली हर वर्ष कार्तिक मास के अमावस्या को भारत देश में पुरे हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है श्रीमाली के अनुसार दिवाली का ये त्यौहार पांच दिन तक मनाया जाता है Diwali Muhurat 2019
1 ) धनतेरस
2 ) नरक चतुर्दशी (रूप चौदस)
3 ) दीपावली
4 ) गोर्वधन पूजा
5 ) भाई दूज
1 ) धनतेरस –
धनतेरस का अपने आप में ही एक महत्व है ऐसा माना जाता है की धनतेरस भगवान धन्वतरी जी के लिए मनाया जाता है आज ही के दिन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के जन्मदाता धन्वन्तरि वैद्य समुद्र से अमृत कलश लेकर प्रगट हुए थे, इसलिए धनतेरस को धन्वन्तरि जयन्ती भी कहते हैं। श्रीमाली जी के अनुसार धनतरेस इसीलिए वैद्य-हकीम और ब्राह्मण समाज आज धन्वन्तरि भगवान का पूजन कर धन्वन्तरि जयन्ती मनाते है। आज ही के दिन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के जन्मदाता धन्वन्तरि वैद्य समुद्र से अमृत कलश लेकर प्रगट हुए थे, इसलिए धनतेरस को ‘धन्वन्तरि जयन्ती’ भी कहते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि धनतेरस आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि की स्मृति में मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों में नए बर्तन ख़रीदते हैं और उनमें पकवान रखकर भगवान धन्वंतरि को अर्पित करते हैं। लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि असली धन तो स्वास्थ्य है।धन्वंतरि ईसा से लगभग दस हज़ार वर्ष पूर्व हुए थे। वह काशी के राजा महाराज धन्व के पुत्र थे।
उन्होंने शल्य शास्त्र पर महत्त्वपूर्ण गवेषणाएं की थीं। उनके प्रपौत्र दिवोदास ने उन्हें परिमार्जित कर सुश्रुत आदि शिष्यों को उपदेश दिए इस तरह सुश्रुत संहिता किसी एक का नहीं, बल्कि धन्वंतरि, दिवोदास और सुश्रुत तीनों के वैज्ञानिक जीवन का मूर्त रूप है। धन्वंतरि के जीवन का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग अमृत का है। उनके जीवन के साथ अमृत का कलश जुड़ा है। वह भी सोने का कलश। अमृत निर्माण करने का प्रयोग धन्वंतरि ने स्वर्ण पात्र में ही बताया था। उन्होंने कहा कि जरा मृत्यु के विनाश के लिए ब्रह्मा आदि देवताओं ने सोम नामक अमृत का आविष्कार किया था। सुश्रुत उनके रासायनिक प्रयोग के उल्लेख हैं। धन्वंतरि के संप्रदाय में सौ प्रकार की मृत्यु है। उनमें एक ही काल मृत्यु है, शेष अकाल मृत्यु रोकने के प्रयास ही निदान और चिकित्सा हैं। आयु के न्यूनाधिक्य की एक-एक माप धन्वंतरि ने बताई है।
Diwali Muhurat 2019
श्रीमाली जी के अनुसार इस दिन पूजा करने के लिए सर्वप्रथम एक बजोट रखें उस पर स्वस्तिक बना कर भगवान गणेश जी की मूर्ति स्थापित करें | उन्हें पंचामृत से स्नान कराकर शुद्ध जल से स्नान करवाए फिर इन्हें स्थापित करें | उसके पश्चात उन्हें धुप दीप , नैवैध्य , ताम्बुल और दूर्वा चढ़ाकर “ ॐ गं गणपतये नमः “ का जाप करते हुए उनका आह्वान करें | कुमकुम , रोली , अक्षत चड़ा कर उनकी पूजा करें | उसके पश्चात भगवान धन्वन्तरी की मूर्ति या तस्वीर न हो तो एक सुपारी पर मोली बांधकर मन ही मन उनके प्रतिरूप का आह्वान करते हुए उसे स्थापित करें | इसके पश्चात धन के देवता कुबेर की मूर्ति स्थापित कर उनका इस मंत्र से आह्वान करें और उनके धुप दीप नैवैद्य के रूप तुलसी दल चढ़ाएं क्योंकि उन्हें औषधीय चढ़ाना अतिप्रिय है और मंत्र का उच्चारण इसके पश्चात् धन देवता कुबेर की मूर्ति स्थापित कर उनका इस मंत्र से आह्वान करें और उनके ऊपर धुप दिप नैवैद्य चढ़ायें | और कुमकुम आदि से पूजा करें | अब अंत में मिटटी का दीपक रखें | जिसे हम यम का दीपक कहते है | वह दीपक दक्षिण दिशा में मुँह होना चाहिए | उसमें तेल डालें और जोत जलाएं | अब उसमें एक सफेद कोड़ी डालें ध्यान रहे की दीपक बुझे नहीं | अब उसे घर के मुख्य द्वार पर रखें | दिया बुझने पर उसमे से कोड़ी निकाल कर घर तिजोरी में रखें |
धनतेरस dhanteras का पर्व कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। इस दिन दिपावली का पांच दिवसीय त्यौहार शुरू होता है।
प्रचलित कथा के अनुसार इस दिन समुद्र मंथन से आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इस पर उन्होने देवताओं को अमृतपान कराकर अमर कर दिया था। इसको लेकर आयु और स्वस्थता की कामना हेतु धनतेरस पर भगवान धवंतरि का पूजन किया जाता है।
पंडित एन एम श्रीमाली के अनुसार इसी दिन भगवान धवंतरि पूजन भी किया जाता है। शाम के समय दीपक जलाकर घर, दुकान को सजाया जाता है। इसके साथ ही मंदिर गौशाओ, नदी के घाट, तालाब एवं बगीचे में भी दीपक जलाएं जाते है। इस अवसर पर तांबे, पीतल, चांदी के गृह उपयोगी नवीन बर्तन व आभूषण भी खरीदते है। बदलते समय के अनुसार अब लोगों की पंसद और जरूरत दोनों बदल गई है। जिसके कारण धनतेरस के दिन अब बर्तनों ओर आभूषणों के अलावा, वाहन, मोबाइल आदि भी खरीदे जाने लगे है।
धनतेरस का शुभ मुहर्त – कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष द्वादशी (बारस ) शुक्रवार दिनांक 25-10-2019.
दिन में लाभ का शुभ मुहर्त 8 बजकर 11 मिनट से लेकर 9 बजकर 34 मिनट तक रहेगा
अमृत काल का शुभ मुहर्त 9 बजकर 35 मिनट से लेकर 10 बजकर 58 मिनट तक रहेगा
शुभ काल का शुभ मुहर्त 12 बजकर 23 मिनट से लेकर 1 बजकर 45 मिनट तक रहेगा
रात में लाभ काल का शुभ मुहर्त 9 बजकर 10 मिनट से लेकर 10 बजकर 45 मिनट तक रहेगा | Diwali Muhurat 2019
Diwali Muhurat 2019
2 ) नरक चतुर्दशी (रूप चौदस) –
इसी दिन शाम को दीपदान की प्रथा है जिसे यमराज के लिए किया जाता है। इस पर्व का जो महत्व है उस दृष्टि से भी यह काफी महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पांच पर्वों की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्योहार है।
दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस फिर नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले रात के वक्त उसी प्रकार दीये की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात को।
3 ) दीपावली –
श्रीमाली जी के अनुसार हर वर्ष भारतवर्ष में दिवाली का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. प्रतिवर्ष यह कार्तिक माह की अमावस्या को मनाई जाती है. रावण से दस दिन के युद्ध के बाद श्रीराम जी जब अयोध्या वापिस आते हैं तब उस दिन कार्तिक माह की अमावस्या थी, उस दिन घर-घर में दिए जलाए गए थे तब से इस त्योहार को दीवाली के रुप में मनाया जाने लगा और समय के साथ और भी बहुत सी बातें इस त्यौहार के साथ जुड़ती चली गई.
दीवाली के दिन लक्ष्मी का पूजा का विशेष महत्व माना गया है, इसलिए यदि इस दिन शुभ मुहूर्त में पूजा की जाए तब लक्ष्मी व्यक्ति के पास ही निवास करती है. “ब्रह्मपुराण” के अनुसार आधी रात तक रहने वाली अमावस्या तिथि ही महालक्ष्मी पूजन के लिए श्रेष्ठ होती है. यदि अमावस्या आधी रात तक नहीं होती है तब प्रदोष व्यापिनी तिथि लेनी चाहिए. लक्ष्मी पूजा व दीप दानादि के लिए प्रदोषकाल ही विशेष शुभ माने गए हैं.Diwali Muhurat 2019
दीपावली का शुभ मुहर्त – कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष अमावस्या दिनांक 27-10-2019 .
दिन में लाभ काल का शुभ मुहर्त 9 बजकर 36 मिनट से लेकर 10 बजकर 58 मिनट तक रहेगा
अमृत काल में शुभ मुहर्त 10 बजकर 59 मिनट से लेकर 12 बजकर 22 मिनट तक रहेगा
शुभ काल में शुभ मुहर्त 1 बजकर 46 मिनट से लेकर 3 बजकर 9 मिनट तक रहेगा Diwali Muhurat 2019
रात्रि महालक्ष्मीं पूजन शुभ मुहर्त -Diwali Muhurat 2019
गोधुलिक सांय मेष लग्न वालो के लिए शुभ मुहर्त 5 बजकर 26 मिनट से लेकर 7 बजकर 3 मिनट तक रहेगा
शुभ का चौघड़िया 5 बजकर 56 मिनट से लेकर 7 बजकर 32 मिनट तक रहेगा
वृषभ लग्न शुभ मुहर्त 7 बजकर 04 मिनट से लेकर रात्रि 9 बजे तक रहेगा
अमृत काल का चौघड़िया 7 बजकर 33 मिनट से लेकर 9 बजकर 09 मिनट तक रहेगा
ग्रहबलि कर्क लग्न का चौघड़िया रात्रि 11 बजकर 15 मिनट से लेकर रात्रि 1 बजकर 33 मिनट तक रहेगा
सिंह लग्न का चौघड़िया रात्रि 1 बजकर 34 मिनट से लेकर 3 बजकर 48 मिनट तक रहेगा
लाभ का चौघड़िया रात्रि 2 बजे से लेकर 3 बजकर 35 मिनट तक रहेगा
शुभ का चौघड़िया सुबह 5 बजकर 13 मिनट से लेकर 6 बजकर 49 मिनट तक रहेगा Diwali Muhurat 2019
4 ) गोर्वधन पूजा –
बलि प्रतिप्रदा या गोर्वधन पूजा (अन्नकूट पूजा) कार्तिक महीने में मुख्य दिवाली के एक दिन बाद पडती है। हिन्दूओं द्वारा यह त्यौहार भगवान कृष्ण द्वारा इन्द्र देवता को हराने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। कभी कभी दिवाली और गोर्वधन के बीच में एक दिन का अन्तराल हो सकता है। लोग हिंदू भगवान कृष्ण को प्रदान करने के लिए गेहूं, चावल, बेसन और पत्तेदार सब्जियों की करी के रूप में अनाज का भोजन बनाकर गोवर्धन पूजा करते हैं।
भारत के कुछ स्थानों पर जैसे महाराष्ट्र में यह बलि प्रतिप्रदा या बलि पडवा के रुप में मनाया जाता है। यह भगवान वामन (भगवान विष्णु के अवतार) की राक्षस राजा बलि के ऊपर विजय के सम्मान में मनाया जाता है। यह माना जाता है कि राजा बलि को ब्रह्मा द्वारा शक्तिशाली होने का वरदान प्राप्त था।
कहीं-कहीं यह दिन कार्तिक के महीने की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा पर गुजरातियों द्वारा नए साल के रूप में मनाया जाता है।
गोर्वधन पूजा गोर्वधन पर्वत, जिसने भयंकर बारिश के दौरान बहुत से लोगों के जीवन की रक्षा की थी, के इतिहास के उपलक्ष्य में मनायी जाती है। यह माना जाता है कि गोकुल के लोग बारिश के देवता के रुप में देवता इन्द्र की पूजा करते थे। किन्तु भगवान कृष्ण ने गोकुल के लोगों की इस धारणा को बदला। उन्होंने कहा कि हमें अन्नकूट पहाड या गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिये क्योंकि वे ही असली भगवान के रुप में हमारा पोषण करते है, भोजन देते है, और कठोर परिस्थितियों में हमारा जीवन बचाने के लिये आश्रय देते है।Diwali Muhurat 2019
इस प्रकार उन्होंने देवता इन्द्र के स्थान पर पर्वत की पूजा करनी शुरु कर दी। यह देखकर इन्द्र बहुत क्रोधित हुआ और उसने गोकुल पर बहुत अधिक वर्षा करनी प्रारम्भ कर दी। अन्त में भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोर्वधऩ पर्वत उठाकर गोकुल के लोगो को इस पर्वत के नीचे ढक कर उनके जीवन की रक्षा की। इस प्रकार भगवान कृष्ण ने इन्द्र का घमण्ड तोङा। अब यह दिन गोर्वधन पूजा के रुप में गोर्वधन पर्वत को सम्मान देने के लिये मनाया जाता है।
महाराष्ट्र में यह दिन पडवा या बलि प्रतिपदा के रुप में मनाया जाता है, क्योंकि यह माना जाता है कि भगवान विष्णु द्वारा वामन (भगवान विष्णु के अवतार) रुप में राक्षस राजा बलि को हराकर पाताल लोक को भेजा गया।
श्रीमाली जी के अनुसार गोकुल और मथुरा के लोग बड़े उत्साह और खुशी के साथ इस त्यौहार को मनाते हैं। लोग गोर्वधन पर्वत का एक घेरा बनाते है, जिसे परिक्रमा के नाम से भी जाना जाता है (जो मानसी गंगा में नहाकर मानसी देवी, हरीदेवा और ब्रह्मकुण्ड की पूजा करके शुरु होता है। गोर्वधन परिक्रमा के रास्ते में लगभग 11 शिलायें है, जिनका अपना महत्व है) और पूजा करते है।
लोग गाय के गोबर से गोर्वधन धारा जी के रुप में बनाते है और उसे भोजन और फूलों से सुसज्जित करके पूजा करते है। अन्नकूट का अर्थ है कि लोग विविध प्रकार के भोग बनाकर भगवान कृष्ण को अर्पित करते है। भगवान की मूर्ति को दूध में नहला कर और नये कपडों के साथ साथ नये गहने पहनाये जाते है। उसके बाद पारपंरिक प्रार्थना, भोग और आरती के साथ पूजा की जाती है।Diwali Muhurat 2019
यह पूरे भारत में भगवान कृष्ण के मन्दिरों को सजाकर और बहुत सारे कार्यक्रमों को आयोजित करके मनाया जाता है और पूजा के बाद भोजन लोगो के बीच में बाँट दिया जाता है। लोग प्रसाद लेकर और भगवान के पैर छूकर भगवान कृष्ण से आशीर्वाद लेते है।
श्रीमाली जी के अनुसार गोवर्धन पूजा का महत्व
लोग गोर्वधन पर्वत की अन्नकूट (विभिन्न प्रकार के भोजन) बनाकर गोर्वधन पर्वत की नाच कर और गाकर पूजा करते है। वे मानते है कि पर्वत ही असली भगवान है और वह हमें जीने का रास्ता प्रदान करता है, गंभीर स्थिति में आश्रय प्रदान करता है और उनके जीवन को बचाता है। हर साल गोवर्धन पूजा विभिन्न रीति रिवाजों और परंपराओं बहुत के साथ खुशी से मनाते हैं। लोग बुराई की शक्ति पर भगवान की जीत के उपलक्ष्य में इस खास दिन पर भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं।
लोग इस विश्वास से गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं कि वे कभी इस पहाड़ के द्वारा संरक्षित किये गये थे और उन्हें हमेशा रहने का स्रोत मिला था। लोग सुबह में अपनी गायों और बैलों को स्नान कराते है और उन्हें केसर और मालाओं आदि से सजाते है। वे गाय के गोबर का ढेर बनाकर खीर, बतासे, माला, मीठे और स्वादिष्ट भोजन के साथ पूजा करते है। वे छप्पन भोग (56 प्रकार के भोजन) के लिये नवैध या 108 प्रकार के भोजन पूजा के दौरान भगवान को अर्पित करने के लिये बनाते है।Diwali Muhurat 2019
श्रीमाली जी के अनुसार गोर्वधन पर्वत मोर के आकार में है जिसका इस प्रकार वर्णन किया जा सकता है: राधा कुण्ड और श्याम कुण्ड आँख बनाते है, दन गती गर्दन बनाती है, मुखारबिन्द मुँह का निर्माण करती है और पंचारी लम्बे पंखो वाली कमर का निर्माण करती है। यह माना जाया है कि पुलस्त्य मुनि के शाप के कारण इस पर्वत की ऊँचाई दिन प्रतिदिन (रोज सरसों के एक बीज के बराबर) घटती जा रही है।
एकबार, सतयुग में, पुलस्त्य मुनि द्रोणकैला (पर्वतों का राजा) के पास गये और उसके गोर्वधन नाम के बेटे से अनुरोध किया। राजा बहुत उदास था और उसने मुनि से अपील की कि वह अपने बेटे से वियोग सहन नहीं कर सकता। अन्त में एक शर्त के साथ उसने अपने पुत्र को मुनि के साथ भेजा कि यदि कहीं रास्ते में उसे नीचे रखा तो वह सदा के लिये वही रुक जायेगा।Diwali Muhurat 2019
रास्ते में, बृजमंडल से गुजरते समय मुनि ने शौच करने के लिये उसे नीचे रख दिया। वापस आने के बाद उन्होने देखा कि वह उसे उस स्थान से उठा नहीं पा रहे है। तब वह क्रोधित हो गये और उन्होंने गोर्वधन को धीरे-धीरे आकार में छोटा होने का श्राप दे दिया। यह पहले 64 मील लम्बा, 40 मील चौडा और 16 मील ऊँचा था जो घटकर केवल 80 फीट रह गया है।Diwali Muhurat 2019
श्रीमाली जी के अनुसार गोर्वधन पूजा का शुभ मुहर्त दीपावली की अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। ये त्यौहार अन्नकूट के नाम से भी प्रसिद्ध है। गोर्वधन पूजा का भारतीय लोकजीवन में काफी महत्व है, क्योंकि इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा संबंद दिखाई देता है।Diwali Muhurat 2019
शुभ मुहर्त सांय 3 बजकर 23 मिनट से लेकर 5 बजकर 36 मिनट तक रहेगा
दिनांक 28-10-2019 को प्रतिपदा की शुभ तिथि का शुभ मुहर्त सुबह 9 बजकर 08 मिनट से लेकर
दिनांक 29-10-2019 सुबह 6 बजकर 13 मिनट तक रहेगा |
5 ) भाई दूज –
श्रीमाली जी के अनुसार 5 दिवसीय दीपोत्सव का समापन दिवस है भाईदूज
बहनों को इस दिन नित्य कर्म से निवृत्त होकर अपने भाई के दीर्घ जीवन, कल्याण एवं उत्कर्ष तथा स्वयं के सौभाग्य के लिए अक्षत (चावल) कुंकुमादि से अष्टदल कमल बनाकर इस व्रत का संकल्प कर मृत्यु के देवता यमराज की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। इसके पश्चात यमभगिनी यमुना, चित्रगुप्त और यमदूतों की पूजा करनी चाहिए, तदंतर भाई को तिलक लगाकर भोजन कराना चाहिए। इस विधि के संपन्न होने तक दोनों को व्रती रहना चाहिए।
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