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Bhagwan Ganesh विघ्नहर्ता गणेश जी

विघ्नहर्ता गणेश जी


Bhagwan Ganesh
श्री विध्नहर्ता श्री गणनायक देवो में श्रेष्ठ प्रथम पूज्य श्री गणेश जी महाराज को समर्पित करते है |
इस बार गणेश चतुर्थी दिंनाक 02-09-2019 सोमवार को है
श्रीमाली जी के अनुसार शिवपुराण के अनुसार एक बार माता पार्वती से  उनकी सखियों ने कहा कि हे माते भगवान शंकर के तो असंख्य गण है लेकिन उन पर हमारा कोई अधिकार नहीं चलता है अतः हमारे पास भी कुछ गण होने चाहिए। जिनपर हमारा पूरा अधिकार हो तो क्यों न आप ही कुछ गणों की रचना  दीजिये ना। उस वक्त तो पार्वती जी ने सखियों की बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। परंतु इसके कुछ समय बाद ही एक बार पार्वती जी जब स्नान कर रही थीं अचानक से शंकर भगवान उसी वक़्त वहाँ आ गये यह देखकर पार्वती जी को बहुत लज्जा महसूस हुई। उसी समय पार्वती जी को अपनी सखियों की कही हुई बात भी याद आ गई। पार्वती जी ने अपने नहाए हुए उबटन (मैल) को छुड़ाया और उस उबटन से एक मूर्ति / पुतला बनाने लगीं और जब वह बन कर तैयार हो गया तो पार्वती जी ने उसमें अपनी शक्तियों से जान डाल दी और फिर वो पुतला ही बालक गणेश बन गया और फिर उसे कपड़े पहनाकर अपने स्नानागार के द्वार पर बिठा दिया, साथ ही उन्होंने उसे एक गण्ड भी थमा दिया। उन्होंने उसका नाम गणेश रखा और कहा कि देखो बेटा तुम मेरे पुत्र हो और जब तक मैं स्नान करके बाहर न आ जाउ तब तक कोई भी अन्दर न आने पाए।  उसके बाद माता पार्वती अन्दर नहाने चली गयीं तथा गणेश जी वहीं द्वार पर ही रहकर पहरा देने लगे। Bhagwan Ganesh
कुछ देर बाद शंकर जी वहां आ गए और अन्दर जाने लगे तो गणेश ने उन्हें बाहर ही रोक लिया। उन्होंने कहा कि अन्दर माता जी स्नान कर रही हैं और उन्होंने कहा है कि कोई भी अन्दर न आए। यह सुनकर शंकर जी बाहर ही रुक गए। तथापश्चात गणेश जी को वहां से हटाने भोलेनाथ के गण आए। तब गणेश जी ने कहा कि देखो मेरा विरोध करना तुम सब के लिए अच्छा नहीं है अत: तुम यहां से लौट जाओ। इस पर गणों ने गणेश जी से कहा कि हम भगवान शिव जी के गण हैं। तब गणेश जी ने कहा कि तुम शिव जी के गण हो तो मैं पार्वती का गण हूं। बालक गणेश को काफी समझाने के बाद भी शिव जी के गणों को निराश होकर वहां से वापस लौटना पड़ा। इस पर शिव जी ने एक बार फिर अपने गणों से कहा कि वह बालक जो कोई भी है उसे वहां से हटा दो। इस पर गण दोबारा गणेश जी के पास गए और गणेश जी ने उन्हें फिर से घुड़क दिया। यह शोर सुन पार्वती जी ने अपनी सखियों से कहा कि देखो तो जरा कि बाहर क्या चल रहा है। फिर सखियाँ बाहर की स्थिति देखकर गयी और पार्वती जी से कहा कि बालक गणेश ने शिव जी को बाहर ही रोक दिया है। पार्वती ने कहा कि चलो अच्छा है नहीं तो शंकर जी बिना बताए ही अंदर आ जाते थे। उधर गण फिर से वापस शिव जी के पास पहुँच गए और उनसे कहा कि प्रभु हमने उस बालक को बहुत समझाने का प्रयत्न किया किन्तु वह बालक तो बहुत ज्यादा हठी और उद्दंड है  किसी भी तरह वहाँ से हटने का नाम ही नहीं ले रहा है इस पर शिव जी ने फिर से अपने गणों को आदेश दिया कि वह जो कोई भी हो उसे वहां से हटा दो और अगर जरुरत पड़े तो उससे युद्ध भी करो, ऐसा कहकर महादेव सांसारिक लीला करने लगे।शिव जी की आज्ञा से उनके गण निर्भय होकर गणेश जी से युद्ध करने चले गए  जी को चेतावनी दी इस पर गणेश जी ने कहा कि अब तुम मुझ अकेले का पराक्रम देखो। शिव जी के अनेक बहादुर गण भी गणेश जी का कुछ भी नहीं बिगाड़ पाए। गणेश जी ने सभी गणों को मारपीट कर वहाँ से भगा दिया। इस पर देवताओं ने शिव जी के पास जाकर युद्ध का कारण पूछा, तो शिव जी ने बताया कि स्नानघर के द्वार पर एक बालक बैठा हुआ है, उसके और वो मुझे अंदर नहीं जाने दे रहा है। इस पर ब्रह्मा जी बालक को समझाने गए, उन्हें देखकर गणेश जी क्रोध से भर गए और ब्रहमा जी के बहुत समझाने के बाद भी नहीं माने उलटे ब्रह्मा जी का अपमान भी कर बैठे । तब ब्रह्मा जी वहाँ से चले गये देवताओं ने जब यह समाचार शिव जी को सुनाया, तो शिव जी क्रोधित हो उठे। और गणेश जी को सजा देने के लिए वह जा पहुँचे और बालक गणेश से युद्ध करने लगे और गुस्से में आकर बालक गणेश का सिर काट दिया तब जाकर देवता व गण निश्चिंत हुए। किंतु जैसे ही इस घटना के बारे में पार्वती जी को पता चला तो जानकर पार्वती को बहुत क्रोध आ गया जब उन्होंने सुना कि देवताओं और गणों ने उनके पुत्र गणेश को मार दिया है तब उन्होंने निश्चय किया कि वो सभी का नाश करके प्रलय मचा देंगी। उन्होंने अपनी शक्ति से एक लाख शक्तियां उत्पन्न कर लीं और उन्हें प्रलय मचाने की आज्ञा दे दी। उन शक्तियों को देखकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदि निराश हो गए और सभी देवतागण काँपने लगे । उन्हें लगा कि ये तो अकारण ही प्रलय मचा देंगी। Bhagwan Ganesh
आखिर में पंडित एन एम् श्रीमाली जी बताते है की सभी देवी, देवताओं, ऋषियों ने पार्वती जी से क्षमा माँगते हुए प्रार्थना की कि हे माते हमे ज्ञात नहीं था की गणेश आपका ही पुत्र है, हम सबका अपराध क्षमा करो, और कृपया अपना गुस्सा त्याग दो तथा इस प्रलय को रोक दो। बहुत अनुनय विनय के बाद उन सभी की प्रार्थना पर देवी चंडिका बोलीं अगर तुम मेरे पुत्र को जीवित कर दो तो मैं यह प्रलय रोक दूंगी। पार्वती जी की बात सुनकर सभी देवताओं ने शिव जी से कहा भगवान वही करना चाहिए जिसमें सबका भला हो। तब शिव जी ने कहा कि हाँ एक उपाय है अगर हम बालक गणेश के धड़ पर किसी और का सिर लगा दें तो यह फिर से जीवित हो उठेगा और उन्होंने अपने गणों को आदेश दिया कि तुम सभी उत्तर दिशा की ओर जाओ और जो कोई भी सबसे पहले जो मिले उसी का सिर काट कर  ले आओ हम उसे गणेश के धड़ पर जोड़ देंगे और वह जीवित हो जाएगा। यह सुनकर सभी गण उत्तर दिशा की ओर चल पड़े । Bhagwan Ganesh काफी चलने के बाद उन्हें एक  हाथी दिखाई दिया। वो उसके पास गए और उसी का सिर काटकर अपने साथ ले आए और कुछ सोच विचार करने के बाद शिव जी ने उस हठी के सिर को ही गणेश जी के धड़ से जोड़ दिया गया और वो फिर से जीवित हो उठे और फिर शिव जी ने भी उन्हें अपना पुत्र मान लिया।पंडित एन एम श्रीमाली जी कहते है की गणपति विघ्नहर्ता हैं, इसलिए नौटंकी से लेकर विवाह की एवं गृह प्रवेश जैसी समस्त विधियों के प्रारंभ में गणेश पूजन किया जाता है। ‘पत्र अथवा अन्य कुछ लिखते समय सर्वप्रथम॥ श्री गणेशाय नमः॥, ॥श्री सरस्वत्यै नमः ॥,॥श्री गुरुभ्यो नमः ॥ ऐसा लिखने की प्राचीन पद्धति थी। ऐसा ही क्रम क्यों बना? किसी भी विषय का ज्ञान प्रथम बुद्धि द्वारा ही होता है व गणपति बुद्धि दाता हैं, इसलिए प्रथम ‘॥ श्री गणेशाय नमः ॥’ लिखना चाहिए। Bhagwan Ganesh
बुद्धि जो ज्ञान ग्रहण किया गया हो उसे शब्दबद्ध करना सरस्वती का कार्य है। सरस्वती को ज्ञानदेव ने ‘अभिनव वाग्लिसिनी’ कहा है। श्री समर्थ ने कहा है, ‘शब्द मूळ वाग्देवता, अर्थ : शब्दों के मूल के देवता’; इसलिए दूसरा क्रमांक श्री सरस्वती को दिया। गुरु ही ज्ञान को ग्रहण करने का व उसे शब्दबद्ध करने का माध्यम बनते हैं; इसलिए गुरु को तीसरा क्रमांक दिया गया है।
महाभारत लिखने के लिए महर्षि व्यास को एक बुद्धिमान लेखक की आवश्यकता थी। यह कार्य करने के लिए उन्होंने गणपति से ही प्रार्थना की थी। Bhagwan Ganesh

* गणेशजी के माता-पिता : पार्वती और शिव।

* गणेशजी के भाई : श्रीकार्तिकेय (बड़े भाई)। हालांकि उनके और भी भाई हैं जैसे सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा।

* गणेशजी की बहन : अशोक सुंदरी। हालांकि महादेव की और भी पुत्रियां थीं जिन्हें नागकन्या माना गया- जया, विषहर, शामिलबारी, देव और दोतलि। अशोक सुंदरी को भगवान शिव और पार्वती की पुत्री बताया गया इसीलिए वही गणेशजी की बहन है। इसका विवाह राजा नहुष से हुआ था।

* गणेशजी की पत्नियां : गणेशजी की 5 पत्नियां हैं : ऋद्धि, सिद्धि, तुष्टि, पुष्टि और श्री।

* गणेशजी के पुत्र : पुत्र लाभ और शुभ तथा पोते आमोद और प्रमोद।

* अधिपति : जल तत्व के अधिपति।

* प्रिय पुष्प : लाल रंग के फूल।

* प्रिय वस्तु : दुर्वा (दूब), शमी-पत्र।

* प्रमुख अस्त्र : पाश और अंकुश।

* गणेश वाहन : सिंह, मयूर और मूषक। सतयुग में सिंह, त्रेतायुग में मयूर, द्वापर युग में मूषक और कलियुग में घोड़ा है। Bhagwan Ganesh

* गणेशजी का जप मंत्र : ॐ गं गणपतये नम: है।

* गणेशजी की पसंद : गणेशजी को बेसन और मोदक के लड्डू पसंद हैं।

* गणेशजी की प्रार्थना के लिए : गणेश स्तुति, गणेश चालीसा, गणेशजी की आरती, श्रीगणेश सहस्रनामावली आदि।

* गणेशजी के 12 प्रमुख नाम : सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न-नाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन। Bhagwan Ganesh

गणेश चतुर्थी के दिन किये जाने वाले उपाय

इस बार गणेश चतुर्थी दिंनाक 02-09-2019 सोमवार को है

पंडित एन एम श्रीमाली जी के अनुसार यदि आप कोई नया कार्य यदि आपने शुरू किया है तो आपको गणेश जी को लड्डू का भोग लगाना चाहिए और 25 दूर्वादल गणेश भगवान को अर्पित करे Bhagwan Ganesh

ॐ गं गणपतये

का जाप करना चाहिए और 25 दूर्वादल आप गणेश भगवान को अर्पित करोगे और लड्डू का भोग लगाओगे तो ऐसा माना जाता है| की उससे आपके नये कार्य में आ रही समस्या दूर होगी आपको सफलता मिलेगी और आपके सुखसमृद्धि  में वृद्धि होगी साथ ही गणेश जी को केथ और जामुन का भोग लगाने का विशेष महत्व है| गणेश चतुर्थी के दिन विशेषकर गणेश जी को लड्डू बहुत प्रिय है| तो 100 लड्डू एक साथ खाने का विधान है के 100 लड्डूओं का गणेश जी को एक साथ भोग लगाना चाहिए| परन्तु वैज्ञानिक द्रष्टि से देखे तो मीठा खाने से हमे मधुमेह की समस्या हो जाती है| तो ऐसा गणेश जी के मंत्रो में उच्चारित है की गणेश जी को जामुन का या केथ का भोग लगाते है तो गणेश जी अत्यन्त प्रिय होते है| वह उनके लड्डूओं के भोग के बराबर होता है| वह मधुमेह के लिये भी बहुत ही उपयोगी सिद्ध होता है| इसलिये गजानन्द जी महाराज को केथ या जामुन का भोग लगाना चाहिए| और इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए

गजाननम भुतगणादी सेवितम

कपितय जाम्बुफलम चारुभक्ष्न्म

ये गजानन्द जी का मंत्र है| जो आपको जामुन का भोग लगाते समय गजानन्द जी को बोलना है| ज्योतिष में गजानन्द जी महाराज का क्या महत्व होता है| और गणेश चतुर्थी के दिन हम ऐसा क्या उपाय करे और उन लोगो को जिनके जिन जातको की कुंडली में बुध ग्रह नीच का होकर बैठा है| क्युकी गणेश जी बुध ग्रह के प्रतिक है| आधिपति देवता है बुध ग्रह के इसलिये जिनका बुध नीच का होकर बैठा है| अशुभ होकर बैठा है| या शत्रु क्षेत्रीय होकर बैठा है| तो आपको गजानन्द भगवान की पूजा आराधना विशेष रूप से गणेश चतुर्थी पर करनी चाहिए| इसके लिये सर्वप्रथम आपको ऊन के आसन पर बैठ जाना है| उनको धुप,दीप,नेवेद्यया अर्पित करना है| उसके साथ में गणेश गायत्री मंत्र का उच्चारण करना है| ज्योतिष में गणेश जी का एक विशेष महत्व है| गणपति महाराज बुध ग्रह के आधिपति देवता है| इसलिये उन जातको को गणेश चतुर्थी के दिन विशेष रूप से पूजा आराधना गणेश जी की करनी चाहिए| जिनके कुंडली में बुध ग्रह नीच का होकर बैठा है| अशुभ है या शत्रु क्षेत्रीय होकर बैठा है| उन्हें गणेश चतुर्थी के दिन विशेष पूजा आराधना करनी चाहिए उनको गणेश जी को दीपक, अगरबती लगा कर धुप दीप नेवेद्यया चढ़ाने चाहिए| ऊन के आसन पर उनको विराजित हो जाना है| उसके पश्चात उनको गणेश गायत्री मंत्र

एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।

इस मंत्र का कम से कम 21 माला आपको गणेश चतुर्थी के दिन जाप करनी चाहिए अगर आप गणेश चतुर्थी के दिन इस मंत्र का उच्चारण करते है| और इस माला का अधिक से अधिक जाप करते है| तो आपके बुध ग्रह के अशुभ जो प्रभाव है| वो नष्ट हो जायेंगे| गणेश जी का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होगा| और आपको कई गुणा गणेश जी का बुध ग्रह से सम्बंधित शुभ फल मिलना शुरू हो जायेगा इसके साथ ही शास्त्रों में ये नियम है की वास्तु के अनुसार आपके घर में गणेश जी की तीन मुर्तिया नही रखनी चाहिए गणेश जी की दो मूर्ति आप विराजित कर सकते है| परन्तु तीन मूर्ति रखना वर्जित है| आपके घर में यदि वास्तु दोष है तो आपको घर में मुख्यद्वार पर गणेश जी का प्रतीक चिह्न या फिर गणेश जी की मूर्ति स्थापित करना आवश्यक है| यह मूर्ति यदि शवेतार्क हो यानि सफ़ेद आकड़े की बनी हो सफ़ेद आकड़े के अगर गणपति हो तो वह आपको बहुत ही अधिक फलदायी रहते है| आपके घर के सारे वास्तुदोषों का नाश हो जाता है| और आप पर उनकी विशेष कृपा द्रष्टि बनी रहती है| आपके घर में सुख शांति और समृद्धि का वास होता है| वह शवेतार्क गणपति बहुत ही अधिक चमत्कारिक है| और वह अवश्य घर के मुख्यद्वार पर विराजित कर देना है| अगर ये उपाय आप गणेश चतुर्थी के दिन करते है तो और भी अधिक फलदायी रहता है| तो मित्रो कुछ उपाय मैने आपको बताये जो आपको गणेश चतुर्थी के दिन करने है| इससे गणेश भगवान का आपको विशेष आशीर्वाद प्राप्त होगा| और आपका अशुभ बुध ग्रह है आपकी कुंडली के अन्दर या बुध नीच का होकर बैठा है| तो आपके बुध ग्रह का अशुभ प्रभाव ख़त्म हो जायेगा और शुभ फल बुध ग्रह देना शुरू हो जायेगा|  Bhagwan Ganesh

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