Astro Gyaan|Astrology Tips|Featured

Bhagavad Gita श्रीमद्भागवतगीता का अध्ययन से मनुष्य के जीवन का उद्धार

श्रीमद्भागवतगीता का अध्ययन से मनुष्य के जीवन का उद्धार


Bhagavad Gita

श्रीमद्भागवतगीता का अध्ययन क्यों करें

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्‌ ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्‌ ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥

भावार्थ :

हे भारत जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ॥
साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ॥ Bhagavad Gita

भगवान् श्री कृष्णजी ने गीता के माध्यम से संसार को जो शिक्षा दी वह अनुपम है, वेदों का सार है उपनिषद और उपनिषदों का सार है ब्रह्मसूत्र और ब्रह्मसूत्र का सार है गीता, सार का अर्थ है निचोड़ या रस, गीता में उन सभी मार्गों की चर्चा की गयी है जिन पर चलकर मोक्ष, बुद्धत्व, कैवल्य या समाधि प्राप्त की जा सकती है। Bhagavad Gita

दूसरे शब्दों में कहें तो जन्म-मरण से छुटकारा पाया जा सकता है, या खुद के स्वरूप को पहचानना भी कहा जा सकता है, यानी आत्मज्ञान प्राप्त किया जा सकता है, या ईश्वर को प्राप्त करना भी कहा जा सकता है, भगवान् श्रीकृष्ण के वे रहस्यमय सूत्र निश्‍चित ही आपके जीवन में बहुत काम आ सकते हैं, जीवन में सफलता चाहते हैं ‍तो गीता के ज्ञान को अपनायें और निश्‍चिंत एवम् भयमुक्त जीवन पायें।

भगवान् श्रीकृष्‍ण कहते हैं कि यदि आप लक्ष्य को प्राप्त करने में विफल रहते हैं, तो अपनी रणनीति बदलें, लक्ष्य नहीं, इस जीवन में न कुछ खोता है, न व्यर्थ होता है, खुशी मन की एक अवस्था है, जो बाहरी दुनिया से नहीं मिल सकती, खुश रहने की एक ही कुंजी है अपनी इच्छाओं को कम करना, वासना, क्रोध और लोभ ये आत्मा के पतन के तीन द्वार है, या इसे नर्क के तीन द्वार भी कह सकते हैं। Bhagavad Gita

क्रोध से भ्रम पैदा होता है और भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है, जब बुद्धि व्यग्र होती है, तब तर्क नष्ट हो जाता है, जब तर्क नष्ट होता है, तब व्यक्ति का पतन हो जाता है, जो सभी इच्छायें त्याग देता है और मैं और मेरा की लालसा से मुक्त हो जाता है उसे ही शान्ति प्राप्त होती है, विश्वास क्या है? मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है, जैसा वो विश्वास करता है, वैसा वो बन जाता है, व्यक्ति जो चाहे बन सकता है, यदि व्यक्ति विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करे। Bhagavad Gita

हर व्यक्ति का विश्वास उसकी प्रकृति के अनुसार होता है, विश्‍वास की शक्ति को पहचानें, हमारे मित्र और शत्रु दोनों है मन, और जो मन को नियंत्रित नहीं कर सकते उनके लिये मन शत्रु के समान कार्य करता है, मन की गतिविधियों, होश, श्वास और भावनाओं के माध्यम से भगवान् की शक्ति सदा हमारे साथ है और लगातार हमें एक साधन की तरह प्रयोग कर के सभी कार्य करवा रही है। Bhagavad Gita

मन अशान्त है और उसे नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है, सर्वोच्च शान्ति प्राप्त करने के लिये हमें हमारे कर्मों के सभी परिणाम और लगाव को छोड़ देना चाहियें, केवल मन ही हमारा मित्र है और मन ही हमारा शत्रु, उससे मत डरो जो वास्तविक नहीं है, जो न कभी था और न कभी होगा, जो वास्तविक है वो हमेशा था और उसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता। Bhagavad Gita

प्रबुद्ध व्यक्ति के लिये पत्थर और सोना सभी समान हैं, संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता न इस लोक में है, न ही परलोक में, आत्मज्ञान की तलवार से काटकर अपने हृदय से अज्ञान के संदेह को अलग कर दो, अनुशासित रहो, और उठो, संदेह, संशय, दुविधा या द्वंद्व में जीने वाले लोग न तो इस लोक में सुख पाते हैं और न ही परलोक में, उनका जीवन निर्णयहीन, दिशाहीन और भटकाव से भरा रहता है।

आत्मा न जन्म लेती है और न ही मरती है, जन्म लेने वाले के लिये मृत्यु उतनी ही निश्चित है जितन‍ी कि मृत के लिये जन्म लेना, इसलिये जो अपरिहार्य है उस पर शोक मत करो, न कोई मरता है और न ही कोई मारता है, सभी निमित्त मात्र हैं, सभी प्राणी जन्म से पहले बिना शरीर के थे, मरने के उपरांत वे बिना शरीर वाले हो जायेंगे, यह तो बीच में ही शरीर वाले देखे जाते हैं, फिर इनका शोक क्यों करते हो?

यह आत्मा किसी काल में भी न जन्मती है और न मरती है, क्योंकि यह अजन्मी, नित्य, शाश्वत और पुरातन है, भगवान् श्रीकृष्ण अपने सखा अर्जुन से कहते हैं- शरीर के नाश होने पर भी यह नष्ट नहीं होती है, कभी ऐसा समय नहीं था जब मैं, तुम या ये राजा-महाराजा अस्तित्व में नहीं थे, न ही भविष्य में कभी ऐसा होगा कि हमारा अस्तित्व समाप्त हो जायें, हमारा अस्तित्व सनातन है, जो था और रहेगा। Bhagavad Gita

भगवान् अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन! हम दोनों ने कई जन्म लिये हैं, मुझे वे जन्म सभी याद हैं, लेकिन तुम्हें याद नहीं, निःसंदेह कोई भी मनुष्य किसी भी काल में क्षणमात्र भी बिना कर्म किये नहीं रह सकता, क्योंकि सारा मनुष्य समुदाय प्रकृतिजनित गुणों द्वारा परवश हुआ कर्म करने के लिए बाध्य है, अपने अनिवार्य कार्य करो, क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता से बेहतर है।

ज्ञानी व्यक्ति को कर्म के प्रतिफल की अपेक्षा कर रहे अज्ञानी व्यक्ति के दिमाग को अस्थिर नहीं करना चाहिये, भाई-बहनों। भगवान् श्रीकृष्णजी ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को निमित्त बनाकर गीता रूपी अमृत दिया है जो भवसागर से तारने वाला है

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेवा। Bhagavad Gita

RELATED PRODUCT

Astadhatu Arjun-Rath

Asthadhatu Ladoo Gopal

Shri Krishna Yantra

Parad Radha Krishna (Mercury राधा कृष्णा)

Silver Radha Krishna Pendant

Note: Daily, Weekly, Monthly and Annual Horoscope is being provided by Pandit N.M.Srimali Ji, almost free. To know daily, weekly, monthly and annual horoscopes and end your problems related to your life click on  (Kundli Vishleshan) or contact Pandit NM Srimali  Whatsapp No. 9929391753,E-Mail- [email protected]

Connect with us at Social Network:-

social network panditnmshrimali.com social network panditnmshrimali.com social network panditnmshrimali.com social network panditnmshrimali.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *