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जानिए क्या है भद्राकाल , शनि देव से क्या है इसका संबंध एवं भद्रकाल में वर्जित कार्य – Bhadrakal

जानिए क्या है भद्राकाल , शनि देव से क्या है इसका संबंध एवं भद्रकाल में वर्जित कार्य – Bhadrakal

Bhadrakal गुरु माँ निधि जी श्रीमाली ने बताया है की हिंदू धर्म में पूजा-पाठ और शादी-विवाह से लेकर सभी कार्य शुभ मुहूर्त पर ही करने का विधान है. यही कारण है कि किसी भी शुभ-मांगलिक कार्य से पहले पंचांग देखर मुहूर्त निकाले जाते हैं. मान्यता है कि शुभ तिथि व मुहूर्त में किए गए कार्य संपन्न और सफल होते हैं. हिंदू धर्म में भद्रा काल या भद्रा मुहूर्त को अनुकूल नहीं माना जाता है. इसलिए भद्रा काल में शुभ-मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं – Bhadrakal

कौन है भद्रा, शनि देव से क्या है इसका संबंध. 

शनि महाराज की तरह ही इनकी बहन भद्रा भी काफी खतरनाक मानी जाती है।  सूर्य देव की इस पुत्री का स्वरुप बड़ा ही भयंकर है। रंग काला, केश लंबे और दांत विकाराल है। जन्म लेते ही यह संसार को खाने के लिए दौड़ पड़ी, यज्ञों को नष्ट कर दिया, मंगल यात्रों में बाधा डालने लगी। इनके इस व्यवहार के कारण किसी भी देवता ने विवाह करने से मना कर दिया। सूर्य देव ने जब विवाह के लिए स्वंवर का आयोजन किया तो भद्रा ने उसे भी नष्ट कर दिया। तब ब्रह्मा जी ने भद्रा से कहा कि हे भद्रा तुम बव, बालव, कौलव, तैतिल आदि करणों के अंत में सातवें करण के रुप में स्थित रहो। इस तरह ब्रह्मा जी ने भ्रदा को समय का एक भाग दे दिया। ब्रह्मा जी ने भ्रदा से यह भी कहा कि जो व्यक्ति तुम्हारे समय में यात्रा, गृहप्रवेश, खेती, व्यापार और मांगलिक कार्य करे तुम उसमें विघ्न डालो। जो तुम्हारा आदर न करे, उसका कार्य ध्वस्त कर दो। भद्रा ने ब्रह्मा जी की यह बात मान ली और समय के एक अंश में विराजमान हो गई। इसलिए किसी भी शुभ काम का आरंभ भद्रा काल में नहीं किया जाता है। Bhadrakal

कैसे करें भद्रा की गणना

पंचांग के अनुसार मुहूर्त की गणना की जाती है. पंचांग के मुख्य भाग में तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण मुहूर्त होते हैं. करण की 11 संख्या होती है, जिसमें 4 अचर और 7 चर होते हैं. इन्हीं 7 चर वाले करण में एक करण को विष्टी करण कहा जाता है, जो भद्रा कहलाती है. चर करण होने के कारण भद्रा स्वर्ग लोक, पाताल लोक और पृथ्वी लोक पर हमेशा गतिशील होती है. Bhadrakal

किसी समय किस लोक पर होती ही भद्रा  

चर करण होने के कारण भद्रा स्वर्ग, पाताल और पृथ्वी लोक पर हमेशा गतिशील होती है. गुरु माँ निधि जी श्रीमाली के अनुसार, चंद्रमा के कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होने से भद्रा का वास पृथ्वी पर होता है. वहीं चंद्रमा जब मेष, वृष या मिथुन राशि में होता है, तब भद्रा का वास स्वर्ग लोक में होता है और चंद्रमा के धनु, कन्या, तुला या मकर राशि में होने से भद्रा पाताल लोक में वास करती है. भद्रा जिस समय जिस लोक होती है उसका प्रभाव भी उसी लोक में होता है. ऐसे में जब पृथ्वी पर जब भद्रा का वास होता है तो शुभ-मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं Bhadrakal

भद्रा काल में कौन-कौन से कार्य वर्जित है
गुरु माँ निधि जी श्रीमाली ने बताया कि ग्रंथों के अनुसार भद्रा में कई कार्यों को निषेध माना गया है. जैसे मुण्डन संस्कार, गृहारंभ, विवाह संस्कार, गृह – प्रवेश, रक्षाबंधन, शुभ यात्रा, नया व्यवसाय आरंभ करना और सभी प्रकार के मंगल कार्य भद्रा में वर्जित माने गये हैं.

मुहुर्त्त मार्त्तण्ड के अनुसार भद्रा में किए गये शुभ काम अशुभ होते हैं. कश्यप ऋषि ने भद्रा के अति अनिष्टकारी प्रभाव बताया है.  अपना जीवन जीने वाले व्यक्ति को कोई भी मंगल काम भद्राकाल में नहीं करना चाहिए. यदि कोई व्यक्ति अनजाने में ही मंगल कार्य करता है तब उसके मंगल कार्य के सब फल समाप्त हो सकते हैं. Bhadrakal

भद्रा में कर सकते हैं ये कार्य

गुरु माँ निधि जी श्रीमाली के अनुसार भद्रा काल में शुभ कार्य करना वर्जित बताया गया है लेकिन अगर आप मुकदमा शुरू करना चाहते हैं या मुकदमे संबंधी कार्य चल रहे हैं तो भद्रा काल सही समय माना जाता है। इसके साथ ही भद्रा में ऑपरेशन, शत्रु दमन, युद्ध, अग्नि कार्य, विवाद संबंधी काम, शस्त्रों से जुड़े कार्य और सभी अनैतिक कार्य इस काल में कर सकते हैं। Bhadrakal

भद्रा से बचने के उपाय

गुरु माँ निधि जी श्रीमाली के अनुसार भद्रा के दुष्प्रभावों से बचने के लिए कुछ उपाय बताए गए हैं। अगर भद्रा में कोई कार्य कर रहे हैं तो सुबह उठकर भद्रा के बारह नाम का स्मरण करें और भद्रा की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। ऐसा करने से भद्रा का अशुभ प्रभाव नहीं पड़ता है और आपके कार्य बिना किसी अड़चन के पूरे हो जाते हैं Bhadrakal

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