जानिए बछबारस का महत्व , पूजा विधि , कथा एवं नियम – Bachhbaras
Bachhbaras गुरु माँ निधि जी श्रीमाली ने बताया है की भाद्रपद मास (भादों) की कृष्णपक्ष की द्वादशी तिथि के दिन बछ बारस का पर्व मनाया जाता हैं। इस साल बछबारस का पर्व 11 सितम्बर 2023 को मनाया जायेगा इस दिन पुत्रवती स्त्रियाँ अपने पुत्र के स्वास्थ्य और लम्बी उम्र के लिये गौमाता से प्रार्थना करती हैं और बछड़े वाली गाय का पूजन करती हैं। इस दिन चाकू से काटी गई वस्तुयें, गेहूँ, जौ, और गाय के दूध से बनी चीजों का सेवन निषेध हैं। एक दिन पहले ही रात्रि को बछबारस के लिये मूंग, मोठ, चने एवं बाजरा भिगो कर रख दिया जाता है। उसे भिजोना कहते हैं Bachhbaras
बछबारस का महत्व
गाय व बछड़े की पूजा करने से कृष्ण भगवान का , गाय में निवास करने वाले देवताओं का और गाय का आशीर्वाद मिलता है जिससे परिवार में खुशहाली बनी रहती है ऐसा माना जाता है। इस दिन महिलायें बछ बारस का व्रत रखती है। यह व्रत सुहागन महिलाएं सुपुत्र प्राप्ति और पुत्र की मंगल कामना के लिए व परिवार की खुशहाली के लिए करती है। गाय और बछड़े का पूजन किया जाता है। गौमाता की बछड़े सहित पूजा की जाती है। माताएं अपने पुत्रों को तिलक लगाकर तलाई फोड़ने के बाद लड्डू का प्रसाद देती है यानि आज के दिन पुत्रवान महिलायें अपने पुत्र की मंगल कामना के लिए व्रत रखती हैं और पूजा करती हैं। इस दिन बायना निकाला जाता है और उद्यापन भी किया जाता है। Bachhbaras
गोवत्स द्वादशी की कथा
गुरु माँ निधि जी श्रीमाली के अनुसार बहुत समय पहले एक गांव में एक साहूकार अपने साथ बेटों व फोटो के साथ रहता था। साहूकार ने गांव में एक तालाब बनवाया था लेकिन तालाब में जल नहीं था। तालाब नहीं भरने का कारण पूछने के लिए उसने पंडित से पूछा। तो पंडित ने कहा इसमें जल भरने के लिए तुम्हें अपने बड़े बेटे या बड़े पोते की बलि देनी होगी। तो साहूकार ने अपनी बहू को पीहर भेज दीया और उसके पीछे अपने बड़े पोते की बलि दे दी इतने में तेज वर्षा हुई और तालाब भर गया। इसके बाद जब बछ बारस आई और सभी महिलाएं तालाब बनने के कारण उसमें पूजा करने आई साथ ही साहूकार भी अपने परिवार के साथ वहां पूजा करने गया। साहूकार ने दासी को बोला कि वह गेहूंला पका लें। साहूकार का तात्पर्य गेहूं के दान से था परंतु दासी यह नहीं समझ पाई और उसने गेहूंला जो गाय के बछड़े का नाम था उसे पका दिया। और उसी दिन बड़े बेटे की पत्नी भी पीहर से तालाब पूछने आई थी तालाब पूजन के बाद जब उसने अपने बच्चों को प्यार करने लगी तभी बड़े बेटे के बारे में पूछा और वही बड़ा बेटा तालाब से निकलकर बोला ना मुझे भी प्यार करो। यह देखकर सब हैरान हो गए सास ने बहू को सारी बात बताई। और तालाब पूजन के बाद जब सारे घर पहुंचे तो देखा कि गाय का बछड़ा नहीं दिख रहा तो दासी से पूछने पर उसने कहा कि उसने उसे पका दिया। तो साहूकार ने कहा अभी एक बात तो उतरा है तुमने दूसरा पाप कर दिया। साहूकार ने वह गाय का बछड़ा मिट्टी में दबा दिया और जब शाम को गाय लौटी तो वह स्वयं के बच्चे को ढूंढने लगी तब बछड़ा मिट्टी में से निकल आया। और जब साहूकार ने देखा कि बछड़ा गाय का दूध पी रहा था। तब साहूकार ने यह बात पूरे गांव में फैला दी कि बछ बारस के दिन मां को स्वयं के पुत्र के लिए व्रत करने से लाभ प्राप्त होते है। और यह कहानी कहते सुनते ही सभी को मनोकामनाएं पूर्ण करती है। Bachhbaras
बछबारस पूजा की विधि
पूजा के लिए भैंस का दूध और दही , भीगा हुआ चना और मोठ ले | मोठ-बाजरे में घी और चीनी मिलाये | गाय के रोली का टीका लगाकर चावल के स्थान पर बाजरा लगाये | बायने के लिए एक कटोरी में भीगा हुआ चना , मोठ ,बाजरा और रुपया रखे | इस दिन बछड़े वाले गाय की पूजा की जाती है यदि गाय की पूजा नही कर सकते तो एक पाटे पर मिटटी से बछबारस बनाते है और उसके बीच में एक गोल मिटटी की बावडी बनाते है | फिर उसको थोडा दूध दही से भर देते है | फिर सब चीजे चढाकर पूजा करते है | इसके बाद रोली ,दक्षिण चढाते है |स्वयम को तिलक निकालते है | हाथ में मोठ और बाजरे के दाने को लेकर कहानी सुनाते है | बछबारस के चित्र की पूजा भी की जा सकती है | यह पूजा गोधुली बेला में की जाती है, जब सूर्य देवता पूरी तरह ना निकले हों.
बछ बारस व्रत विधि
यह निराहार व्रत है. इसमें गाय और बछड़े की चंदन अक्षत, धूप, दीप नैवैद्य आदि से विधिवत पूजा की जाती हैं.
पूजा में धान या चावल का इस्तेमाल गलती से भी ना करें. पूजन के लिए आप काकून के चावल का इस्तेमाल कर सकते हैं.
व्रत करने वाली महिलाएं गोवत्स द्वादशी के दिन गेहूं, चावल आदि जैसे अनाज नहीं खा सकतीं. साथ में उनका दूध या दूध से बनी चीजें खाना भी वर्जित होता है.
यह व्रत कार्तिक, माघ व वैशाख और श्रावण महीनों की कृष्ण द्वादशी को होता है. कार्तिक में वत्स वंश की पूजा का विधान है. इस दिन के लिए मूंग, मोठ तथा बाजरा अंकुरित करके मध्यान्ह के समय बछड़े को सजाने का विशेष विधान है.
व्रत करने वाले व्यक्ति को भी इस दिन उक्त अन्न ही खाने पड़ते हैं. Bachhbaras
बछ बारस के व्रत का उद्यापन
बछ बारस के व्रत का उद्यापन करते समय इसी प्रकार का भोजन बनाना चाहिए। उज़मने में यानि उद्यापन में बारह स्त्रियां, दो चाँद सूरज की और एक साठिया इन सबको यही भोजन कराया जाता है।
गुरु माँ निधि जी श्रीमाली के अनुसार इस दिन गाय की सेवा करने से, उसे हरा चारा खिलाने से परिवार में महालक्ष्मी की कृपा बनी रहती है तथा परिवार में अकालमृत्यु की सम्भावना समाप्त होती है।
जिस साल लड़का हो या जिस साल लडके की शादी हो उस साल बछबारस का उद्यापन किया जाता है | सारी पूजा हर वर्ष की तरह करे | सिर्फ थाली में सवा सेर भीगे मोठ बाजरा की तरह कुद्दी करे | दो दो मुट्ठी मोई का (बाजरे की आटे में घी ,चीनी मिलाकर पानी में गूँथ ले ) और दो दो टुकड़े खीरे के तेरह कुडी पर रखे | इसके उपर एक तीयल (दो साडीया और ब्लाउज पीस ) और रुपया रखकर हाथ फेरकर सास को छुकर दे | इस तरह बछबारस का उद्यापन पूरा होता है | Bachhbaras
बछ बारस पर्व के नियम
- यह पर्व महिलाएं सुपुत्र प्राप्ति और उसकी मंगल कामना (सुरक्षा) के लिए करती है। गाय और बछड़े का पूजन किया जाता है। भारतीय धार्मिक शास्त्रों के अनुसार बछ बारस पर्व के कुछ नियम इस प्रकार हैं –
- इस दिन गाय का दूध और उससे बने पदार्थ जैसे दही, मक्खन, घी आदि का उपयोग नहीं किया जाता, केवल भैंस या बकरी का दूध ही उपयोग में लिया जाता है।
- गेहूँ तथा इनसे बने खाद्य पदार्थ नहीं खाये जाते। भोजन में बेसन से बने आहार जैसे कढ़ी, पकोड़ी, भजिये आदि तथा मक्के, बाजरे, ज्वार आदि की रोटी तथा बेसन से बनी मिठाई का उपयोग किया जाता है।
- भोजन में चाकू से कटी हुई किसी भी चीज का सेवन नहीं करते है।
- इस दिन घरों में विशेष कर बाजरे की रोटी जिसे सोगरा कहा जाता है और अंकुरित अनाज की सब्जी बनाई जाती है।
- इस दिन अंकुरित अनाज जैसे चना, मोठ, मूंग, मटर आदि का उपयोग किया जाता है। Bachhbaras
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