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भगवान् शिव ने क्यों लिया अर्धनारीश्वर स्वरूप जानिए इसके पीछे का रहस्य एवं स्वरूप के पूजा के लाभ – Ardhanarishwar Swaroop

भगवान् शिव ने क्यों लिया अर्धनारीश्वर स्वरूप जानिए इसके पीछे का रहस्य एवं स्वरूप के पूजा के लाभ – Ardhanarishwar Swaroop

Ardhanarishwar Swaroop त्रिदेवों में शिव एक हैं. ब्रह्मदेव जहां सृष्टि के रचयिता माने गए हैं, वहीं विष्णु पालक और शिव संहारक माने गए हैं. इनमें श्री विष्णु को हरि और शिव को हर कहा जाता है. भक्तजन दोनों के नाम को हरि-हर एक साथ बोलते हैं, तो एकेश्वर की संज्ञा दी जाती है. गुरु माँ निधि जी श्रीमाली के अनुसार विष्णु के 24 अवतार हैं, जिनमें वे अपने मूल-स्वरूप से किसी और प्राणी की देह के रूप में धरती पर रहकर गए. उसी प्रकार शिवजी के भी कई अंशावतार हुए. उन्‍हीं का एक स्वरूप ‘अर्धनारीश्वर’   हैं. Ardhanarishwar Swaroop

अर्धनारीश्वर स्वरूप का आशय 

भोलेनाथ की पूजा कई युगों से शिवलिंग के रुप में करते आ रहे हैं और भोलेनाथ को उनके अनेक रुपों में पूजते हैं। ऐसा ही एक निर्मल स्वरुप है अर्धनारीश्वर भगवान शिव के इस रुप में उनके साथ शक्ति भी हैं। भगवान शिव ने यह रुप ब्रह्मा जी के सामने लिया था। कहा जाता है की भगवान शिव और शक्ति को एक साथ प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरुप की आराधना की जाती है। अर्धनारीश्वर स्वरुप का अर्थ है आधी स्त्री और आधा पुरुष। भगवान शिव के इस अर्धनारीश्वर स्वरुप के आधे हिस्से में पुरुष रुपी शिव का वास है तो आधे हिस्से में स्त्री रुपी शिवा यानि शक्ति का वास है। भगवान के इस रुप से हमें संकेत दिया जाता है की स्त्री और पुरुष एक ही सिक्के के दो पहलु हैं और दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। यह संसार इन दोनों के बीना अधूरा हो जाता है। Ardhanarishwar Swaroop

अर्धनारीश्वर स्वरुप धारण  करने के पीछे का रहस्य 

गुरु माँ निधि जी श्रीमाली के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में जब ब्रह्माजी द्वारा रची गई मानसिक सृष्टि विस्तार न पा सकी इस बात से वे बहुत दुःखी हुए। उसी समय आकाशवाणी हुई हे ब्रह्म! अब मैथुनी सृष्टि करो। आकाशवाणी सुनकर ब्रह्माजी ने मैथुनी सृष्टि रचने का निश्चय तो कर लिया लेकिन उस समय तक नारियों की उत्पत्ति न होने के कारण वे अपने निश्चय में सफल नहीं हो सके। तब ब्रह्माजी ने सोचा कि परमेश्वर शिव की कृपा के बिना मैथुनी सृष्टि नहीं हो सकती। अतः वे उन्हें प्रसन्न करने के लिए कठोर तप करने लगे। बहुत दिनों तक ब्रह्माजी अपने हृदय में प्रेमपूर्वक भगवान शिव का ध्यान लगा कर बैठे रहे। एक दिन उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान उमा-महेश्वर ने उन्हें अर्धनारीश्वर रूप में दर्शन दिया।  शिव ने कहा- पुत्र ब्रह्मा! तुमने प्रजा की वृद्धि के लिए जो कठिन तप किया है, उससे मैं परम प्रसन्न हूं। मैं तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी करूंगा। ऐसा कहकर शिवजी ने अपने शरीर के आधे भाग से उमा देवी को अलग कर दिया। ब्रह्मा ने कहा कि एक उचित सृष्टि निर्मित करने में अब तक मैं असफल रहा हूं। मैं अब स्त्री-पुरुष के समागम से प्रजा को उत्पन्न कर सृष्टि का विस्तार करना चाहता हूं। परमेश्वरी शिवा ने अपनी भौंहों के मध्य भाग से अपने ही समान कांतिमती एक शक्ति प्रकट की। सृष्टि निर्माण के लिए शिव की वह शक्ति ब्रह्माजी की प्रार्थना के अनुसार दक्ष की पुत्री हो गई। इस प्रकार ब्रह्माजी को उपकृत कर और अनुपम शक्ति देकर देवी शिवा महादेव जी के शरीर में प्रविष्ट हो गईं, यही है भगवान के अर्धनारीश्वर शिव का रहस्य है और इसी से आगे सृष्टि का संचालन हो पाया। Ardhanarishwar Swaroop

अर्धनारीश्वर अवतार किसका प्रतीक है

भगवान शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप इस बात का प्रतीक है कि पुरुष और स्त्री सिद्धांत अविभाज्य हैं। अर्धनारीश्वर स्वरूप का आधा हिस्सा पुरुष और दूसरा आधा हिस्सा स्त्री का प्रतीक है। इसमें से पुरुष सिद्धांत और ब्रह्मांड की निष्क्रिय शक्ति है, जबकि प्रकृति स्त्री सक्रिय शक्ति है दोनों एक साथ मिलकर ही सृष्टि का निर्माण करते हैं और इसी से ब्रह्माण्ड का निर्माण होता है। यह स्वरूप इस बात का संकेत देता है कि स्त्री और पुरुष एक दूसरे की शक्ति के बिना अधूरे हैं और उनकी ऊर्जा भी अर्थहीन है Ardhanarishwar Swaroop

कैसा है अर्धनारीश्वर स्वरुप

गुरु माँ निधि जी श्रीमाली ने बताया है की शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप के पुरुष वाले हिस्से की छवि में बालों की जटाएं विराजमान हैं जो अर्धचंद्र से सुशोभित हैं। कभी-कभी यह जटा सर्पों से भी अलंकृत होती हैं और बालों के माध्यम से धारा में प्रवाहित होने वाली गंगा नदी दिखाई देती है।

दाहिने कान में एक नाक-कुंडल या सर्प-कुंडल है। त्रिनेत्र या तीसरी आंख दोनों ही रूपों में दिखती है। माथे के पुरुष पक्ष पर एक आधा तीसरा नेत्र दिखता है और पार्वती जी के माथे के हिस्से को आधी बिंदी से अलंकृत है।

वहीं इस स्वरुप के स्त्री वाले हिस्से में सांवरे हुए बाल नजर आते हैं। बायां कान एक कुण्डल से सुसज्जित है। एक तिलक उसके माथे को सुशोभित करता है। कुल मिलाकर उनका स्वरूप शिव पार्वती की मिली-जुली छवि दिखाता है। Ardhanarishwar Swaroop

अर्धनारीश्वर स्वरूप पूजा के लाभ 

  • यदि आप भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप की पूजा करती हैं तो उससे पूजा का दोगुना फल मिलता है। इस पूजा से शिव और पार्वती दोनों की पूजा का एक साथ फल मिलता है और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
  • शिव का अर्धनारीश्वर रूप पुरुष और स्त्री की समानता को दिखाता है। यदि आप नियमित रूप से शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप की पूजा करती हैं तो आपकी कई समस्याओं का समाधान हो सकता है।
  • जैसे शादी में होने वाली देरी से लेकर संतान प्राप्ति में होने वाली देरी जैसे कई अड़चनों को दूर किया जा सकता है। शिव के इस स्वरूप का पूजन करते समय शिव मंत्रों का जाप करें इससे आपके जीवन में शिव शक्ति की कृपा बनी रह सकती है।
  • इस प्रकार भगवान शिव का अर्धनारीश्वर स्वरुप वास्तव में अत्यंत पूजनीय और शिव शक्ति की ऊर्जा से पूर्ण है, जिनकी पूजा के विशेष लाभ होते हैं। Ardhanarishwar Swaroop

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