Mahakal

जानिए भगवान् शिव को महाकाल क्यों कहा जाता है – Mahakal

Mahakal गुरु माँ निधि जी श्रीमाली ने बताया है की भगवान शिव को ‘महाकाल  ’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे काल अर्थात समय एवं मृत्यु से परे हैं। तीनों काल उनमें समाए हैं- भूत, वर्तमान और भविष्य.. इन तीनों के बारे में महादेव जानते हैं। एक बार ऋषि मार्कंडेय के प्राण लेने मृत्यु के देवता यमराज आए। लेकिन ऋषि मार्कंडेय की रक्षा के लिए शिवलिंग में स्वयं भगवान शिव अपने त्रिशूल के साथ प्रकट हुए। यमराज ऋषि मार्कंडेय को अपने साथ न लेजा सके। तो मृत्यु (काल) तब तक किसी को नहीं छु सकती जब तक शिव जी की आज्ञा न हो। समय (काल) को भी शंकर जी नियंत्रित करते हैं। तो महादेव ही हैं जिनकी अनुमति के बिना यमराज किसी के प्राण नहीं ले सकते। महा मृत्युंजय मंत्र का जाप करने से कभी अकाल मृत्यु नहीं होती। तो भगवान शिव काल के भी काल हैं इसलिए उन्हें ‘महाकाल’ कहा जाता है। भोलेनाथ अच्छे लोगों का भला करें और बुराई का विनाश। Mahakal

महाकाल का अर्थ है काल से भी ऊपर, या काल की परिधि से बाहर। शिव तीनो देवो में विनाश के कारक है, विनाश या प्रलय के बाद साड़ी सृष्टि एक नए सिरे से शुरू होती है। ऐसे में सब कुछ उस प्रलय में विलय हो जाता है। अर्थात सभी समय के अंतर्गत ही आते है, और सबका विनाश निश्चित है। इसी क्रम में न केवल सृष्टि, बल्कि इंद्र, ब्रह्मा, यहाँ तक श्री विष्णु का भी विनाश और सृजन होता रहता है। इसीलिए यह सभी भी काल की परिधि में आते है। केवल विनाश के देव शिव की काल की परिधि से बहार रह कर काल अनुरूप सबका विनाश करते है, इसिलिए उन्हें महाकाल कहा जाता है।  Mahakal

काल का संहार करने वाले हैं महाकाल

गुरु माँ निधि जी श्रीमाली  अनुसार उज्जैन जिसे पहले उज्जैनी और अवंतिकापुरी के नाम से भी जाना जाता था। यहां एक शिव भक्त ब्राह्मण निवास करता था। अंवतिकापुरी की जनता दूषण नाम के राक्षस के प्रकोप से त्राहि-त्राहि कर रही थी। लोग उसे काल के नाम से जानते थे। ब्रह्रा से जी दूषण को कई शक्तियां मिली थी, जिनका दुरुपयोग कर वह निर्दोष लोगों को परेशान करता था। राक्षस की शक्तियों के प्रकोप से ब्राह्मण काफी दुखी था, उसने भगवान शिव से राक्षस के नाश की प्रार्थना की, लेकिन भगवान ने काफी वक्त तक कुछ नहीं किया। प्रार्थनाओं का असर न होता देख एक दिन ब्रह्म भगवान शिव से नाराज हो गया और उनका पूजन बंद कर दिया। अपने ब्राह्मण भक्त को दुखी देख भगवान शिव हुंकार के रूप में प्रकट हुए और दूषण का वध कर दिया। क्योंकि लोग दूषण को काल कहते थे, इसलिए उसके वध के कारण भगवान शिव का नाम महाकाल पड़ा। Mahakal

भक्तों को अलग-अलग रूप में देते हैं महाकाल दर्शन

उज्जैन में विराजित महाकाल एक ही है, लेकिन वह अपने भक्तों को अलग-अलग रूपों में दर्शन देते हैं। हर वर्ष और पर्व के अनुरूप ही उनका श्रृंगार किया जाता है। जैसे शिवरात्रि में वह दूल्हा बनते हैं तो श्रावण मास में राजाधिराज बन जाते हैं। दिवाली में जहां महाकाल का आंगन दीपों से सज जाता है, तो होली में गुलाल से रंग जाता है। जहां ग्रीष्म ऋतु में महाकाल के मस्तक में मटकियों से जल गिरता है, तो कार्तिक मास में भगवान विष्णु को सृष्टि का कार्यभार सौंपने के लिए पालकी में विराजित हो जाते हैं। महाकाल के हर एक रूप को देखकर व्यक्ति मोहित हो जाता है। Mahakal

अकाल मृत्यु के निवारण के लिए की जाती है महाकाल की पूजा

काल का वध करने के कारण बाबा महाकाल की पूजा का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से बाबा महाकाल की आराधना करता है, उसे कभी मृत्यु का भय नहीं डराता न ही कभी उसकी अकाल मृत्यु होती है। मंदिर में अकाल मृत्यु के निवारण के लिए बाबा महाकाल की विशेष पूजा की जाती है। Mahakal

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इस साल अधिकमास होने के कारण श्रावण मास 2 महीने तक रहेगा अर्थात भगवान् शिव की भक्ति के लिए अधिक समय मिलेगा 19 साल बाद ऐसा संयोग बनने से श्रावण मास का महत्व ओर अधिक बढ़ गया हर साल की तरह इस साल भी हमारे संस्थान में महारुद्राभिषेक का आयोजन किया जा रहा है अगर आप भी भगवान् शिव की कृपा पाना चाहते है तो इस महारुद्राभिषेक में हिस्सा लेकर अपने नाम से रुद्राभिषेक करवाए यह रुद्राभिषेक गुरु माँ निधि जी श्रीमाली एवं हमारे अनुभवी पंडितो द्वारा विधि विधान से एवं उचित मंत्रो उच्चारण के साथ सम्पन्न होगा आज ही रुद्राभिषेक में हिस्सा लेकर भगवान् शिव का विशेष आशीर्वाद प्राप्त करे एवं किसी भी अन्य दिन किसी भी प्रकार की पूजा , जाप एवं भगवान् शिव के महामृत्युंजय का जाप करवाना चाहते है तो हमारे संस्थान में संपर्क करे
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