स्वस्तिक पिरामिड
स्वस्तिक पिरामिड :- स्वस्तिक शब्द “सु” एवं “अस्ति” का मिश्रण है। “सु” का अर्थ है – “शुभ” और “अस्ति” का अर्थ है – “होना”। अर्थात “शुभ हो”, “कल्याण हो”। स्वस्तिक अर्थात कुशल एवं कल्याण। हिंदू धर्म में स्वस्तिक को शक्ति, सौभाग्य, समृद्धि और मंगल का प्रतीक माना जाता है। हर मांगलिक कार्य में यह बनाया जाता है। स्वस्तिक का बायां हिस्सा गणेश की शक्ति का स्थान “गं” बीजमंत्र होता है। इसमें जो चार बिंदिया होती हैं, उनमें गौरी, पृथ्वी, कच्छप और अनंत देवताओं का वास होता है। इस मंगल-प्रतीक का गणेश की उपासना, धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के साथ, बही-खाते की पूजा की परंपरा आदि में विशेष स्थान है। इसकी चारों दिशाओं के अधिपति देवताओं, अग्नि, इन्द्र, वरुण एवं सोम की पूजा हेतु एवं सप्तऋषियों के आशीर्वाद को प्राप्त करने में प्रयोग किया जाता है। यह चारों दिशाओं और जीवन चक्र का भी प्रतीक है। घर के वास्तु को ठीक करने के लिए स्वस्तिक का प्रयोग किया जाता है। स्वस्तिक के चिह्न को भाग्यवर्धक वस्तुओं में गिना जाता है। स्वस्तिक पिरामिड के प्रयोग से घर की नकारात्मक ऊर्जा बाहर चली जाती है। स्वस्तिक की चार भुजाएं चार गतियों – नरक, त्रियंच, मनुष्य एवं देव गति की द्योतक हैं। इनमें मांगलिक चिन्हों का समावेश किया जाता है। वास्तु दोष निवारण में स्वस्तिक पिरामिड का बहुतायत प्रयोग किया जाता है। मांगलिक चिन्हों का प्रयोग घर-मकानों व्यवसायिक स्थलों में परम्परागत रूप से किया जाता है। वास्तु निर्माण में पूजा-अर्चना के बाद से ही मांगलिक चिन्ह का प्रयोग आरंभ हो जाता है। ये चिन्ह हमारी धार्मिक भावनाओं से जुड़े होते हैं, इन्हें अपनाकर हम अपने अंदर शक्ति का अनुभव करते है। पंडित एन. एम. श्रीमाली जी के अनुसार मुख्यद्वार पर इन चिन्हों को लगाने से घर में हर प्रवेश करने वाले व्यक्ति के साथ सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है, इन्हें बनाने या इनको प्रतीक रूप से लगाने से घर में सुख-शान्ति एवं मंगलकारी प्रभाव उत्पन्न होते है। ये मांगलिक चिन्ह हमारी संस्कृति व सभ्यता की धरोहर है। संसार में हर धर्म, हर सम्प्रदाय के लोग अपने-अपने धर्म से संबंधित मांगलिक चिन्हों का प्रयोग करते है। स्वस्तिक न केवल भारत में बल्कि अन्य देशो में भी विभिन्न रूपों में माना जाता है। स्वस्तिक पिरामिड आवास को स्वास्थ्य, सुख-समृद्घि देने वाला तो बनाता ही है, घर में मौजूद वास्तु दोषों का प्रभाव कम करने में भी प्रमुख भूमिका निभाता है। इस अत्यंत पावन प्रतीक का प्रयोग प्राचीन काल से ही होता आ रहा है। पंडित एन. एम. श्रीमाली जी के अनुसार परिसर में किसी भी प्रकार का वास्तु दोष होने की स्थिति में मुख्य द्वार के दोनों ओर एक-एक स्वस्तिक पिरामिड रखने से लाभ होता है। बही और तिजोरी पर स्वस्तिक का चिह्न् बना देने से व्यापार में बढ़ोतरी होती है और खुशहाली आती है।
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