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श्रावण मास

श्रावण मास:-

 

हिन्दू कैलेण्डर के बारह मासों में से सावन का महीना अपनी विशेष पहचान रखता है. इस माह में चारों ओर हरियाली छाई रहती है.वेदों में मानव तथा प्रकृति का बडा़ ही गहरा संबंध बताया गया है. वेदों में लिखी बातों का अर्थ है कि बारिश में ब्राह्मण वेद पाठ तथा धर्म ग्रंथों का अध्ययन करते हैं. इन मंत्रों को पढ़ने से व्यक्ति को सुख तथा शांति मिलती है. सावन में बारिश होती है. इस बारिश में अनेक प्रकार के जीव-जंतु बाहर निकलकर आते हैं. यह सभी जन्तु विभिन्न प्रकार की आवाजें निकालते हैं. उस समय वातावरण ऎसा लगता है कि जैसे किसी ने अपना मौन व्रत तोड़कर अभी बोलना आरम्भ किया हो. श्रावण मास में आने वाले सोमवार के दिनों में भगवान शिवजी का व्रत करना चाहिए और व्रत करने के बाद भगवान श्री गणेश जी, भगवान शिवजी, माता पार्वती व नन्दी देव की पूजा करनी चाहिए

                    जीव-जन्तुओं की भाषा का वर्णन इस प्रकार किया गया है कि जिस प्रकार बारिश होने पर जीव-जन्तु बोलने लगते हैं उसी प्रकार व्यक्ति को सावन के महीने से शुरु होने वाले चौमासों(चार मास) में ईश्वर की भक्ति के लिए धर्म ग्रंथों का पाठ सुनना चाहिए. धर्मिक दृष्टि से समस्त प्रकृति ही शिव का रुप है. इस कारण प्रकृति की पूजा के रुप में इस माह में शिव की पूजा विशेष रुप से की जाती है. सावन के महीने में वर्षा अत्यधिक होती है. इस माह में चारों ओर जल की मात्रा अधिक होने से शिव का जलाभिषेक किया जाता है. 

श्रावण मास में शिव पूजन क्यों :- 

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से विष निकला था. इस विष को पीने के लिए शिव भगवान आगे आए और उन्होंने विषपान कर लिया. जिस माह में शिवजी ने विष पिया था वह सावन का माह था. विष पीने के बाद शिवजी के तन में ताप बढ़ गया. सभी देवी – देवताओं और शिव के भक्तों ने उनको शीतलता प्रदान की लेकिन शिवजी भगवान को शीतलता नहीं मिली. शीतलता पाने के लिए भोलेनाथ ने चन्द्रमा को अपने सिर पर धारण किया. इससे उन्हें शीतलता मिल गई. 

                  ऎसी मान्यता भी है कि शिवजी के विषपान से उत्पन्न ताप को शीतलता प्रदान करने के लिए देवराज इंद्र ने भी बहुत वर्षा की थी. इससे भगवान शिव को बहुत शांति मिली. इसी घटना के बाद सावन का महीना भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए मनाया जाता है. सारा सावन, विशेष रुप से सोमवार को, भगवान शिव को जल अर्पित किया जाता है. महाशिवरात्रि के बाद पूरे वर्ष में यह दूसरा अवसर होता है जब भगवान शिव की पूजा बडे़ ही धूमधाम से मनाई जाती है. 

श्रावण मास की विशेषता :- 

हिन्दु धर्म के अनुसार सावन के पूरे माह में भगवान शंकर का पूजन किया जाता है. इस माह को भोलेनाथ का माह माना जाता है. भगवान शिव का माह मानने के पीछे एक पौराणिक कथा है. इस कथा के अनुसार देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से अपने शरीर का त्याग कर दिया था. अपने शरीर का त्याग करने से पूर्व देवी ने महादेव को हर जन्म में पति के रुप में पाने का प्रण किया था. 

                    अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमालय और रानी मैना के घर में जन्म लिया. इस जन्म में देवी पार्वती ने युवावस्था में सावन के माह में निराहार रहकर कठोर व्रत किया. यह व्रत उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किए. भगवान शिव पार्वती से प्रसन्न हुए और बाद में यह व्रत सावन के माह में विशेष रुप से रखे जाने लगे. 

श्रावण मास शिव उपासना महत्व :-

भगवान शिव की पूजा जब बेलपत्र से की जाती है, तो भगवान अपने भक्त की कामना बिना कहे ही पूरी करते है. बिल्व पत्र के बारे में यह मान्यता प्रसिद्ध है, कि बेल के पेड को जो भक्त पानी या गंगाजल से सींचता है, उसे समस्त तीर्थों की प्राप्ति होती है. वह भक्त इस लोक में सुख भोगकर, शिवलोक में प्रस्थान करता है. बिल्व पत्थर की जड में भगवान शिव का वास माना गया है । यह पूजन व्यक्ति को सभी तीर्थों में स्नान करने का फल देता है. 

भगवान शिव को श्रावण मास सबसे अधिक प्रिय है । इस माह में प्रत्येक सोमवार के दिन भगवान श्री शिव की पूजा करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. इस मास में भक्त भगवान शंकर का पूजन व अभिषेक करते है. सभी देवों में भगवान शंकर के विषय में यह मान्यता प्रसिद्ध है, कि भगवान भोलेनाथ शीघ्र प्रसन्न होते है. एक छोटे से बिल्वपत्र को चढाने मात्र से तीन जन्मों के पाप नष्ट होते है. 
श्रावण मास के विषय में प्रसिद्ध एक पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रावण मास के सोमवार व्रत, एक प्रदोष व्रत तथा और शिवरात्री का व्रत जो व्यक्ति करता है, उसकी कोई कामना अधूरी नहीं रहती है. 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के समान यह व्रत फल देता है. 

                  इस व्रत का पालन कई उद्देश्यों से किया जा सकता है. महिलाएं श्रावण के 16 सोमवार के व्रत अपने वैवाहिक जीवन की लम्बी आयु और संतान की सुख-समृ्द्धि के लिये करती है, तो यह अविवाहित कन्याएं इस व्रत को पूर्ण श्रद्वा से कर मनोवांछित वर की प्राप्ति करती है. सावन के 16 सोमवार के व्रत कुल वृद्धि, लक्ष्मी प्राप्ति और सुख -सम्मान के लिये किया जाता है. 

शिव पूजन में बेलपत्र प्रयोग करना :- 

भगवान शिव की पूजा जब बेलपत्र से की जाती है, तो भगवान अपने भक्त की कामना बिना कहे ही पूरी करते है. बिल्व पत्र के बारे में यह मान्यता प्रसिद्ध है, कि बेल के पेड को जो भक्त पानी या गंगाजल से सींचता है, उसे समस्त तीर्थों की प्राप्ति होती है. वह भक्त इस लोक में सुख भोगकर, शिवलोक में प्रस्थान करता है. बिल्व पत्थर की जड में भगवान शिव का वास माना गया है । यह पूजन व्यक्ति को सभी तीर्थों में स्नान करने का फल देता है. 

श्रावण मास व्रत विधि :-

सावन के व्रत करने से व्यक्ति को सभी तीर्थों के दर्शन करने से अधिक पुन्य फल प्राप्त होते है । जिस व्यक्ति को यह व्रत करना हो, व्रत के दिन प्रात:काल में शीघ्र सूर्योदय से पहले उठना चाहिए. श्रावण मास में केवल भगवान श्री शंकर की ही पूजा नहीं की जाती है, बल्कि भगवान शिव की परिवार सहित पूजा करनी चाहिए. सावन सोमवार व्रत सूर्योदय से शुरु होकर सूर्यास्त तक किया जाता है. व्रत के दिन सोमवार व्रत कथा सुननी चाहिए. तथा व्रत करने वाले व्यक्ति को दिन में सूर्यास्त के बाद एक बार भोजन करना चाहिए. 
प्रात:काल में उठने के बाद स्नान और नित्यक्रियाओं से निवृ्त होना चाहिए. इसके बाद सारे घर की सफाई कर, पूरे घर में गंगा जल या शुद्ध जल छिडकर, घर को शुद्ध करना चाहिए. इसके बाद घर के ईशान कोण दिशा में भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करना चाहिए. मूर्ति स्थापना के बाद सावन मास व्रत संकल्प लेना चाहिए.

                                                       

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