मां त्रिपुर सुंदरी साधना
हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस संसार को बनाने वाली ‘आदि शक्ति’ देवी हैं। लेकिन इसी देवी के अनगिनत रूप भी हैं, जैसे कि दुर्गा, सरस्वती, पार्वती, लक्ष्मी, इत्यादि। लोग इन्हें अलग-अलग कारणों से पूजते हैं तथा मनवांछित फल की प्राप्ति करते हैं। लेकिन केवल पूजन के अलावा इन देवियों से मन्नत की पूर्ति के कई और तरीके भी शामिल हैं धर्म शास्त्रों में। कहते हैं साधना में अद्भुत शक्ति है जो किसी को हासिल हो जाए तो वह दुनिया में कुछ भी पा सकता है। एक देवी की साधना में जो शक्ति है वह दुनिया के किसी अन्य जीव, प्राणी या वस्तु में नहीं है। लोग पैसे को सबसे बड़ी ताकत मानते हैं, लेकिन देवी की साधना में सफल होने से बड़ी ताकत किसी को आज तक हासिल नहीं हुई, ऐसा माना जाता है।
आपने शायद बगलामुखी साधना के बारे में सुन रखा होगा, जिसकी मदद से आप किसी भी शत्रु से कुछ भी करवा सकते हैं। लेकिन इसके अलावा मां त्रिपुर सुंदरी से जुड़ी भी एक साधना है, जिसे करने से आप मनवांछित फल की प्राप्ति कर सकते हैं। श्रावण (सावन) माह में शिवजी को प्रसन्न करने की हर संभव कोशिश की जाती है। लेकिन इसी समय ऐसी मान्यता है कि यदि माता त्रिपुर सुंदरी की आराधना की जाए, तो भक्त कई परेशानियों से मुक्त हो सकते हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार मां त्रिपुर सुंदरी भगवान शिव की ही पत्नी मां पार्वती का रूप हैं। इसलिए ऐसा माना जाता है कि मां पार्वती या उनके रूप को प्रसन्न करने का अर्थ है अपने आप ही शिव कृपा की प्राप्ति होना। मां त्रिपुर संदरी का चमत्कारी शक्तिपीठ राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में आता है। यहां ‘मां त्रिपुर सुंदरी देवी’ मंदिर बनाया गया है, जिसकी कहानियां और उसमें उपस्थित चीज़ें दूर-दूर से श्रद्धालुओं को इस मंदिर की ओर खींचकर ले जाती हैं। यह मंदिर मूलत: इस क्षेत्र के उमरई गांव में आता है, जहां पांचाल ब्राह्मणों की एक छोटी सी जनसंख्या रहती है। कहते हैं मंदिर की कई कहानियां इन्हीं पांचाल ब्राह्मणों से ही जुड़ी हैं।
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कहानी भगवान शिव एवं उनकी पत्नी सती से जुड़ी है। सती द्वारा अग्नि कुंड में दाह और शिव द्वारा उनका शव लेकर आकाश में विचरण करते समय विष्णु के चक्र से सती के अंग-प्रत्यंग विभिन्न स्थानों पर गिरे थे। मां त्रिपुर सुंदरी का यह शक्तिपीठ वही स्थान है जहां सती की योनि गिरी थे। तभी प्राचीनतम तस्वीरों में मां को योनावस्था में दर्शाया गया है। इस स्थान पर सती की योनि गिरने के पश्चात ही इस स्थान को अन्य शक्तिपीठों में गिना गया। लेकिन इस पौराणिक कथा के अलावा स्वयं इस क्षेत्र के ब्राह्मणों में भी इसी युग की एक कहानी प्रसिद्ध है। यह बात विक्रम संवत् 1102 की है, जब मान्यतानुसार ऐसा कहा जाता है कि एक बार स्वयं मां सुंदरी ही भिखारिन का रूप धारण कर उस क्षेत्र के पांचाल लोगों के पास दीक्षा मांगने आई थीं। उस समय वे लोग खदान में काम कर रहे थे इसलिए उन्होंने भिखारिन को नजरअंदाज कर दिया, जिसके बाद वह वहां से चली गई।
लेकिन कहते हैं कि उसके जाने के ठीक बाद ही वह खदान ढह गई और सारे लोग उसमें दबकर मर गए। यह खदान आज भी वहीं है, जो मंदिर के पास ही बनी हुई है और स्थानीय लोगों में ‘फटी खदान’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस कहानी में कितनी सच्चाई है यह तो कोई नहीं जानता लेकिन लोगों में मान्यता यह है कि जो भी मां के इस शक्तिपीठ में आकर दिल से साधना करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह साधना केवल श्रावण मास में ही करना लाभकारी माना गया है। नियमों के अनुसार यह साधना श्रावण मास आरंभ होने के पहले सोमवार से अगले सोमवार तक की जा सकती है, लेकिन इसे करने से पहले जातक के लिए ग्रहों की पूर्ण जानकारी होना अनिवार्य है। मानव जीवन एवं शरीर नौ ग्रहों से प्रेरित होता है और यह नौ ग्रह चंद्रमा से बड़ी मात्रा में प्रभावित होते हैं।
यह ग्रह चंद्रमा के जितने करीब होते हैं उसका उतना ही प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है। मान्यतानुसार चंद्रमा के स्वामी हैं भगवान शिव, यही कारण है कि इस मास में शिवजी को प्रसन्न करने से हम जन्म कुंडली में चंद्रमा का स्थान उच्च कर सकते हैं। ऐसा करने से हमें राजसी सुख मिल सकते हैं और यश भी मिलता है। लेकिन शिवजी के अलावा मां पार्वती के इस रूप को प्रसन्न करने के भी कई लाभ हैं। यही माह ऐसा है जब आप मां त्रिपुर सुंदरी की साधना से लाभ पा सकते हैं। इस साधना के लिए श्रावण मास के किसी भी, आमतौर पर पहले ही सोमवार से अगले सोमवार तक साधना की जा सकती है। प्रात: से लेकर रात्रि तक जो भी समय सुविधापूर्ण लगे, उसमें साधना की जा सकती है। साधना काल के सप्ताह में मांस, मदिरा आदि अभक्ष्य पदार्थों का सेवन करने से परहेज करना चाहिए। साथ ही अनैतिक कृत्यों से भी बचना चाहिए। लेकिन ध्यान रहे कि यह साधना केवल अपनी इच्छापूर्ति के लिए की जाए तो इतनी फलदायी नहीं होती, लेकिन यदि आप किसी अन्य की इच्छा पूर्ति के लिए इसे कर रहे हैं तो यह निश्चित ही फल प्रदान करती है।
शास्त्रों के अनुसार यह साधना मुश्किल नहीं है, लेकिन इसे नियम के अनुसार करना जरूरी है। इसे आरंभ करने से पहले स्नान आदि कर शुद्ध होकर सफेद वस्त्र धारण करें। इसके बाद रेशमी या सफेद रंग के वस्त्र का आसन लें। एक सुपारी को कलावे से अच्छी तरह लपेटकर उसे एक थाली में सफेद वस्त्र के ऊपर रखें। अब देवी पार्वती का ध्यान करते हुए उनसे प्रार्थना करते हुए उनसे उस सुपारी में अपना अंश प्रदान करने की प्रार्थना करें। यह क्रिया ग्यारह बार करें। इसे करने के बाद आपको सही उच्चारण करते हुए देवी का ध्यान मंत्र जाप करना है: “बालार्कायुंत तेजसं त्रिनयना रक्ताम्ब रोल्लासिनों। नानालंक ति राजमानवपुशं बोलडुराट शेखराम्।। हस्तैरिक्षुधनु: सृणिं सुमशरं पाशं मुदा विभृती। श्रीचक्र स्थित सुंदरीं त्रिजगता माधारभूता स्मरेत्।।“ ध्यान मंत्र जाप के बाद एक आह्वान मंत्र भी पढ़ना है: “ऊं त्रिपुर सुंदरी पार्वती देवी मम गृहे आगच्छ आवहयामि स्थापयामि।“ मंत्र जाप के बाद देवी को सुपारी में प्रतिष्ठित कर दें। इसे तिलक करें और धूप-दीप आदि पूजन सामग्रियों के साथ पंचोपचार विधि से पूजन पूर्ण करें। अब कमल गट्टे की माला लेकर 108 बार इस मंत्र का जप करें – “ऊं ह्रीं कं ऐ ई ल ह्रीं ह स क ल ह्रीं स क ह ल ह्रीं।“
यही प्रक्रिया आपको कुल सात दिनों तक दोहराते रहनी है। इसमें किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं होना चाहिए। सात दिनों तक साधना पूर्ण करके आठवें दिन खील, सफेद तिल, बताशे, बूरा, चीनी और गुलाब के फूल, बेल पत्र को एक साथ मिलाकर 108 आहूतियों से हवन करें। हवन के लिए मंत्र के आगे ऊं नम: स्वाहा: जोड़कर मंत्रोच्चार करें।