कालसर्प योग :-
जब राहू और केतु के प्रभाव में तथा इनके बीच में जब सारे ग्रह आ जाते हैं, तब कालसर्प दोष बनता है। राहू को सर्प का मुख तथा केतु को पूंछ माना जाता है। इस योग की विशेषता यह है कि काल सर्प योगियों का जन्म निश्चित रूप से कर्मभोग के लिये होता है।
कालसर्प दोष के प्रकार :-
मुख्यतः 12 प्रकार के होते हैं – अनन्त, कुलिक, वासूकी, शंखपाल, पदमकाल, महापदमकाल, तक्षक, कारकोटक, घातक, शंखचूर्ण, विषधर, शेषनाग। इन दोषों की शांति अवश्य करानी चाहिये। शान्ति कराने से जातकों के सभी कार्य व्यवस्थित रूप से बनते हैं।
कालसर्प दोष के लक्षण :-
कालसर्प दोष से पीडि़त व्यक्ति को प्रायः बुरे स्वप्न आते हैं। सपने में सांप दिखायी देना, नदी, तालाब, कुएं, समुद्र का पानी दिखायी देना, पानी में गिरना व बाहर आने का प्रयत्न करना, हवा में उड़ना, ऊँचाई से गिरना आदि।
जिस जातक के जीवन में काल सर्प योग होता है, उस जातक का जीवन अति कष्ट-कारक, दुखदायी एवं अनिष्टकारक होता है। वह जातक रात-दिन मेहनत करता है परन्तु फिर भी उसे सफलता नही मिलती है। घर में कलह रहता है तथा अशान्ति का वातावरण रहता है। संतान सुख में कमी, पुत्र सुख में बाधा, व्यापार में हानि, मानसिक अशान्ति रहती है, किन्तु काल सर्प दोष, पितृ दोष, चाण्डाल दोष एवं ग्रहण दोष की पूजा अनुष्ठान के बाद उस जातक के जीवन में सुख, शान्ति, आनन्द व ऐश्वर्य की अनुभूति होती है।
काल सर्प दोष के सामान्य प्रभाव :-
1. हर महत्वपूर्ण और शुभ कार्य में बाधा
2. कमजोर मानसिक शांति
3. आत्म विश्वास कम
5. धन के विनाश
6. व्यापार और नौकरी के नुकसान के विनाश
7. चिंता और अनावश्यक तनाव
पंडित एन. एम. श्रीमाली जी के अनुसार कालसर्प योग वाले व्यक्ति असाधारण प्रतिभा एवं व्यक्तित्व के धनी होते हैं। इस योग में वही लोग पीछे रह जाते हैं, जो निराशा और अकर्मण्य होते है। परिश्रमी और लगनशील व्यक्तियों के लिए कलसर्प योग राजयोग देने वाला होता है।